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'विद्यादान योजना' के तहत तेलंगाना के जेलों में चल रही क्लास! घट रही मरने वाले कैदियों की संख्या
Updated Fri, 16 Sep 2016 01:19 PM IST
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विस्तार
8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। आप में से कई लोगों को इस बात का पता भी नहीं होगा। मिशन 2020 और डिज़िटल इंडिया से इतर देखें तो पता चलेगा कि अब भी इंडिया उसी 'सब पढ़ें-सब बढ़ें' में ही डूबा हुआ है। सन् 2011 में हुए सर्वे के अनुसार इंडिया की लिटरेसी रेट यानी साक्षरता दर 74.04% है। ये हम साक्षरता की बात कर रहे हैं, शिक्षित लोगों की नहीं।
साक्षर वो स्थिति है जिसमें व्यक्ति बौद्धिक रुप से बहुत परिपक्व नहीं होता है। उसे अक्षर-बोध हो जाता है जिससे वो शब्दों को मिलाकर पढ़-लिख सकता है। शब्दों का मतलब समझ सकता है और उसे किसी दस्तावेज़ पर अंगूठा नहीं लगाना पड़ता, वो हस्ताक्षर करना सीख चुका होता है। एक वाक्य में कहूं तो जो व्यक्ति अंगूठा न लगाकर हस्ताक्षर कर सकता हो वो साक्षर हुआ। मतलब शिक्षा की मौलिक अवस्था।
जिस 120 करोड़ की जनता पर हम फूले नहीं समाते हैं न। उनमें से 30 करोड़ लोग अनपढ़ हैं। सोचिए भारत कहां है अभी। ख़ैर, हम आज आपको ये बताने नहीं आए हैं। हम ये बताने आए हैं कि तमाम परेशानियों के बावजूद कुछ पहल किए जा रहे हैं जो कि सार्थक हैं। तेलंगाना एक नया राज्य है, आंध्रप्रदेश से निकाल कर बनाया गया था। के. चंद्रशेखर राव वहां के मुख्यमंत्री हैं। वहां सितम्बर 2014 से जेलों में 'विद्यादान योजना' चलाई जा रही है जिसके तहत जेलों में रह रहे कैदियों की शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। इस योजना के तहत जेल में कैद शिक्षित लोग वहीं कैद अशिक्षित लोगों को पढ़ा-लिखा रहे हैं।
पढ़ाई भी ऐसी नहीं कि जब मन हुआ क्लास चली जब मन नहीं तब चुपचाप बैठ गए। बकायदे पढ़ाई हो रही है वहां और जब तक कोई कैदी बीमार न हो तबतक उसे क्लास मिस करने की अनुमति नहीं है। हालांकि जेल में शिक्षा कोई नई योजना नहीं है पर अनिवार्य रूप से शिक्षा, खेल-कूद और योगा राज्य की जेल विभाग की अपनी पहल है। द इंडियन एक्सप्रेस के सर्वे के मुताबिक 2014 से 2015 में यहां 32,143 निरक्षर कैदियों में से 28,526 कैदी साक्षर हो गए जबकि 2015 से 2016 में 16,950 निरक्षर कैदियों में से 15,778 साक्षर हुए। वहां के डाएरेक्टर जनरल वी.के. सिंह का कहना है कि जो कैदी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं उन्हें अखबार और दूसरी पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने में दिक्कत नहीं होती। जो कम ध्यान दे पाते हैं वो हस्ताक्षर करना सीख लेते हैं।
उन्होंने भावुक होकर कहा कि ये योजना हमें अपने स्तर पर खुशी भी देती है। 65 वर्ष से अधिक की एक महिला कैदी यहां दहेज़ उत्पीड़न के मामले में आई थी। जब वह जाने लगी और उसने अपने बेटे के सामने दस्तावेज़ों पर अंगूठा न लगाकर हस्ताक्षर किये तो दोनों भाव-विभोर हो गए थे।
पढ़ाई के अलावा इन कैदियों की साप्ताहिक परिक्षाएं होती हैं और फिर मासिक एसेसमेंट भी। 3 महीने के सेमेस्टर के आधार पर यहां की शिक्षा प्रणाली चल रही है। जनरल सिंह ने बताया कि इन सबके बाद जेल में मरने वालों की संख्या भी कम हुई है। बीते वर्ष जेल में मरने वालों की संख्या 56 से घटकर 14 हो गई थी। इसका कारण शिक्षा, योग-व्यायाम और नैतिक प्रेरणा को माना जा रहा है।
मार-काट, अपहरण-बलात्कार, गरीबी-बेगारी, राम-रहीम सब चल रहा है। पर देश या दुनिया के किसी कोने में कुछ अच्छा होता है, तो अच्छा लगता है। सुकून मिलता है।
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