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महानायकों के 'बर्थडे स्पेशल' शोर के बीच हरिशंकर परसाई के जन्मदिन की याद

Updated Wed, 11 Oct 2017 08:20 PM IST
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Memoir of Satirist Harishankar Parsai among Birthday Special noise of Celebrities
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विस्तार

1993 में 'वाणी प्रकाशन' के द्वारा व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की किताब 'ऐसा भी सोचा जाता है' आई थी। शुरुआत जन्मदिन से होती है। 'इस तरह गुजरा जन्मदिन' शीर्षक से छपे पहले ही लेख पर परसाई ने अपनी आपबीती पर व्यंग्य किया है। आज शायद की कोई महान लेखक अपने ऊपर ऐसी चुटकी ले। परसाई का वह व्यंग्य आज तमाम महानायकों और कलाकारों के जन्मदिन के शोर-शराबे में उनकी याद दिलाता है। 

स्वर्गीय परसाई जी ने जिस तरह से अपने ही जन्मदिन पर इसे मनाने के तरीके पर व्यंग्यबाण चलाया, उसे जानकर आपको गुदगुदी तो होगी, लेकिन आप बिना खींचे ही एक गभीरता के भंवर में धंस जाएंगे, इसलिए पहले ही आपको सावधान कर देते हैं, यह कहानी अपनी रिस्क पर पढ़ें।

परसाई चुटकी लेते हुए बताना शुरू करते हैं कि एक सज्जन जब सुबह उनके घर एक गुलदस्ता लेकर आए और उन्होंने बताया कि वे उनको जन्मदिन की शुभकामनाएं देने आए हैं, तब उन्हें मालूम हुआ कि उस दिन बाईस अगस्त था और वह इस दिन पैदा हुए थे। परसाई लिखते हैं कि उन सज्जन के लिए चाय आई, लेकिन वे मिठाई की आशा करते होंगे। आखिर में उन सज्जन ने उन्हें बधाई देने लायक नहीं समझा क्योंकि तब से वह कभी फिर जन्मदिन की बधाई देने नहीं आए।

कहने को परसाई जी ने अपने ही जन्मदिन को लेकर व्यंग्यबाण छोड़ा, लेकिन बात समझी जाए को मामला गंभीर है। क्यों कि आज सिनेमाई कलाकारों को तो छोड़िए, अदना सा स्क्रिप्टराइटर भी अपने जन्मदिन पर ऐश्वर्य की नदी बहा देता है। 

कहने का मतलब है कि अगर आदमी जरा सी भी शोहरत पाता है तो मार इसका रायता फैला देता है। हफ्तों पहले से उसके जन्मदिन की तैयारियां होने लगती हैं, वहीं एक परसाई जी थे जिनके बारे में औने-पौने लोगों को ही पता था। 

परसाई जी एक जगह लिखते भी है कि हां, अपने जन्मदिन के समारोह का इंतजाम खुद कर लेने वाले मैंने देखे हैं। यहां तक की स्वर्ण जयंती, हीरक जयंती खुद आयोजित करके ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे दूसरे लोग उन्हें कष्ट दे रहे हों।  पहले कहते हैं कि फलां आयोजन में आइएगा। फिर कहेंगे कि आप ही लोगों का आयोजन है, आप जानें।

परसाई जी अपने एक आयोजन का जिक्र बड़ी दिलचस्पी से चुटकी लेते हुए करते हैं। इसमें उन्होंने अखबारों की बेलगाम हो रही उनकी भाषाशैली पर चुटकी ली। 

प्रगतिशील लेखक संघ के संयोजक जय प्रकाश पांडे के बुलाने पर वह एक कार्यक्रम में पहुंचे तो एक अधिकारी थाली में नारियल और फूलमाला समेत तमाम पूजा का सामान लेकर उनके पीछे हो लिए। परसाई जी ने बोला कि बहुत उचित है कि कलकत्ता से आई विष्णुकांत शास्त्री का स्वागत होना चाहिए। इतने में शास्त्री जी बोले नहीं, आपका सम्मान होना है। इतना कहने भर की देर थी, परसाई जी ने माथा आगे बढ़ा दिया। अधिकारी ने उन्हें टीका लगाया और नारियल देकर फूलमाला पहना दी। इस पर अगले दिन अखबार में छपा- तुलसी अकादमी वाले दोपहर को परसाई जी के घर घुस गए और उनका सम्मान कर डाला। परसाई जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे किताब में बताते हैं कि ऐसे बलात्कार की खबरें छपती हैं। 

आगे बताते हैं कि 21 तारीख को ही एक समारोह उनकी गैरमौजूदगी में हुआ तो दूसरे दिन पड़ोस में रहने वाले एक दंपति एक गुलदस्ता और एक लिफाफा लेकर घर आ गए। औपचारिक बातचीत के बाद लिफाफा खोला तो उसमें एक हजार रुपये थे। यहां परसाई जी फिर चुटकी लेते हैं, कहते हैं कि 'इसकी क्या जरूरत थी' जैसे फालतू वाक्य बोले बिना मैंने झट से रुपये रख लिए। सोचा इसी को गुड मॉर्निंग कहते हैं। अगले जन्मदिन पर अखबार में लिखवाउंगा कि उपहार में खाली पैसे ही दें। लेकिल फिर पुर्नविचार करने पर मन बदल गया, का है कि ऐसा पढ़कर किसी के न आने की आशंका ने जो घेर लिया।

परसाई जी ने उस चिंता से भी परदा हटाया जिसकी वजह से उपहार में रुपयों के दिए जाने पर वह जोर दे रहे थे। परसाई लिखते हैं कि उपहारों में ऐसा होता ही कि जो टेबल लैंप आपने किसी को उपहार में दिया है, वही घूम फिरकर आपके पास आ जाता है।

परसाई जी ने उनको शुभकामनाएं देने के लिए आने वाले सज्जनों के मन की व्याथाओं पर भी चुटकी लेते हुए लिखा- कुछ लोग घर में बैठे कह रहे होंगे- साला अभी तक जिंदा है। क्या किया? एक साल और जी लिए तो कौन सा पराक्रम किया? 

इसी बहाने उन्होंने एक और गंभीर समस्या पर चोट कर दी। लड़कियों की शादी को लेकर।

वे लिखते हैं कि एक दिन भी जी लेना पराक्रम है। एक मित्र ने रिटायर होने के दस साल पहले तीन लड़कियों की शादी कर डाली। वह दुनिया के प्रसिद्ध पराक्रमियों के जैसे ही तो हैं। उन्होंने बात महाभारत काल में घुमा दी और लिखा कि भीम वीर और पराक्रमी थे, अगर उन्हें तीन लड़कियों की शादी करनी पड़ती तो हालत चूहे जैसी हो जाती।

अंत में वह जिजीविषा पर जोर देते हैं। इस पर उन्होंने प्रसिद्ध इंजीनियर डॉ. विश्वेसरैया का उदाहरण दिया। वह लिखते हैं कि विश्वेसरैया के 100वें जन्मदिन पर एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि अगले जन्मदिन पर आपसे मिलने की आशा करता हूं। इस पर विश्वेसरैया बोले- क्यों नहीं मेरे युवा दोस्त, तुम बिल्कुल स्वस्थ्य हो, यह उत्साह से जीना है। वे बूढ़े भी जीते हैं जिनकी बहुए उनकी सुन लेने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।

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