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देश के भविष्य पर चढ़ रही मोटापे की चर्बी, इस खतरे से कैसे बचें?

Updated Tue, 28 Nov 2017 01:19 PM IST
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Satire: Future of India is facing obesity
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यदि आकाश की शोभा तारे हैं तो धरती की शोभा हैं बच्चे। ये बच्चे ही आगे चलकर तमाम जिम्मेदार पदों को संभालते है। कोई नेता बनता है, कोई अभिनेता... इसीलिए कहते हैं कि बच्चे ही देश की भविष्य होते हैं। दुनिया भर के सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवी लोग बच्चों को सही परवरिश और शिक्षा दिए जाने की हिमायत भी इसीलिए करते हैं क्यों कि उन्हें ही आगे चलकर दुनिया चलानी होती है। 

दुनिया भर में आज भारत की धाक बनी हुई है, तो इसकी वजह भी बच्चे ही हैं जो जवान हो चुके हैं। युवा प्रतिशत के मामले में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में युवाओं की तादात ज्यादा है। लेकिन यह उपलब्धि बरकरार रहेगी, इस पर संदेह है। क्यों कि देश का भविष्य मोटा हो रहा है। जी हां, देश के भविष्य पर मोटापे की चर्बी चढ़ रही है और वह बीमार भी हो रहा है। 

अगर आप बात नहीं समझे तो आपको बता देते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में एक सर्वे में 40 फीसदी बच्चे मोटापे की गिरफ्त में पाए गए। दिल्ली से आप देश के बाकी हिस्सों का अंदाजा लगा सकते हैं। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 1000 माता-पिता पर अध्ययन किया गया, जिसमें यह चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस अध्ययन के मुताबिक छोटी उम्र में मोटापे की वजह अनियमित खानपान और रहन-सहन है। हैरानी की बात यह भी है कि मोटापे से परेशान बच्चों में 84 फीसदी लड़कियां और 82 फीसदी लड़के शारीरिक और भावनात्मक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक 72 फीसदी बच्चे ओवर ईटिंग, 40 फीसदी बच्चे अनुवांशिक तौर पर और खराब फूड हैबिट की वजह से 33.5 फीसदी बच्चे मोटापे की गिरफ्त में पाए गए। ओवर ईटिंग की वजह से 75 फीसदी लड़कियां और 69 फीसदी लड़के मोटे हो रहे हैं। 

मोटापा तो है ही, लेकिन इससे होने वाली बीमारियां कम वजनदार नहीं हैं। इसकी वजह से बच्चों को तनाव, नींद की समस्या, सांस लेने में परेशानी, जॉइंट की समस्या जैसी बीमारियां से जूझना पड़ रहा है। अध्ययन में मोटापे का कारणों में बाहर के खाने और जंक फूड को भी रखा गया है। कुछ बच्चों को मोटापा इसलिए भी घेर लेता है क्योंकि खाना खाते वक्त उनका ध्यान बंटा होता है। वे या तो टीवी देख रहे होते हैं, मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहे होते हैं, या किसी अन्य इलेक्ट्रोनिक डिवाइस में उलझे होते हैं।

अध्ययन में तीन कैटेगरी के बच्चे रखे गए। इनमें 5-9 साल, 10-14 और 15-17 साल के बच्चे शामिल किए गए।

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