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राजनीति के शेयर बाजार में आजकल उछाल देखने को मिल रहा है। जनता के बनाए उत्पाद आज करोड़ों में बिक रहे हैं। पूरी तरह मेक इन इंडिया योजना के तहत इन उत्पादों को तैयार किया गया। ठोंक-बजाकर और पूरी जांच पड़ताल के बाद जनता ने इन उत्पादों को बनाकर लोकतंत्र के बाजार में उतारा, लेकिन इनसे फायदा चवन्नी का न हुआ।
जी हां, नेता रूपी इन उत्पादों ने राजनीतिक मंडी में स्वयं बोली लगा ली है। कुछ किलो के भाव बिक रहे हैं, तो कुछ पाव के भाव बिकने को तैयार बैठे हैं। हर किसी को उसकी मार्केट वैल्यू के हिसाब से बेईमान बनाया जा रहा है। इसमें कुछ गलत नहीं है। जब दुनिया भर में कुछ न कुछ बिक रहा है, तो अपने नेताजी कैसे पीछे रह जाएं।
पाकिस्तान आतंकी बेच रहा है, अमेरिका हथियार बेच रहा है, चीन नकली सामान बेच रहा है और अपने यहां नेताजी के खरीदारों की होड़ मची है। इस समय देश के कई राज्यों से नेताओं के बिकने की खबर आ रही है। वैसे तो 'हाथ' से ही 'फूल' पकड़ा जाता है, पर आजकल फूल ने हाथ पर शिकंजा कस रखा है।
नोटबंदी की मार झेल रहे नेताओं को सत्ता का भत्ता तो चाहिए ही, इसलिए बिकना कोई गुनाह नहीं। अब जिसके पास पैसा है, वो लोकतंत्र को ताक पर नहीं, बल्कि मचान पर रखकर खरीद-फरोख्त कर सकता है। अब जिसकी जेब गरम, उसके पाले में जाने में क्या शरम और जिसने की शरम उसके बिहार के लाल की तरह फूटे करम।
हाथवाले के हाथ खाली होते जा रहे हैं और फूल वाले 10-10 करोड़ में विधायक रुपी बहुमूल्य चीज़ ढोते जा रहे हैं। वो लोग नासमझ हैं, जो इनके बिकने को गलत मानते हैं। हम अपना बहुमूल्य वोट देकर समझदार इंसान को ही नेता बनाते हैं और समझदारी इसी में है कि अपने मोल को पहचाना जाए।
बाजार का उसूल है कि मूल्यवान चीज़ ही बिकती है, तो इसमें गलत क्या। गरीबी, बेरोजगारी, बाढ़ पीड़ित या किसानों जैसी फालतू वस्तुओं पर पैसा लगाना घाटे का सौदा है। इनका कोई मोल नहीं, क्योंकि जो चीज मार्केट में ज्यादा होती है, उसके दामों का गिरना लाजमी है।
तमिलनाडु से लेकर जम्मू-कश्मीर तक, मणिपुर से लेकर गुजरात तक इन मूल्यवान उत्पादों को सात तालों के पीछे सुरक्षित रखा जा रहा है, ताकि इनको किसी की नजर न लगे। वैसे राजनीति के शेयर बाजार में फूल वाली कंपनी के शेयर उछाल पर हैं।
अब देखिए यूपी में साइकिल वाले भैया की भी फूल ने चूल हिला दी है। एक तो पहले से ही वो अपनी खानदानी साइकिल को मुश्किल से बचा पाए थे, अब ऊपर से उनकी साइकिल को धक्का देने वाले माननीय भी फूल की महक में खोने को बेकरार हैं।
हाल ये है कि मल्टीनेशनल कंपनी की तरह काम करते हुए फूलवाले दूसरी कंपनियों के उत्पादों को ऊंचे दामों में खरीद रहे हैं, ताकि दुकान लंबी चल सके और मार्केट में सिर्फ उनके अच्छे उत्पाद दिखें और दूसरी कंपनियां अभी भी नोटबंदी की मार झेल रही हैं और इस बात से दहशत में हैं कि उनके पास जो कुछ भी गोदाम में माल पड़ा है उसे कैसे सुरक्षित किया जाए। अब तो बस एक ही गाना याद आता है...दूल्हा नहीं, नेता बिकता है बोलो खरीदोगे...