विस्तार
हाल ही मैं दिल्ली नगर निगम ने अखबार में बंदरों को पकड़ने वाले योग्य उम्मीदवार के लिए इश्तेहार निकाला, लेकिन अब तक किसी ने मंकी कैचर के पद के लिए आवेदन नहीं किया है। यह खबर बंदरों को भी पता चल गई। बंदरों के कक्का... 'बजरंगी' के अंदर गमों का समंदर उफना गया और अपनी व्यथा सर जी को सुना डाली। आप भी सुनिए।
बजरंगबली की कसम,
मैं पहले बहुत तदुरुस्त और खुश मिजाज हुआ करता था। दिन भर कभी आम तो कभी नीम के पेड़ पर उछल कूद करता था। जी भरके केले खाता था। जामुन और बेर से नाश्ता होता था। खा खाके पेट भरा रहता था। अब केवल जज्बात रह गए हैं। सारी बातें बेमानी हो चली हैं।
सर जी आपके लोगों ने हमारे हरे भरे जंगलों को कंकरीट के जंगलों में बदल दिया है। हमारे आम, केले, पपीते सब आपने हजम कर लिए हैं। अब हम जाएं तो कहां जाएं। करें तो क्या करें। ले देकर एक ही रास्ता बचता है और रास्ता शहर की ओर जाता है। क्यों कि हमारे सारे फल-फूल शहर की ओर ले जाए गए हैं।
अब जब हम यहां आए को लोग डंडा लेके खड़े हैं। मजबूरन हमें कभी रेलवे स्टेशनों की छतों को कभी बस अड्डों को ही अपना बसेरा बनाना पड़ता है। लेकिन सर जी को बंदर पसंद नहीं है। हमें धर दबोचने के लिए अखबार में इश्तेहार दे रहे हैं। वो तो बजरंगबली की कृपा रही कि कोई आदमी ही नहीं मिला इस 'झपट्टामार' नौकरी के लिए।
अरे भई, पकड़ना है तो ढिंचैक पूजा का पकड़ो। जिसके सुरूर में बच्चों ने घरवालों का जीना हराम कर दिया है।
दिल्ली की बसों और मेट्रो में फिरते मनचलों को पकड़ो जो दिन दहाड़े वारदातों को अंजाम देकर निकल लेते हैं।
उन घूसखोरों को पकड़ो, जो जनता को लूट लूटकर खा रहे हैं और डकार भी नहीं ले रहे हैं।
अरे उन बिचौलियों और दलालों को पकड़ो जिनकी वजह से महंगाई डायन फुनफुनाए जा रही है।
प्राइवेट स्कूलों के मालिकों को पकड़ो जो शिक्षा के नाम पर महंगाई का काला कारोबार चला रहे हैं।
उन डॉक्टरों को भी पकड़ों जो अब भगवान नहीं, राक्षस हो गए हैं और जनता को इलाज के नाम पर और बीमार कर रहे हैं।
अरे भई, उन मिलावट खोरों को पकड़ों जो खाने के नाम पर आपके मुंह में जहर का निवाला ठूस रहे हैं।
...और उनको तो जरूर पकड़ों जिन्होंने जंगलों को काट काटकर श्मशान बनाया है।
पर्यावरण को जहरीले धुएं से सराबोर करने वालों और पॉलीथीन और शराब बनाने वालों को पकड़ो। भ्रष्टाचारी खादीधारियों को पकड़ो और सबसे पहले अपने इंसानी अहंकार के पकड़ो।