जम्मू कश्मीर में शादी एक बेहद ही शानदार मौका होता है। खाने पीने से लेकर उस पूरे मौके के जितने भी कार्यक्रम होते हैं सब के सब देखने लायक होते हैं। अब एक और बात सुनिए।
पाकिस्तान में शादियों के वक़्त गेस्ट को क्या खिलाना है, कैसे खिलाना है, कितना खिलाना है इसका अपना कानून है। लेकिन वो पाकिस्तान है। वहां तो बेटियों को सिर्फ इसलिए मार दिया जाता है, क्योंकि वो अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं। तो वो पाकिस्तान है लेकिन हम हिंदुस्तान हैं, इंडिया। अब सुनिए मुद्दे की बात।
जम्मू कश्मीर के खाद्य आपूर्ति विभाग ने भी एक ऐसा ही आदेश जारी किया है जिसका विरोध होना जायज है। जिसमें ये कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में जितनी भी शादियां होंगी उसमें खाने में कितने आइटम होंगे, शादी में कितने लोगों को बुलाना है, लड़के की शादी में कितने लोग आ सकते हैं, लड़की की शादी में कितने गेस्ट आ सकते हैं, ये सब विभाग तय करेगा।
अब सवाल ये है कि मेरे पास पैसे हैं। मैं एक अमीर आदमी हूं, क्योंकि मेरी दस पुश्तों ने सिर्फ इसलिए मेहनत की थी ताकि मैं अपने शौक की ज़िंदगी जी सकूं। अपने सारे शौक पूरे कर सकूं। अब जब मेरी शादी का मौका है तो सरकार एक तुगलकी फ़रमान जारी करती है कि आप शादी में अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकते।
क्यों नहीं कर सकते। अजी मेरा हक है, फंडामेंटल राइट्स कहते हैं इसे। मैं वो हर काम करने को आज़ाद हूं जिससे किसी और को कोई नुकसान ना हो। फिर हम शादी में अपने गेस्ट बुलाएं, किसे क्या खिलाएं, इससे दूसरों को क्या लेना देना।
आप सभी को एक बात जान लेनी चाहिए कि जम्मू कश्मीर में शादियों के वक़्त खाने पीने को लेकर एक पुरानी परंपरा है। उसे 'वाज़वान' कहा जाता है। फिर सरकार को ये हक़ कौन देता है कि आप किसी की परंपरा या मान्यताओं पर भी रोक लगा दें? फिर आपमें और चीन के दिखावटी लोकतंत्र में क्या अंतर रह जाएगा? पाकिस्तान में जारी होने वाले फरमानों से आप कितने दूर रह जाते हैं? या फिर आपको जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान बना देने का शौक है, वक़्त के साथ?
जम्मू कश्मीर में एक बार पहले 2004 में भी शादियों में कितने गेस्ट बुलाने हैं इस पर एक आदेश जारी किया गया था। लेकिन हाई कोर्ट ने एक पिटीशन की सुनवाई में इस आदेश पर स्टे लगा दिया गया था। तब जम्मू कश्मीर में पीडीपी-कांग्रेस की सरकार थी।
1973 में भी कुछ इसी तरह का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। लेकिन पब्लिक के विरोध के बाद सरकार ने फैसला वापस ले लिया था। कश्मीर के एक लोकल अखबार के मुताबिक़ स्टेट लॉ मिनिस्ट्री के अधिकारियों का कहना है कि, "उन लोगों को भी समझ नहीं आ रहा है कि ये आदेश किस कानून के तहत लाया गया है।"
2004 में जब ये आदेश आया था। तब जो विभाग के मंत्री थे। उनका कहना है कि, "ये फैसला लेने का हक़ सिर्फ कैबिनेट को है।"
कोई मंत्री जी को बताओ भाई, उनसे कहो कि कैबिनेट मतलब पूरा सदन होता है। जहां जनता के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं!