विस्तार
मर्द को दर्द नहीं होता... अमिताभ बच्चन ने फिल्म में यह बात क्या बोल दी, भारतीयों ने धर्मग्रंथ का श्लोक मानकर आत्मसात कर ली। मतलब यह बात भारतीयों को इतनी सूट करती है कि कोई जलते हुए अंगारे पर बैठ जाएं, तो यह समझा जाता है कि मर्द को दर्द नहीं होता!
मतलब, यहां आंसुओं, दर्द और गम पर चूड़ियां पहनने वालों का ही एकाधिकार समझ लिया जाता है। अब देखिए, 19 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय मर्द दिवस होता है। यह आया और चला गया। मर्दों को फर्क नहीं पड़ा, कि कोई इस पर कुछ शेयर करता, ट्वीट करता, सभाएं करता, अपने जज्बात जाहिर करता... लेकिन नहीं, क्योंकि मर्द को दर्द ही नहीं होता है! किसे पड़ी मर्द दिवस की।
महिलाओं ने भी इस दिन को बड़ी सहजता से लिया रोज के आम दिनों की तरह। जैसे कि मर्द महिला की तारीफ करें या नहीं करे, मर्द का गरियाया जाना आम है। तारीफ कर दी तो मतलब फ्लर्ट कर दिया, नहीं की तो खूबसूरती को नजरअंदाज कर दिया! पत्नी को घुमाने ले जाए तो पैसे की बर्बादी, न ले जाए तो बोर आदमी। बच्चों को नसीहत दे तो पुराने जमाने का आदमी, न दे तो उन्हें बिगाड़ने वाला आदमी। बीवी का कहना माने तो जोरु का गुलाम, न माने तो पुरुषवादी। खुद फैसला ले तो उसे थोपने वाला, न ले तो कमजोर आदमी। लेकिन नहीं, घर में पत्नी झिड़क दे, ऑफिस में बॉस डपट दे.... मर्द को दर्द नहीं होता!
लड़की छोड़कर भाग जाए तो दब्बू, और लड़की को भगा ले जाए तो पीछे पुलिस... अपनी कमाई खुद पर खर्च करे तो खुदगर्ज आदमी, दूसरों की मदद करे तो सीधा आदमी। और सीधे का मतलब तो आप जानते हैं न!
अरे भई, जिस तरह से मर्दों को ठंड लगती है, गर्मी लगती है, भूख लगती हैं, उसी तरह मर्दों को दर्द भी होता है। यह जिंदगी कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं कि कोई हीरो शेखी मार दे और मर्द उसे जिंदगी भर भुगते। मर्द को भी रोना आता है, आंसू आते हैं, मर्द के जज्बात होते हैं, उसे अच्छा और बुरा भी लगता है। अब जब मर्द दिवस पर आप इस तरह नजरअंदाज करेंगे तो बहुक बुरा लगेगा। वो बात अलग है कि वह यह कहे मर्द को दर्द नहीं होता!