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गरीब आदिवासी की झोपड़ी को जब प्रशासन ने गैरकानूनी ठहराकर बेरहमी से गिरा दिया, तब उसने आम के पेड़ को ही अपना आशियाना बना लिया था। ये गरीब आदिवासी कर्नाटक के मैसूर का रहने वाला है। 2 साल तक जिंदगी जंगलों कट गई, अब उसे जमीन का सुख मिलने जा रहा है।
इस आदमी का नाम 'गीज्जा' है। कद काठी से बूढ़ा हो चला है लेकिन धैर्य और विश्वास की उम्मीद 2 सालों तक दिल में जगाए रखा। खाने-पीने से लेकर हर एक चीज का जुगाड़ गीज्जा ने अपने घोसले में कर रखा था। घर न होने के बावजूद भी 2 साल तक एक खुशनुमा जीवन जिया।
मीडिया के अनुसार दो साल पहले जंगलों में डेरा डालने आए गीज्जा का जंगल अधिकारियों ने विरोध किया था, जबकि गीज्जा का कहना था कि उसके पूर्वज यहां रहते हैं।
उसका दावा था कि यह पेड़ उसके पूर्वजों ने लगाया था। हालांकि, उसकी पत्नी अपने बड़े बेटे कुल्ला के साथ शहर की ओर चली गई जहां वह नौकरानी का काम करती थी। लेकिन गीज्जा की आंखों उम्मीद से लबालब थीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब उसे जल्दी ही आवास की सुविधा दी जाएगी। 2 सालों तक पक्षी बन कर रह चुके गीज्जा ने जंगलों में कई मुसीबतों का सामना किया। गीज्जा की इस बहादुरी के लिए पुरस्कार जरूर मिलना चाहिए। जो लोग उम्मीद हार कर जीना छोड़ देते हैं, उनके लिए गीज्जा एक जीता जागता मिसाल है।