पिछले 4 दिनों से हम सभी कश्मीर की ख़बरों में डूबे हुए हैं। इसी बीच कश्मीर से लगभग 2000 किमी और दिल्ली से करीब 1500 किमी दूर उड़ीसा में एक घटना घटी। जिसने कईयों की ज़िन्दगी बदल दी।
दिन शनिवार, तारीख 9 जुलाई 2016। समय रात के ठीक 9 बजे। जगह कंधमाल, उड़ीसा। पास के बाज़ार से एक ऑटो में बैठे कुछ लोग वापस अपने गांव 'गुमदुमाहा' लौट रहे थे। रास्ते में ऑटो एक जगह कीचड़ में फंस जाता है। कुछ लोग ऑटो से उतरते हैं। ऑटो को धक्का देकर कीचड़ से बाहर निकाला जाता है। जैसे ही ऑटो कीचड़ से बाहर निकल कर चलने को होता है, बाईं तरफ से अचानक अंधाधुंध फायरिंग शुरू होती है। ऑटो जिसमें 16 लोग खचाखच भरे हैं। अचानक से उसमें अफरा-तफरी मचती है। और कुछ लोग ऑटो से नीचे गिर जाते हैं। कुछ को भागने का मौका नहीं मिलता है। और गोली लगने से वहीं मर जाते हैं।
एक 2 साल का बच्चा जो अपनी मां की गोद में इन सब से अनजान सो रहा था। एक गोली उसे भी लगती है और वो बच्चा वहीं दम तोड़ देता है। बच्चे की मां और बाप दोनों जख्मी हो जाते हैं। थोड़ी देर बाद ये फायरिंग रुक जाती है। लोग वहां से उठ कर भागना शुरू करते हैं। शुरू में पता चलता है 6 लोग मरे हैं। जिनमें औरतें, बूढ़े और बच्चे हैं।बीबी मलिक जो अपनी पत्नी के साथ बाज़ार गया था। वहां से राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार मिशन में मिले 5500 रूपए और चावल की दो बोरियां लिए लौट रहा था। आते-आते उसने शहर के ही एक आदिवासी आवासीय विद्यालय से पढ़ रही अपनी बेटी को भी साथ ले लिया था क्योंकि वो थोड़ी बीमार थी। जिसकी उम्र है 10 साल। मालिक कहता है, "जैसे ही गोलियां चलनी शुरू हुईं, हम कुछ समझ पाते। मैं और मेरी बेटी ऑटो से नीचे गिर गए। थोड़ी देर के बाद गोलियां चलनी बंद हो गईं। तब मैंने देखा मेरी बेटी सड़क पर खड़े रो रही है और अपनी मां को ढूंढ रही है। मैं बहुत डर गया था। मैं उसे वहां से लेकर गांव की तरफ भगा और गांव से और लोगों के साथ वापस लौटा। मैं जैसे ही वहां पहुंचा तो मैंने देखा मेरी पत्नी जिसे गोली लगी है। वहीँ एक नाले में गिरी मरी पड़ी है।"
दुलारा दिगल, जिसकी उम्र 20 साल है। इसके पापा, जो कि इस गांव के पूर्व सरपंच भी थे और मां, बाज़ार से कुछ सामान लाने और बैंक से ग्रामीण रोजगार मिशन का कुछ पैसा निकालने गए थे। कहता है, "रात के 9 बजे मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी। मैंने सोचा आस-पास कहीं पटाखे छूट रहे होंगे। लेकिन थोड़ी ही देर बाद मेरी मां भागे-भागे आ रही थी। उसकी पीठ पर गोली लगी थी। थोड़ी देर बाद जब गांव वालों के साथ मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा मेरे पापा की मौत हो चुकी थी।"वो 2 साल का बच्चा, जिसका नाम जिहाद दिगल था। उसकी दादी फूट-फूट कर रो रही है। जब लोग उसके पोते को दफना रहे हैं। वो बस इतना ही कहती है ये मेरे बेटे और बहू का पहला बच्चा था। मेरी बहू इसे गोद में लिए हुए थी, जब उन्होंने इसे मार दिया!
ऊपर जो कुछ भी आपने पढ़ा क्या था ये सब? आखिर गोलियां चलाने वाले कौन लोग थे? और अब क्या होगा आगे इस केस में?
इस ज़िले के पुलिस कप्तान हैं, पिनाक मिश्रा। इंडियन एक्सप्रेस?ने उनसे बात की। उनका कहना था, "SOG (एंटी माओइस्ट फोर्स) की 15 लोगों की टीम को इंटेलिजेंस से खबर मिली थी। जिसके बाद उन्होंने ऑपरेशन को अंजाम दिया। इस टीम के ऑफिसर का कहना है कि पहले उधर से फायरिंग हुई फिर इसके जवाब में हमने फायरिंग की।"
जब इनसे पूछा गया कि साहब इनके पास तो नाईट विज़न डिवाइस भी होती है। उन्होंने इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया? तो जवाब में पुलिस कप्तान ने सिर्फ़ इतना ही जवाब दिया कि उस रात बहुत बारिश हुई थी, जिससे परेशानी हो गई।
एस.पी, मिश्रा अपनी बात खत्म करने से पहले कहते हैं, "लेकिन मैं यहां आपको बता दूं जो लोग मारे गए हैं या घायल हैं, वो माओवादी नहीं थे। डिपटी एसपी की एक टीम बनाई गई है। जो इस मामले की जांच कर रही है।"खैर अब जांच और मांगें तो चलती ही रहेंगी। मरने वाले सभी दलित या आदिवासी थे। बाद में 6 लोगों में से एक महिला ज़िंदा बताई गई जिसका इलाज़ चल रहा है। 5 बेगुनाह मौतें। कोई बात नहीं आप टीवी देखिये और खुश होइए। और कल फिर से कोई नया मुद्दा मिल जाएगा आपको आपकी शाम की चाय पीने के लिए। और नहीं मिलेगा तो हम तो हैं ही!
न मैं आपसे कोई सवाल कर रहा हूं। और न ही किसी सरकारी तंत्र से। सिर्फ़ एक खबर है जो आप तक पहुंचनी ज़रूरी थी। इसे भी बाकी खबरों की तरह पढ़ना और भूल जाना। सिर्फ़ भूलने से पहले उस 2 साल के बच्चे की शक्ल याद कर लेना। जब उसे गोली लगी होगी तब उसके चेहरे पर क्या भाव बना होगा। उस 10 साल की बच्ची का शक्ल याद कर लेना जब वो सड़क पर खड़े रोते हुए अपनी मां को ढूंढ रही थी। और जब उसे मां मिली तो वो किस हालत में मिली! बाकी तो जो है सो हइए है।