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जिसके कंधे पर भविष्य है उसके 'जेब में पराठे'!

shweta pandey/firkee.in Updated Mon, 23 Jan 2017 07:26 PM IST
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पराठा
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कंधे पर एक झोला, गले में पानी की बोतल,मां-बाप के सपने को साकार करने की दिशा में जा रहे बच्चे। हर सुबह का यही नज़ारा होता है। मां-बाप हर तरह से इस कोशिश में लगे हैं कि कैसे उनके बच्चे स्मार्ट और टैलेंटेड बनें। लेकिन मां-बाप की ये ख्वाहिश और बच्चों पर एक मजदूरी का बोझ आज की शिक्षा प्रणाली पर एक सवाल खड़ा कर रहा है।

'ये बच्चे कल का भविष्य हैं' ऐसा कहते हुए आपने देश के हर नेता-अभिनेता को देखा होगा, सुना होगा लेकिन बच्चों के भविष्य का क्या? इस बच्चे की तस्वीर उस देश के जवान की तस्वीर से थोड़ी भी कम मार्मिक नहीं है, जिस जवान की तस्वीर अभी हाल ही में खान-पान और जले पराठे को लेकर वाइरल हो रही थी। 

 आज के दौर में बच्चों के ऊपर पढ़ाई का बोझ कितना ज्यादा है ये तो हम सब जानते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि दिन पर दिन कॉम्पटीशन जो बढता जा रहा है। इन सब के बीच यह भी देखने को मिलता है कि मासूम बच्चों के कंधों पर किताबों का बोझ लाद दिया जाता है। बच्चे, मजदूर की तरह इसे ढ़ोते दिखाई पड़ते है। शहरों में सुबह-सुबह इस तरह के नजारे आम हैं।

हाल ही में हैदराबाद में छोटे स्कूली बच्चों से जुड़ा एक ऐसा ही मामला सामने आया है जो सुर्खियों में है। यह तस्वीर कितना कुछ बयां कर रहा है ये लिखना तो संभव नहीं है। हो सकता है बच्चे ने न खाने की ज़िद की हो और  मम्मी ने पराठे जेब में रख दिये हों। ख़ैर.. आज कल समय की पाबंदी है ये भी हो सकता है कि मम्मी को ज़्यादा काम पड़ गया हो तो पराठे जेब में रख दी हों। 

लेकिन यह तस्वीर हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था पर एक सवाल खड़ा करता है। 7 बजे वाले सिस्टम के तले जब कर बच्चों की बचपना छिन जाती है। जब खाएंगे नहीं तो ये बच्चे पढ़ेंगे क्या, जवान कैसे बनेंगे, ये बच्चे सीमा पर खड़े कैसे होंगे। मां-बाप पर जितना काम को बोझ नहीं होता उतने बच्चे के बैग का बोझ होता है। 

हैदराबद के सुरेन नाम के एक ट्विटर यूजर ने एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें एक बच्चा स्कूल में प्रार्थना की लाइन में खड़ा है और उसके जेब में पराठा दिख रहा है। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और स्कूल मैनेजमेंट सवाल के घेरे में है। सुरेन ने इस पोस्ट में एचआरडी मिनिस्ट्री और तेलंगाना के मंत्री केटी रामा राव को टैग करते हुए लिखा, ”जेब में सुबह का ब्रेक फास्ट, अधूरी नींद, स्कूल की टाइमिंग 10 बजे से 5.30 मिनट तक क्यों नहीं, कृपया सोचें.”  
 


हाय रे सिस्टम बच्चे का बचपना छीना, नींद छिना, चैन छीना इंसान को मशीन बना दिया, 9 से 6 वाला रोबोट। नाईट शिफ्ट वाला रोबोट, और इस रोबोट ने पारिवारिक माहौल इस कदर बिगाड़ा कि इंसान ज़बरदस्ती नींद की गोली खाकर सोता है। ऐसे में सुबह नींद कैसे खुलेगी। नींद देर से खुली तो बच्चा बग़ैर खाए तो स्कूल जाएगा ही। नींद अधूरी रहेगी तो बच्चे बड़े सपने कैसे देख सकते हैं। 

बहुत कुछ कह रही है ये तस्वीर बस गौर से देखिए.. 

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