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हरिशंकर परसाई का क्लासिक व्यंग्य: हिन्दी और हिन्दींग्लिश

दीपाली अग्रवाल, टीम फिरकी, नई दिल्ली Updated Wed, 03 Jan 2018 04:08 PM IST
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Harishankar Parsai
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विस्तार

व्यंग्यसम्राट हरिशकंर परसाई ने ‘हिन्दी और हिन्दींग्लिश’ शीर्षक का एक व्यंग्य लिखा जोकि उनकी किताब ‘ऐसा भी सोचा जाता है’ में छपा था। किताब का प्रकाशन वाणी प्रकाशन द्वारा सन् 1985 में किया गया था।  

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश से कि सरकारी कामकाज में अनिवार्य रुप से हिन्दी का प्रयोग हो, अंग्रेजी को त्याग दिया जाए, प्रशासन के लोगों में कुछ डर पैदा हुआ होगा । जो आदमी शंकराचार्य को जेल में रख सकता है, वह हम पर भी कार्यवाही कर सकता है । चलो निकालो शब्दकोश और लिखो हिन्दी में । जिसे यह कागज जाएगा, वह शब्दकोश में सिर मारेगा। 

मगर मुलायम सिंह का जोर हिन्दी लाने पर उतना नहीं है जितना अंग्रेजी हटाने पर । वो देश की सभी भाषाओं को बराबर मानते हैं । ठीक करते थे समाजवादी कार्यकर्ता बाजार में घूमते और अंग्रेजी के बोर्ड हटाते । दुकान का नाम साईन बोर्ड पर लिखा है (अंग्रेजी में) 'मोडर्न स्टोर्स' । इस नाम से बैंक खाता है, रजिस्ट्रेशन है, लेना देना है । दुकानदार कैसे बदले ? होशियार दुकानदार ने रात को ही बोर्ड पर लिखवा दिया 'मोडर्न स्टोर्स' । आधुनिक भण्डार नहीं । लिपि बदल दी, देवनागरी कर दी । हिन्दी के उफान का दौर जब तब आता है । कुकर की सब्जी पक जाती है और भाप निकलने लगती है, तब एकाध आन्दोलन एक-दो दिन चल जाता है । भावुक वक्तव्य दे दिए जाते हैं, हिन्दी की स्तुति गायी जाती है । समझना चाहिए कि हिन्दी सिर्फ भावना की चीज नहीं है, व्यवहार की चीज भी है ।

हिन्दी आन्दोलन और स्कूलों की बात करते हुए वह लिखते हैं ... 
संविधान में हिन्दी की राजभाषा और अन्तर्राज्यीय सम्पर्क भाषा मानने के बाद हिन्दी उन्मादी खड़े हो गए ।
- हिन्दी की विजय !
- हिन्दी राष्ट्र भाषा हो गई !
- हिन्दी की भारत विजय !
- जो हिन्दी-विरोधी है, वह राष्ट्र-विरोधी है !
इन हिन्दी उन्मादियों के अपने बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पब्लिक स्कूल, कॉन्वेंट में पढ़ते हैं । अब भी हिन्दी की जय बोलने वाले, हिन्दी का माल खाने वाले के बेटे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते हैं । हिन्दी उनके लिए विदेशी भाषा है । बाप हिन्दी माता की गोशाला खोलकर हिन्दी का घास चरे और बेटे हिन्दी की हत्या करें । मैंने एक हिन्दी की मलाई चाटने वाले हिन्दी सेवक से कहा-  मगर अपने बेटों को तो आप अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं । उन्होंने कहा- लड़कों को हिन्दी में पढ़ाकर क्या उनकी जिन्दगी खराब करना है ?

भाषा की इसी महत्वता को आगे बढ़ाते हुए परसाई जी आगे लिखते हैं।

जब अंग्रेजों का शासन था, तब ये नर्सरी और कॉन्वेंट कम थे । अब एक की जगह बीस हो गए हैं । सचमुच इनमें पढ़ाई अच्छी होती है । फिर हिन्दी माता के स्कूल किनके लिए हैं ? मजदूर, चपरासी, रिक्शावाला के बच्चों के लिए । जिन्दगी इन बच्चों की वैसे ही खराब होनी है क्योंकि वो गरीबों के बच्चे हैं । हिन्दी के द्वारा जिन्दगी खराब हो, यह भी हिन्दी की सेवा ही है । सरकारों को और समाजसेवी संस्थानों को अच्छे हिन्दी स्कूल खोलनी चाहिए । तब हिन्दी और हिन्दी माध्यम से अच्छी पढ़ाई होगी । 
इस तरफ ध्यान नहीं है । बच्चे के जन्मदिन में आमतौर पर सुनता हूं लय के साथ- हैपी बर्थ डे टु यू ! जन्मदिन मुबारक हो- यह कम सुनाई देता है । अनपढ़ आदमी भी कहता है- मेरी वाइफ को बुखार आ गया । इसमें 'वाइफ' अंग्रेजी और 'बुखार' फारसी है । यह भाषा चलेगी । भाषा वह होती है जिसे लोग बोलते हैं । वह भाषा नहीं होती जो विश्वविद्यालय और हिन्दी के दर्जनों संस्थान बनाते हैं । जिससे लोग चलेंगे वही रास्ता आम होगा । दूर कहींं सीमेंट डामल की सड़क बना दो तो वह आम रास्ता नहीं होगा । सड़क बनी रहेगी, लोग नहीं चलेंगे, भाषा की समृद्धि शब्द-संख्या बढ़ाते जाने से होती है । इसके लिए दूसरी भाषाओं के शब्द लेना चाहिए । मगर पवित्रतावादियों ने यह रास्ता बंद कर दिया है । उर्दू को मुसलमानों की भाषा कहकर उससे परहेज किया जाता है; जबकि उर्दू, फारसी के शब्दों, मुहावरों से हिन्दी बहुत समृद्ध हुई है । वास्तव में हिन्दी-आन्दोलन भी ऊंची जातियों के हिन्दुओं के हाथों में है । ये द्विज हिन्दी को तिलक और माला से सजाकर अगरबत्ती जलाकर नारियल फोड़ते हैं । हिन्दी उनके लिए इसी काम की है । इसी कारण हिन्दी साम्प्रदायिकता की भाषा सरीखी लगने लगी- हालांकि वह है नहीं । 

हिन्दी की समृद्धता बताते हुए परसाई जी आगे लिखते हैं।

बोलचाल की भाषा में अछूत प्रथा नहीं मानना चाहिए । बोलचाल की भाषा में जो अंग्रेजी शब्द आ गए हैं, उन्हें हिन्दी मान लेना चाहिए । हिन्दी को अधिक से अधिक दूसरी भाषाओं के शब्द भी लेना चाहिए । तब हिन्दी समृद्ध होगी ।
विज्ञानों के तकनीकी शब्द लगभग अंतर्राष्ट्रीय होते हैं । ये पूरे यूरोप, अमेरिका, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में माने जाते हैं । अंग्रेजी के जो शब्द धातु नहीं बनने को हैं, वे अगर बोलचाल में हैं तो उन्हें हिन्दी मान लेना चाहिए ।

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