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इसको 10 लोगों को शेयर नहीं किया तो बुरी खबर आएगी…. मार्केट में नया है... हम ग्रुप में जब भी आते हैं धमाल मचा कर जाते हैं…. ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि सरकार हिल जाए। ये वही मैसेज हैं जिनके लिए दिमाग का दही नाम का मुहावरा बनाया गया था। जिस व्हाट्सएप का नाम सुनकर दिल कभी बाग-बाग हो जाया करता था। आजकल उसी व्हाट्सएप को खोलते ही दिमाग भन्ना जाता है।
व्हाट्सएप के लिए दिल और दिमाग की इस खिन्नता का सबसे बड़ा कारण है बेलगाम ग्रुपबाजी। इतने तो जीवन में रंग नहीं जितने व्हाट्एस पर गुप्स हैं। एक ग्रुप...दोस्तों का, एक दफ्तर वालों का, एक बचपन के स्कूल के दोस्तों का... तो एक ग्रुप दोस्तों के बीच करीबी दोस्तों का। परिवार का एक अलग ग्रुप होता है। इसके अलावा मोहल्लें, कॉलोनी और सोसाइटी के ग्रुप अभी बचा ही है। आजकल तो बच्चों के स्कूल वालों का ग्रुप भी बना हुआ है।
मतलब... एक मोबाइल नंबर इतने ग्रुपों से घिरा होता है कि मोबाइल का डाटा पैक ऑन करते ही टनटनाते हुए एक साथ एक-आध हजार मैसेज ठीक वैसे ही आ जाते हैं जैसे बाहुबली फिल्म में भल्लारदेव के इशारे से नकली राक्षसों पर तीरों की बारिश हुई थी। किसी का भी फोन उठा कर देखिए, आपको 4-6 ग्रुप ऐसे मिल जाएंगे जिस पर सैकड़ों मैसेज बिना पढ़ें ओंघा रहे होंगे।
जितनी तेजी से लोगों को व्हाट्सएप से इश्क हुआ था अब उतनी ही तेजी के साथ इससे बेरुखी होती जा रही है। हर ग्रुप में एक ही मैसेज 5-5 बार ठेले गए होते हैं, इन सबके बीच काम का मैसेज मिस हो जाता है सो अलग, इसलिए काम की बात करने के लिए लोग व्हाट्सएप से ज्यादा दूसरे मीडियम को प्रीफर करने लगे हैं।
जुकरबर्ग साहब शायद खुद व्हाट्सएप के इंडिया वाले एपलीकेशन वर्जन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, नहीं तो अब तक न जाने कितने ग्रुप से लेफ्ट मार चुके होते। ग्रुप में जबरन जोड़े जाने वालों पर केस कर दिया होता। और तो और एक ही मैसेज अठहत्तर बार पढ़कर हाथ की नस काटने के लिए 1 रुपये वाला ब्लेड ढूंढ लिया होता।
वक्त रहते उन तक इस जानकारी को पहुंचाना होगी, इन ग्रुप बाजों का इलाज ढूंढना होगा नहीं तो लोग व्हाट्सएप का त्यागकर फिर एसएमएस वाले दौर में पहुंच जाएंगे। इसलिए इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि बात फेसबुक वाले जुकरर्बग साहब तक हमारी अपील पहुंचे। वो समझे कि जिस व्हाट्एसएप को मजे के लिए लिए बनाया था वो सजा बन चुका है।