मंगलवार। अभी सुबह की शुरुआत ही हुई थी। सूरज अब आसमान की काली चादर ढाह कर उसे पहले लाल-पीले और फिर नीले रंग में बदलने को तैयार था। लेकिन जम्मू-कश्मीर के नागरोटा के 166 आर्टिलरी के घेरे में ठीक इसी वक़्त सब कुछ बदल गया। जहां रात की काली चादर ढह नहीं पाई।
सीमा पार से आए कुछ आतंकियों ने बटालियन के घेरे में घुसपैठ कर ली थी। ग्रेनेड मारे, ताबड़-तोड़ गोलियां चलाईं। फिर घुस गए। बिल्डिंग के एक हिस्से में। इसके बाद शुरू हुआ। ऑपरेशन। ऑपरेशन इनकी मौत का। इनको करारा जवाब देने का। लेकिन इससे पहले कि पूरा ऑपरेशन खत्म होता। इंडियन आर्मी को अपने 7 जवानों की कुर्बानी देनी पड़ गई। 3 आतंकी भी मारे गए।
शहीद जवानों में 2 ऑफिसर और बाकी के 5 जवान थे। हमें पता है आपको ये खबर अब तक मिल चुकी होगी। टीवी से, अखबारों से और भी जगहों से। लेकिन आज इस हमले के बाद एक जरूरी बात जो हमें लगी की बतानी चाहिए। वो बताने आए हैं।
शहीद अफसरों में से एक थे मेजर कुणाल गोसावी। महराष्ट्र के किसान का बेटा। अभी-अभी दो दिन पहले ही छुट्टियां बिता कर लौटा था। और दूसरा था मेजर अक्षय गिरीश कुमार। इंडियन एयर फ़ोर्स के पूर्व पायलट गिरीश कुमार के बेटे। शायद देश के लिए लड़ने का जज्बा पिता से ही विरासत में मिली थी। बेंगलुरु का रहने वाला था।
पता है, मेजर अक्षय जेएनयू के पढ़े हुए थे। जी हां! जे एन यू! जिस जेएनयू को आप बात ही बात पर देशद्रोही घोषित कर देते हैं। उसे बंद करा देने की बात करते हैं। बिना ये सोचे समझे कि जेएनयू ने इस देश को क्या-क्या दिया है।
हां इस बात से भी इंकार नहीं है कि कुछ लफंगे, चोट्टे टाईप के लोग वहां नहीं हैं। हैं! बिल्कुल हैं। लेकिन उन कुछ गिने-चुने के नाम पर हम देश की इस विरासत को खत्म कर देना चाहते हैं। बर्बाद कर देना चाहते हैं।
सच कहूं तो इस खबर को लिखते-लिखते आंखें छल-छला गई। वजह नहीं पता। बस, 'यार, तेरी बहुत याद आएगी' दिमाग में घूम रहा है!