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वैसे तो इंडिया में कई तरह के मुकदमे और फैसले आते रहते हैं, मगर केरल हाईकोर्ट का फैसला काबिले-गौर है। जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले से असहमति जताई है जिसमें उसने कहा था मातृत्व कोई अपराध नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार प्रेग्नेंसी के कारण कम हाजिरी वाली छात्राओं को परीक्षा में शामिल होने से रोकने को मातृत्व को अपराध नहीं माना जाना चाहिए।
हालांकि केरल हाईकोर्ट का कुछ और ही मानना हैं। कोर्ट ने कहा है कि प्रेग्नेंट होना लड़कियों या महिलाओं की व्यक्तिगत चॉईस है और प्रेग्नेंसी के कारण अटेंडेंस शॉर्ट होने पर उनके लिए अलग से नियम नहीं बनाए जा सकते। पूरा मामला कन्नूर विश्वविद्यालय का है जिसमें कोर्ट ने बीएड छात्रा जैसमिन वीजी की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
जैसमिन को दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में 45 प्रतिशत से कम हाजिरी होने के कारण शामिल करने से इनकार कर दिया था। जबकि यूनिवर्सिटी के नियमों के अनुसार 75 प्रतिशत हाजिरी होना जरुरी है। जैसमिन दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर ही परीक्षा में शामिल करने की गुहार की थी। केरल हाईकोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से अहमति जताते हुए कहा है कि प्रेग्नेंसी अचानक आने वाली स्थिति नहीं है और छात्रा को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए थीं। प्रेग्नेंसी एक ऑप्शनल चॉईस थी और कॉलेज के फैसले को मातृत्व के अधिकारों का हनन नहीं कहा जा सकता।
जज साहब, आपका फैसला सर्वमान्य है। हम आपकी समझ, ज्ञान, विवेक और अनुभव पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, मगर हमारी भी कुछ दलीलें हैं जज साहब, ज़रा उन पर भी गौर फरमाइये:
जज साहब, माँ बनना किसी के हाथ में नहीं। यह बात तो विज्ञान भी सिद्ध करता है। अब साइंस को तो शायद आप भी नहीं झुठला सकते। खैर, चलिए वो दूसरी बात मगर शायद यह किसी भी महिला के बस की बात नहीं कि वो तय कर पाए कि वो कब माँ बनेगी या कब नहीं। यदि प्रेग्नेंसी अनचाही न होती तो गर्भनिरोधक बनाने, बेचने और बढ़ावा देने की ज़रूरत ही क्या थी?
दूसरी बात, कानून के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान आपको ऑफिस से छुट्टी मिलती है। 6 महीने की छुट्टी की पूरी तरह से ‘छुट्टी’ नहीं कर सकते। वो उस महिला का अधिकार है, तो उसका हनन नहीं होना चाहिए। कानून ही अगर कानून को नज़रअंदाज़ करेगा, तो आम आदमी तो उसे हाथ में लेगा ही...
इसके अलावा, एक बात और भी है। लगभग सभी स्कूल, कॉलेज और युनिवर्सिटी में उन मेडिकल कंडीशंस में रियायत मिलती है, जिनमें स्टूडेंट स्कूल अटेंड करने में असमर्थ हो। तो क्या प्रेग्नेंसी उस कैटगरी में नहीं गिनी जाती? हाँ यह माना जा सकता है कि इस कायदे में महिला की उम्र भी देखी जानी चाहिए।
केरल देश के सबसे ज़्यादा शिक्षित राज्यों में से है। यदि वहाँ से ऐसे अपवाद सामने आएंगे तो महिलाओं के लिए आगे बढ़ना थोड़ा कठिन होगा। मातृत्व के साथ आगे पढ़ने का चाह रखने वाली महिलाओं के प्रोत्साहन देना ज़रूरी है। आगे जो आपका फैसला है, वो सर्वमान्य है ही!!