विस्तार
चुनावी माहौल अपने चरम पर है, रोज़ ही कोई न कोई ऐसी ख़बर हमें सुनने को मिल ही जाती है जिसके बाद हम ये कहने पर मजबूर हो जाते हैं कि 'हे कुर्सी तेरी महिमा अपरंपार है'। कहीं बाप-बेटा आपस में लड़े जा रहे हैं तो कहीं किसी एक पार्टी के 4-5 लोग मुख्यमंत्री बनने को तैयार बैठे हुए हैं। हर दिन उम्मीदवारों की एक नई लिस्ट जारी हो रही है, और हम लोग हर दिन एक नया खेल देख रहे हैं।
दोस्तों इतिहास ऐसे ही दिनों में बनकर तैयार होता है। इन दिनों जो घटनाएं हो रही हैं वो यहीं दबकर नहीं रह जाएंगी, ये हर आने वाले चुनाव में बार-बार दोहराई जाएंगी। अब कुछ समय एक और खेल शुरू हो जाएगा। नेता जी आएंगे आपके घर वोट करने और अपना प्रचार करने। इस प्रचार के अपने-अपने बड़े ही शानदार तरीके होते हैं।
बॉलीवुड भी हमारे देश की राजनीति से इंस्पायर होता आया है। यहां कई फ़िल्में इस मुद्दे पर बन चुकी हैं। लेकिन इन फ़िल्मों के साथ दिक्कत ये होती है कि ये बस आती हैं और चली जाती हैं। लेकिन कुछ फ़िल्में अपनी छाप छोड़ जाती हैं। इन्हीं में से एक फ़िल्म है 'प्रतिघात' जो 1987 में आई थी। ये फ़िल्म हम सभी को ज़रूर देखनी चाहिए।
ये उन फ़िल्मों में से है जिसे देखने के बाद हमारे सपने ज़मीन पर आ गिरते हैं और अपने जीवन और इस देश की सच्चाई तुरंत हमारे सामने उजागर हो जाती है। इस फ़िल्म का एक गाना बहुत मशहूर है- "हमरे बलमा बेईमान हमें पटियाने आए हैं" सुना है आपने? सुन लीजिए एक बार आपको गुस्सा भी आएगा और दिल भी ख़ुश हो जाएगा।