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इस देश में आज भी रेप को इज्ज़त से जोड़ कर देखा जाता है। हम आज भी 'रेप विक्टिम/पीड़िता' जैसे शब्दों को इस्तेमाल करते हैं। दिक्कत ये है कि हम सदियों से चली आ रही बातों को बिना कुछ सोचे-समझे अपने कंधों पर ढोते चले जाते हैं और उसे नाम देते हैं 'संस्कारों' का। इन सो कॉल्ड संस्कारों के बोझ तले हम इतना दब जाते हैं कि हम ये तो भूल ही जाते हैं कि इनमें से कुछ बातें निहायत बेतुकी होती हैं।
हमारी सोच पर हमारे परिवार, पढ़ाई और दोस्तों का बहुत असर पड़ता है और यही कारण है कि हर व्यक्ति की सोच उसके दोस्तों और परिवार से मेल खाए, ये ज़रूरी नहीं है। रेप को लेकर आप क्या विचार रखते हैं ये तो हमें नहीं पता लेकिन हम ये ज़रूर समझते हैं कि आप इसे एक जघन्य अपराध मानते होंगे।
इन लड़कों के जवाब सुनकर यकीनन एक आस बंधती नज़र आती है। अगर सारे लड़के इन्हीं जैसे हों तो शायद भविष्य में कभी ऐसे सवाल पूछने की नौबत ही न आए। आज भी रेप के पीछे मर्दानगी और शक्ति प्रदर्शन की भावना छिपी होती है। लोग ऐसा सिर्फ़ ये दिखाने के लिए करते हैं कि औरत को हर वो बात माननी होगी जो उससे कहा जाएगा वरना उसका हश्र बेहद बुरा होगा।
इस मानसिकता को समझना बहुत ज़रूरी है। ये तो मुंबई शहर था और ज़्यादातर लड़के काम काजी और पढ़े लिखे थे। ये भी ज़रूरी नहीं कि हर पढ़ा लिखा इंसान संवेदनशील हो, उसके मुक़ाबले में एक अनपढ़ व्यक्ति भी संवेदनशील हो सकता है। अगर यही सवाल छोटे शहरों, गांव आदि में पूछा जाए या किसी बड़े शहर के हर एक व्यक्ति से पूछा जाए तो आपको क्या लगता है जवाब क्या होगा?
जवाब आपको भी पता है और हमें भी, तो बस ज़रूरत है कि ऐसा माहौल तैयार किया जाए, जहां हर कोई इतना संवेदनशील हो कि ये अपराध हो ही न और सभी का जवाब इन लड़कों जैसा ही हो।