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'एंटी रोमियो दल' की पहल बेहद ही अच्छी है। यूपी में पहली बार लड़कियों की सुरक्षा के लिए कोई अच्छी पहल लाई गई है। योगी जी के इस सराहनीय काम के लिए उनको कोटि-कोटि धन्यवाद। सीएम के पद पर आते ही उन्होंने धड़ाधड़ अच्छे काम करने शुरू कर दिए। यूपी में 'गुटखा' प्रेमियों की भी हालत दुरुस्त हो गई है, 'राम मंदिर' का भी काम प्रगति पर है और सबसे बड़ी और अच्छी बात 'एंटी रोमियो दल' है। ऐसे में अब यही लगता है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
एंटी रोमियो दल की पहल बहुत पहले ही हो जानी चाहिए थी। योगी जी के सीएम बनने का ही इंतजार हो रहा था क्या? पहले भी कॉलेजों, स्कूलों और पार्कों में छेड़खानियां होती थीं, फिर इतनी देरी क्यों हुई? ख़ैर..देर से ही सही लेकिन ये पहल अच्छी है अब लड़कियों के साथ छेड़खानी नहीं होगी।
लेकिन एक सवाल उठ रहा है मन में कि ये एंटी रोमियो दल अपना काम कितने दिनो तक करेगा? अभी चुनावी दौर खत्म ही हुआ है इसलिए थोड़ा माहौल बना कर रखना भी जरूरी है। ख़ैर..अब जो लोग देश की संस्कृति भंग कर रहे थे उनके लिए एक कड़ी सजा की तरह है ये एंटी रोमियो दल। अब जाकर यूपी में लोगो की हवा थोड़ी टाइट हुई है, लड़कियों से छेड़खानी हो या न हो लेकिन कम से कम लोग डर के तो रहेंगे।
एंटी-रोमियो दल लड़कियों से होने वाली छेड़छाड़ पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है। स्कूल, कॉलेज के सामने झुंड बना के खड़े होते और हर आती-जाती लड़की पर फब्तियां कसते मनचलों पर लगाम लगाना उद्देश्य है ये दल बनाने के पीछे। लड़कियों को भयमुक्त माहौल देने के इरादे से बना है एंटी-रोमियो दल। बज़ाहिर ये एक बेहद अच्छा उपक्रम जान पड़ता है। लेकिन इसका स्वरुप ऐसा ही रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
हलांकि लोगों ने इस पहल की जमकर तारीफ की, वहीं कुछ लोगों ने इस कदम को खतरनाक कदम का नाम दिया। देखा जाए तो दोनो ही तरह के लोगों की बातें सही हैं। अगर ये काम सावधानी से हो, इस काम का गलत फायदा न उठाया जाए तब तो ठीन है। अब कॉलेज के बाहर घूम रहे लड़कों से पुलिस पूछ ताछ करे और उन्हें घर जाने के लिए कहे तो कोई भी स्टूडेंट शायद ही एंटी रोमियो दल की इस बात को मानें। अब ये भी हो सकता है कि स्टूडेंट्स विरोध करें, तोड़-फोड़ करें, मार-धाड़ करें.. क्योंकि ये बिलकुल भी जरूरी नहीं कि हर मामले मे पुलिस ही सही हो।
यानी पहले जो काम बजरंग दल, श्रीराम सेना, शिवसेना जैसे संगठन वैलेंटाइन्स डे पर किया करते थे, वो अब रोज़ हुआ करेगा। वो भी कानूनी ढंग से। मतलब वीकेंड पर अगर हम कहीं पार्क में जाकर दोस्तों के साथ समय बिताएं, थोड़ा फन करे वो सब संसकृति के खिलाफ होगा? स्टूडेंट्स को बस किताबी ज्ञान लेना है और घर आ जाना है। एक और बात ये कि लड़का-लड़की के बीच दोस्त, सहपाठी जैसा रिश्ता भी हो सकता है, ये कुछ लोगों के कयास से बाहरी चीज़ है। ऐसे में ये स्क्वॉड जवान लड़के-लड़कियों का कानूनी उत्पीड़न करने का ज़रिया बन सकता है।
अगर कोई पार्क में बैठा है, कॉलेज के बाहर खड़ा है तो जरूरी नहीं कि वो बुरी हरकते ही कर रहा हो। ठीक है, इस दल को बनाना लेकिन कॉलेज और यूनिवर्सिटी के इलाकों में घूमते सहपाठी लड़के-लड़कियों को किस कानून के तहत पकड़ा जाएगा? इसके लिए भी कोई कानून बनना चाहिए।
कुछ हद तक ये पहल अच्छी है लेकिन जिसके ओरिजिनल उद्देश्य से भटकने की बहुत ज़्यादा संभावना हो, वो काम ठीक-ठाक नहीं लगता। ख़ैर.. अब देखना है कि लड़कियां कितनी सुरक्षित हो पाती हैं इस पहल से। 1090 तो देख लिए....