Home Panchayat Minister Sir Your Promises Are Not Fulfilled By Merely Distributing Laptops

मंत्री जी! देखिए क्या हुआ आपके बांटे लैपटॉप का!

Updated Mon, 23 May 2016 07:43 PM IST
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राम मनोहर लोहिया के नाम पर उत्तर प्रदेश में जो समाजवाद शुरू हुआ है उसके वायदे लगभग पूरे हो चुके हैं। जी हां, दिल्ली के होर्डिंग्स तो कुछ ऐसा ही कह रहे हैं। अब बहस इस बात पर भी हो सकती है कि उत्तर प्रदेश में किए वायदों का ज़िक्र दिल्ली में क्यों? पर इससे बड़ा मुद्दा ये है कि वायदों की समय सीमा खत्म होने को है और भारत की जनता इतनी मासूम है कि इसे वायदे करने से लेकर वायदे पूरे करने तक सबकुछ याद दिलाना पड़ता है। Laptop2 शिक्षा के नाम पर जब समाजवादी लैपटॉप बांटे गए तो सिस्टम ऑन करते ही विंडोज़ का कोई साइन नहीं आता था। पिता-पुत्र असीम प्रेम के साथ स्क्रीन पर दिखते थे और साथ छपा होता था - 'पूरे होते वादे'.. ताकि लैपटॉप चलाने वाला गलती से भी ये न भूल सके कि ये उत्तर प्रदेश सरकार की सौगात है और सरकार ने अपना वादा पूरा किया तो आगे भी वोट यहीं देना है। ख़ैर, यहां जनता का भी वोट देने का कोई पैमाना नहीं होता, वह खुद नहीं जानती कि किसे वोट दे रही है और कई बार बिना उसके बूथ तक पहुंचे भी वोट पड़ ही जाते हैं। मंत्री जी को लगता होगा कि उन्होंने लैपटॉप बांटकर पासा पलट दिया, अब उसके बाद उस लैपटॉप से किस तरह की शिक्षा को प्रोत्साहन मिला यह जानने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। शायद वो जानते भी हों पर जानना नहीं चाहते। महज़ 33% अंक प्राप्त करने वालों के पास भी सरकार की कृपा से लैपटॉप है पर इसके नाम पर तकनीक का जिस तरह बलात्कार हुआ वह जानकर एचपी कम्पनी को निश्चित ही खुदखुशी कर लेनी चाहिए। क्या होता है अखिलेश जी के लैपटॉप्स के साथ ये हम सब जानते ही हैं, आइए कुछ किस्से और बताएं। Laptop1 रायबरेली में एक गांव है 'डलऊखेड़ा', वहां भी हर घर में अखिलेश का उपहार है। लोगों को पता भी नहीं है कि इसका काम क्या है। उन्हें लैपटॉप चलाना तो दूर शट-डाऊन करना भी नहीं आता। उन्हें उसके प्रोग्राम्स और ऐप्लीकेशंस से कोई मतलब नहीं, वे एक ही बटन समझते हैं - पावर बटन। लैपटॉप ऑन किया, सीडी लगाई और पूरा परिवार बैठ गया फिल्म या रामायण देखने और फिर पावर बटन से ऑफ़, बस हो गया काम। एक और जगह की घटना बताते हैं। यहां के लड़के थोड़े चालाक निकले। लैपटॉप में खूब सारी फिल्में डलवाईं और खिड़की खोलकर बैठ गए - 10 रुपये में एक फिल्म देने। शुक्र है मंत्री जी का लैपटॉप रोजगार दे रहा है.. बिना शिक्षा के ही सही। बाकि के लोग इसे डीवीडी प्लेयर से अधिक कुछ समझने की जद्दोजहद ही नहीं करते। अगर फिल्मों में रुचि हो तो ठीक है नहीं तो बेच देंगे 5 हज़ार में। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि वो 5 हज़ार से कहीं ज्यादा कीमती है। क्या करेंगे कीमत का? क्या वैल्यू है इसकी? सबके पास तो है.. और इन्हें तो चलाना भी नहीं आता। इंटरमीडिएट पास कर के लड़के प्रशासन में भर्ती हो जाते हैं, वहां रात में थकान दूर करने के लिए पोर्न फिल्में चलाई जाती हैं, अब इससे बड़ा योगदान क्या होगा? तो मंत्री जी के वादे पूरे हो गए और - "अब हैं नये इरादे".. मंत्री जी ने उच्च शिक्षा के लिए किताबें ही दिलवाई होतीं तो शायद कुछ काम बन जाता, पर उससे उनका काम शायद नहीं बनता। अब उनका काम बन जाएगा और जनता इंतज़ार करेगी अगले वादों का।
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