आपको क्या लगता है कुलभूषण जाधव अकेला ऐसा नाम है जो आज इस बुरे समय से गुजर रहा है? पाकिस्तान की जेलों में न जाने कितने ही कुलभूषण और सरबजीत तिल-तिल कर मर रहे हैं। इनमें से कुछ तो मासूम होते हैं जो धोखे से वहां चले जाते हैं लेकिन जो एजेंट वहां अपनी जान जोखिम में डालकर अपने देश के लिए जाते हैं उनको भी एक समय बाद सरकार भुला देती है। ये हम नहीं बल्कि विनोद साहनी कह रहे हैं जो 11 साल पाकिस्तान की जेल में बिताकर आए हैं। वो बता रहे हैं कि पाकिस्तान की जेल में सड़ रहे लोगों के साथ क्या होता है।
विनोद साहनी 61, 11 साल तक पकिस्तान की जेल में रहे। ये 1988 में भारत लौटने में सफल हो गए। वैसे आमतौर पर रॉ के एजेंट्स के नाम कभी बाहर नहीं आते लेकिन विनोद एक अपवाद हैं। कुछ समय पहले इंडिया टाइम्स ने इनसे बात की थी जिसमें इन्होंने कई अहम मुद्दे उठाए थे।
विनोद कहते हैं कि इन बंदियों के बारे में फिल्मों में आपको जो कुछ भी दिखाया जाता है, असल में इनकी जिंदगी उससे बहुत बदतर होती है। फिल्में ये नहीं दिखातीं कि पकड़े जाने के दौरान और उसके बाद एक एजेंट पर क्या बीतती है। क्योंकि मैं वहां 11 साल रहा हूं इसलिए मैं ये सब जानता हूं। जो लोग पाकिस्तान की जेलों से कभी नहीं लौटते, मरने के बाद उनके शरीर को पाकिस्तानी गटर में फेंक देते हैं। विनोद जम्मू एक्स स्लेथ्स एसोसिएशन चलाते हैं जो पाकिस्तान में पकड़ लिए गए भारतीयों के हक के लिए लड़ते हैं। वो कहते हैं कि कइयों को तो भारत सरकार पहचानने तक से इनकार कर देती है।
साहनी बताते हैं कि वो एक टैक्सी ड्राईवर थे, तभी एक इंटेलिजेंस अफसर ने उन्हें एक एजेंट के रूप में काम करने के लिए मना लिया। ये व्यक्ति उनकी गाड़ी में एक यात्री के रूप में आया था। साहनी बताते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी का प्रलोभन दिया गया था। साहनी कहते हैं कि लोग सरबजीत की बात करते हैं लेकिन न जाने कितने ही ऐसे भारतीय हैं जो पाकिस्तान की जेलों में सड़ रहे हैं और कोई उनके बारे में बात नहीं करता। जैसे सैनिक देश की सीमा पर खड़े होकर लड़ते हैं हम भी अपनी देश की रक्षा करने के लिए संघर्ष करते हैं वो भी दुश्मन देश के अंदर रह कर। सरकार को हमारा और हमारे परिवार का ध्यान रखना चाहिए।
साहनी को 1977 में पाकिस्तान भेजा गया था और उन्हें उसी साल गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें 11 साल की सजा हुई थी। वो कहते हैं कि पाकिस्तान की जेल में रहना मरने से बदतर है। इससे पहले की वो आपके शरीर को मारें, पाकिस्तानी आपकी आत्मा को हर रोज मारते हैं। वहां होने वाले टॉर्चर को बयां नहीं किया जा सकता है। सरबजीत बहुत भाग्यशाली थे जो उनकी कहानी सभी के सामने आ गई। वहां न जाने कितने ही ऐसे लोग पड़े हुए हैं जिनके बारे में कभी किसी को पता नहीं चलेगा। जिंदा रहते हुए किसी को सम्मान मिलेगा ये तो भूल जाइए, मरने के बाद वहां शरीर को कुत्तों के खाने के लिए कूड़े में फेंक दिया जाता है।
मार्च 1988 में विनोद को वापस भारत भेज दिया गया था। उन्हें अपने पैसों के लिए बहुत चक्कर काटने पड़े और इसके बाद उन्हें ये एहसास हुआ कि अपना हक लेना ही भारत में कितना मुश्किल है। वो कहते हैं कि मैं सिर्फ अकेला नहीं हूं जो भारत वापस लौट पाया। ऐसे और भी लोग हैं और उन्हें अपने हक के पैसों लिए कहां-कहां नहीं जाना पड़ता। मुझे इस बात का दुःख नहीं है कि जब हम जैसे लोग पकड़े जाते हैं तो सरकार हमें पहचानने से इनकार कर देती है, दिक्कत ये है कि इसके बाद वो हमारे परिवार का खयाल भी नहीं रखती। कोई भला हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकता है? मुझ जैसे कई लोगों ने अपनी पूरी जवानी घरवालों के बगैर दूसरे देश के जेलों में बिता दी। सरकार को हमें सैनिकों की तरह सुविधाएं देनी चाहिए और हमारे परिवार का खयाल रखना चाहिए।
ये सारी बातें बहुत चौंकाने वाली हैं। अगर कोई हिम्मत करके अपने देश के लिए ऐसा कदम उठाता भी है और इसके बाद उसके साथ परायों जैसा व्यवहार होता है तो इसे कहां तक उचित माना जा सकता है? ये सब जानने के बाद कौन भला अपने देश की मदद करना चाहेगा। जब अपना देश ही दुश्मनों की तरह व्यवहार करेगा तो भला दूसरे से क्या उम्मीद की जा सकती है।
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