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हमारे यहां फैशन के लिए एक संस्थान है, नाम है - नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेकनॉलजी। एक-दो दिन पहले की खबर है कि एक सर जी वहां के मुखिया बन गए हैं। चेतन चौहान नाम है सर का। बहुत बढ़िया क्रिकेट खेलते थे 70 के दशक में। अभी डीडीसीए के उपाध्यक्ष भी हैं। बहुत ही बिज़ी इंसान हैं, मुश्किल से वक्त निकाला है इस फैशनमयी दुनिया के लिए।
फैशन में क्रिएटिविटी होती है, होती ही होगी पर सर जी का जुनून किरकेट है। एक अपना भी बिज़नेस है - न्यूज़प्रिंट का। पर मल्टीटैलेंटेड हैं चेतन सर, सबके लिए वक्त निकाल ही लेंगे। खुद ही बोले कि 60% समय डीडीसीए को देंगे, 20% अपने बिज़नेस को देंगे और बाकी के 20% निफ्ट को देंगे। उनका बहुमूल्य 20% समय पाने के लिेए उन्हें चेयरमैन बनाया गया है। कपड़े ठीक-ठाक पहनते हैं, पर बहुत फैशनेबल आदमी नहीं हैं। उनके समय में टाइगर पटौडी और सलीम दुर्रानी जैसे लोगों का भौकाल था। अभी सबलोग हो-हल्ला मचाए हुए हैं कि इन्हें क्यों चेयरमैन बनाया? क्यों न बनाएं भईया, अपना 20% वक्त दे रहे हैं सर। निफ्ट में पैड्स बनवाएंगे क्रिकेटर्स के लिए।
मेरी गली में एक दर्जी बैठता है। उसकी कोई दुकान नहीं है, एक दुकान के बाहर टेबल लगाकर काम करता है। उसके पास काम की कमी नहीं होती, पर दुकान नहीं है। काम भी ठीक-ठाक कर लेता है। लड़कियां अपनी कुर्ती, सलवार-कमीज़ फीटिंग कराने के लिए उसके पास जाती हैं। मोदी जी के राज में सबको रोज़गार मिल ही रहा है, बस आडवाणी जी बचे रह गए। मुझे लगता है कि उस दर्जी को फैशन और कपड़ों के बारे में चेतन सर से ज्यादा पता होगा। टैलेंट की इज़्ज़त होती हो तो कायदे से ये काम उसे मिल जाना चाहिए। उसके पास वक्त भी है, सर जी से बहुत ज्यादा। वो कुछ सिलाई भी कर लेगा और शायद थोड़ा-बहुत आइडिया भी दे दे।
वैसे चेतन सर भी ठीक ही हैं अपने लिए। अपने वो युधिष्ठिर जी, अरे क्या नाम है उनका.. गजेंद्र चौहान; वो भी तो एफटीआईआई की बैंड बजा ही रहे हैं न। इनको भी मौका मिलना चाहिए। एक के डूबाने से थोड़े ही डूबेगा इंडिया। पहलाज निहलानी जी भी हैं ही। ये त्रिदेव काफी हैं बेड़ा गर्त करने के लिए। अरे, और भी आ जाएंगे.. पर आप अभी चिल्लाइए मत! खबर सुनते नहीं हैं कि फेसबुक-ट्विटर पर गला फाड़ना शुरु कर देते हैं। काम करने दीजिए सर जी को! बहुत मुश्किल से 20% वक्त निकाला है, आपकी तरह किसी को कोसने का टाइम नहीं है उनके पास।