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पद्मावती: हिंदुस्तान में भावनाएं सहूलियत के हिसाब से आहत होती हैं

Updated Mon, 20 Nov 2017 07:21 PM IST
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Satire: Deepika Padukone Bollywood Film Padmavati and Controversy
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फिल्म पद्मावती को लेकर आहत हो रही भावनाओं को देखकर एक बात साफ है कि हिंदुस्तानी पढ़ाई में कैसे भी हों, लेकिन इतिहास उनका फेवरेट सब्जेक्ट है। इसीलिए यह हल्ला जोरों से मचा है कि संजय लीला भंसाली ने इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर फिल्म बनाई। लेकिन भाई... रजनीकांत को लेकर कोई कुछ क्यों नहीं कहता... कि जब मने आए भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानून जैसे विषयों से जितना मर्जी चाहें छेड़छाड़ कर देते हैं।

इसका मतलब साफ है कि इस देश में भावनाएं सुविधा, सहूलियत और फायदे के हिसाब से आहत होती हैं। मतलब जहां जैसी होनी चाहिए, वैसी नहीं होतीं। गरीबी, अशिक्षा, बलात्कार, भृष्टाचार के खिलाफ भी सहूलियत के हिसाब से ही भावनाएं आहत होती हैं। 

भावनाएं आहत होने के लिए कैटेगरी भी मायने रखती है। जैसे कि बेरोजगारों और फ्रेशरों की तो भवनाएं ही नहीं होतीं। बाल मजदूरों को तो भगवान भावनालेस बनाकर भेजता है। गरीब की लुगाई और लड़कियां जिंदगी भर अपनी भावनाओं को दबाकर रखती हैं ताकि कहीं दूसरों की भावनाएं आहत न हो जाएं। गांव का गरीब और दलित आदमी डरता है कि साहूकारों की भावनाएं आहत न हो जाएं। ऑफिस का एम्प्लॉयी डरता है कि बॉस की भावनाएं आहत न हो जाएं। परिवार-समाज की भावनाओं का बोझ प्यार में पड़े प्रेमी-प्रेमिकाओं के अरमानों को कुचल देता है। 

कुलमिलाकर भावनाओं और उनके आहत होने की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि अगर जोड़ दी जाए तो इंडिया से अमेरिका तक लंबी बनेगी।

इन दिनों राजस्थान के एक वर्ग की भावनाएं ज्यादा आहत हो रही हैं। जिसके लिए हो रही हैं, वह कई सदियों पहले सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी के ग्रंथ की नायिका रही थी। इस नायिका के लिए के लिए हिंदुस्तान में कई धड़ों में राय बंटी है। एक धड़ा नायिका को इतिहास का असली किरदार यानी चित्तौड़ की रानी पद्मावती के रूप में मानता है, और दूसरा रानी का वजूद कल्पना में तलाशता है। लेकिन एक वर्ग रानी का वंशज होने का दावा कर रहा है और रानी की कहानी पर बनाई गई फिल्म से इसलिए आपत्ति कर रहा है क्यों कि उसे लगता है कि उसके गौरवशाली इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर फिल्म बनाई गई है।

शुरू में मामला हल्का लग रहा था, लेकिन अब इतना तूल पकड़ चुका है कि पद्मावती का रोल करने वाली दीपिका पादुकोण की नाक और गर्दन को काटने की कीमत इतनी सहजता से लग रही है कि जैसे रेड़ी पर फल और सब्जियों की लगती है।

एक आदमी ने उन्हें पूरा फूंकने पर इनाम रखा है। हर तरफ से इनाम की रकम जोड़ने पर करोड़ों की होती है। इतनी रकम सही से इस्तेमाल की जाए तो कम से एक इंडस्ट्री खड़ी करके हजारों बेराजगारों को रोजगार दिया जा सकता है। लेकिन यहां बेरोजगारों और उससे पनपती गरीबी से भावनाएं आहत होने का सवाल नहीं है, तो खर्च कौन करे! 

यह वही राजस्थान है जहां सितंबर 1987 में लोगों ने 'रूप कंवर सती कांड को' जबरन अंजाम दिया था। देवराला में पति की मौत के बाद 18 वर्षीय विधवा को जबरन चिता पर बैठाकर जला दिया गया था। आन-मान मर्यादा की रक्षा करने वाले और बात-बात पर तलवार निकाल लेने वाले लोगों की भावनाएं तब तिनके के भी समान आहत नहीं हुई थीं। 

सूबे में लड़कियों को कोख में मारने और बाल विवाह के आंकड़े औसत के ऊपर हैं, लेकिन मज्जाल जो किसी की भावनाएं आहत हो जाएं। और तो और एक काला कानून है कि सरकारी अफसरों के खिलाफ कोई कुछ भी नहीं लिख सकता, इस पर तो भावनाएं आहत होने का सवाल ही नहीं।

जरा सोचिए, क्षत्रियों की भावनाएं आहत होतीं तो रामायण टीवी पर नहीं आती। यादवों की भावनाएं आहत होतीं तो श्रीकृष्णा सीरियल नहीं बनता। कई फिल्में नहीं बनतीं जिनमें भगवानों को दिखाया गया है।

अगर आपकी भी कुछ भावनाएं हों तो कमेंट बॉक्स में जाहिर करें।

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