विस्तार
हम सभी की दिक्कत ये है कि हम लोग किसी भी बात पर अपनी राय बहुत जल्दी देने लगते हैं। हम बिना पूरी बात जाने ही खुश, दुखी, नाराज़ और परेशान हो जाते हैं। शायद हमारे पास ख़बरें इतनी जल्दी आती हैं और उनपर हमें अपनी राय रखने की इतनी जल्दी हो जाती है कि हम सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ़ देखने की कोशिश भी नहीं करते।
खैर देखिए अभी एक और ऐसी बात हो गई है जिसके बाद अपनी बेवकूफ़ी पर गुस्सा आ रहा है। हालांकि बात अभी साफ़ नहीं है लेकिन अभी कुछ दिनों पहले आतिफ़ असलम की जो वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें वो अपने कॉन्सर्ट के दौरान किसी लड़की को एक मॉलेस्टर से बचा रहे थे उसका एक दूसरा पहलू भी सामने आ गया है। वो लड़का जिसे आतिफ़ ने गलत समझा उसने अपना बयान डेली पाकिस्तान को दिया है।
उस लड़के ने बताया कि वो असल में सिर्फ़ अपना काम कर रहा था। वो उस कॉन्सर्ट की सिक्योरिटी टीम का हिस्सा था। उसका काम था कि वो नॉन-वीआईपी सेक्शन के लोगों को वीआईपी सेक्शन में जाने से रोके। उसने देखा कि 2 लड़कियां और एक लड़का वीआईपी हिस्से में जा रहे हैं। जब उसने उनसे उनका टिकेट मांगा और उन्हें आगे बढ़ने से रोका तो वो उससे झगड़ने लगे। उन लड़कियों ने उससे हाथापाई शुरू कर दी और इसी समय आतिफ़ ने उन्हें देखा और उन्हें लगा कि ये व्यक्ति लड़कियों के साथ बद्तमीज़ी कर रहा है जबकि वो केवल अपना काम कर रहा था।
इसके बाद लोगों ने उसे बेतहाशा पीटना शुरू कर दिया। इस व्यक्ति का कहना है कि उसे बेहद बुरे तरीके से मारा गया। उसकी बात सुनने की किसी ने ज़हमत नहीं उठाई।
हमारे समाज में महिलाओं पर इतना ज़्यादा जुर्म होता है कि अगर कोई औरत किसी पर कोई झूठा इल्ज़ाम भी लगा दे तो लोग बिना सच्चाई जाने उसे सच मानने लगते हैं। हमारे देश में ही ले लीजिए, हर साल यहां दहेज़ उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न जैसे न जाने कितने ही झूठे केस दर्ज होते हैं। खेल पैसों का है तो जो पावरफुल है लोग उनकी सुनते हैं। कानून व्यवस्था भी इतनी लचर है कि निर्दोष भी कोर्ट के चक्कर लगाता रह जाता है। जो महिलाएं सच में पीड़ित हैं उनकी सुध लेने वाला कोई है ही नहीं।
वो कहते हैं न कि लोग अधिकार मिलने के बाद उसका फ़ाएदा उठाने लगते हैं, हाल हर जगह का यही है। इस केस की तो खैर अभी तहकीकात चल रही है। मुजरिम का पता भी देर-सबेर चल ही जाएगा। लेकिन अगर ये लड़का सच में निर्दोष निकला तो सभी ने मिलकर इसका जो मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न किया है, उसका हर्ज़ाना इसे कैसे मिलेगा और कौन देगा?
ऐसे मामलों में ज़रूरी है कि हम पहले बात को सुनना शुरू करें उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया दें। लोग अपनी ज़िन्दगी में इतने परेशान रहते हैं कि उन्हें बस मौका मिलना चाहिए किसी को पीटने का। ये काम कानून का है कि सज़ा किसे देनी है तो वो उसी पर छोड़ देना चाहिए। अपने दिमाग को भी हमें खोलने की ज़रुरत है। हमें समझना होगा कि जैसा दिखाई देता है वैसा हमेशा होता नहीं है।