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"मैंने कभी अपनी बच्चियों को यह पता नहीं चलने दिया कि मैं क्या काम करता हूं"

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Tue, 09 May 2017 05:09 PM IST
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idris
idris - फोटो : akash
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मां-बाप अपने बच्चों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। उनकी एक मुस्कराहट के लिए वो अपना सब कुछ न्योछावर कर सकते हैं। अक्सर बच्चे बाहर बाजार में जाकर जमीन पर लोट-लोट कर अपनी बात मनवाते हैं और फिर आखिरकार उनकी बात मान ही ली जाती है। लेकिन दुनिया का हर बच्चा न तो इस तरह से जिद कर सकता है, और न ही हर मां-बाप अपने बच्चों की इच्छाएं पूरी कर सकते हैं। जो लोग एक वक्त की रोटी जुटाने में ही असमर्थ हों उनके सामने अपने बच्चों का पालन-पोषण करने तक की चुनौती रहती है।

एक फोटोग्राफर ने अपने फेसबुक पेज से ऐसी ही कहानी शेयर की है। यह कहानी एक सफाई कर्मचारी की है। वो व्यक्ति नहीं चाहता था कि उसकी तीन बेटियों को कभी इस बारे में पता चले कि वो क्या काम करता है। यही वजह थी कि उसने सालों तक यह बात छुपाई। लेकिन फिर एक दिन ऐसा कुछ घटा कि उसने अपनी बेटियों के सामने सब कुछ साफ कर दिया। यह कहानी पढ़कर आपको महसूस होगा कि भारत में कितने सारे लोग गरीबी में जी रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन वो अपने हालात से मजबूर हैं।
 

इदरीस कहते हैं कि "मैंने अपनी बच्चियों को कभी यह नहीं बताया कि मेरा असली काम क्या है। जब भी मेरी सबसे छोटी बेटी मुझसे पूछती कि पापा आप क्या काम करते हैं तो मैं फट से कह देता कि मैं एक मजदूर हूं। मैं यह नहीं चाहता था कि जिस तरह से लोग मुझे देखते हैं उसी तरह से मेरी बेटियों को भी देखें। मैं चाहता था कि वो समाज में अपना सिर ऊंचा करके खड़ी हो सकें। लोगों ने मुझे हमेशा बेइज्जत किया। यही वजह थी कि मैं शाम को घर जाने से पहले पब्लिक टॉयलेट में नहाया करता था जिससे मेरे बच्चों को मेरे काम की भनक तक न लग सके।

मैंने अपनी बच्चियों की पढ़ाई को हमेशा ध्यान में रखा। मैं उन्हें पढ़ा लिखाकर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करवाना चाहता था। मैंने अपनी कमाई का एक-एक हिस्सा उनकी पढ़ाई पर खर्च कर दिया। मैंने कभी कोई नई शर्त नहीं खरीदी। मैं चाहता था कि वो कुछ बनकर मेरे लिए कमाएं। लेकिन जब मेरी बेटी कॉलेज में दाखिला लेने वाली थी उसके एक दिन पहले मैं उसकी फीस के लिए मैं पैसे इकठ्ठा नहीं कर पाया।"
 

"मैं उस पूरे दिन काम नहीं कर पाया। मैं सोच रहा था कि घर जाकर मैं अपनी बेटी को क्या जवाब दूंगा। मैं कूड़े के ढेर के बगल में बैठा अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रहा था। मेरा कोई साथी मुझसे बात करने नहीं आया। फिर उस शाम मेरे साथी कर्मचारियों ने अपनी उस दिन की कमाई मेरे हाथ में लाकर रख दी। मेरे मना करने पर उन्होंने कहा कि वो एक दिन भूखे सो जाएंगे लेकिन उनकी बेटी का पढ़ना सबसे जरूरी है। उस दिन मैं बिना नहाए उसी स्थिति में घर गया और अपनी बेटियों को सारी हकीकत बता दी।

आज मेरी तीनों बेटियां पढ़ती भी हैं और मेरे लिए कमा भी रही हैं। वो नहीं चाहतीं कि मैं काम करूं। मेरी बेटी अक्सर मेरे उन साथियों को खाना खिलाती है। जब वो पूछते हैं कि तुम ऐसा क्यों करती हो तो वो कहती है कि आप लोग एक दिन मेरे लिए भूखे रहे और उस वजह से ही आज मैं इस मुकाम पर हूं। मैं आपका यह एहसान कभी नहीं चुका पाउंगी।"

आप सोचते होंगे कि गरीब लोग अपनी लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहते या उनके बड़े होते ही उनसे काम करवाना शुरू कर देते हैं तो इदरीस की कहानी आपकी इस सोच को सीधी चुनौती देती है। इदरीस ने अपनी तीनों बेटियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए अपने दिन-रात एक कर दिए। वो चाहते तो अपनी बेटियों की शादी कर सकते थे य उनसे काम करवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इदरीस से ऐसे लोगों को सीख लेनी चाहिए जो बेटी होते ही परेशान हो जाते हैं और अपनि किस्मत को कोसने लगते हैं। सही मायने में इस समाज को बदलने में इदरीस जैसे अन्य लोगों का ही सबसे अधिक योगदान है।
 

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