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आजकल प्राइम टाइम में हर चैनल पर बहस होती है। बहस के मुद्दे राजनीतिक होते हैं और हर व्यक्ति बस चिल्ला रहा होता है। इन बहसों में बस एक बात मायने रखती है कि कौन कितना चिल्ला सकता है। आपको नहीं लगता कि हमारे बीच से कई अहम मुद्दे गायब हैं। उनपर कोई चर्चा ही नहीं करता।
आपका भी इस ओर ध्यान नहीं जाता होगा क्योंकि टीवी देखकर आपकी राय ऐसी बन गई है कि हमारे लिए शायद वो बहस का मुद्दा रह ही नहीं गया है। आपको पता है सोमालिया में इतना भयानक सूखा पड़ा है कि 2 दिनों में वहां सैकड़ों लोगों की जान चली गई। वहां के राष्ट्रपति भी अपने हाथ खड़े कर चुके हैं। आपको ये बात पता चली?
ये खबर मार्च के शुरुआती दिनों की है लेकिन आपको अभी तक इसकी जानकारी नहीं होगी।
इसी तरह सीरिया में हर रोज़ कितने लोग बेघर हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं, इसकी जानकारी भी आपके पास नहीं होगी। होगी भी कहां से, होगी तब जब आपके आस-पास इसकी चर्चा होगी। रोहिंग्या मुसलामानों को उनके देश से भगाया जा रहा है। आपने कभी सोचा कि अगर आपको अपना देश छोड़ने को कह दिया जाए तो आप कहां जाएंगे?
आपने कभी सोचा कि ये सभी लोग कहां जाएंगे? ये अपना देश छोड़कर किस्से मदद मांगेंगे? आखिर इनकी मदद कौन करेगा? जब आपके किसी पड़ोसी के घर में कोई मुसीबत आती है तो आप उसकी मदद करने जाते हैं और जितनी मदद हो सकती है उतनी करते हैं। दुनिया भर के ये सभी लोग क्या हमारे पड़ोसी नहीं हैं? क्या आप इनसे केवल ये कहकर पल्ला झाड़ सकते हैं कि ये तो हमारे देश के हैं नहीं तो हमसे क्या मतलब?
बहुत से लोग ये सोचते होंगे कि ये देश अपनी दिक्कतों से ही नहीं निपट पा रहा है तो ये दूसरों की मदद क्या करेगा। सही बात है। लेकिन क्या आपने कभी अपने देश के लोगों के लिए भी आवाज़ उठाई है? आपने कितने लोगों से इस मुद्दे पर बात की है? आखिर सक्षम देश दूसरे देशों की हालात की तरफ़ ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं?
आपने कभी सोचा है कि हमारे न्यूज़ चैनलों के प्राइम टाइम के मुद्दे अब बदल जाने चाहिए। किसी नेता के बेहुदे बयान पर घंटों आपस में लड़ने से अच्छा है कि असली मुद्दों को आगे बढ़ाया जाए। लोगों को दुनिया भर में चल रहे घटनाक्रमों को लेकर जागरुक किया जाए जिससे वो ये समझ सकें कि हमारे कुछ साथी कितना परेशान हैं।
जिस तरह एक इंसान दूसरे इंसान की मदद करता है उसी तरह इन लोगों को भी हमारी मदद की आवश्यकता है। अगर कभी किसी आपदा के समय हम किसी देश के हालत दिखाते भी हैं तो ऐसा माहौल बना देते हैं कि वो देश भी परेशान होकर हम पर अमानवीय होने के आरोप लगा देता है।
अब ज़रूरत है कि सोशल मीडिया की मदद से ही हम लोगों को जागरुक करें कि वो इन देशों की समस्या को समझें और उनकी मदद करने के लिए खुद आगे आएं। इस समय हमें संवेदनशील होने की ज़रूरत है क्योंकि आज कोई और तकलीफ़ में है तो कल को हम भी हो सकते हैं।
लोग दिन पर दिन बढ़ रहे हैं, संसाधन कम होते चले जा रहे हैं। दुनिया के सामने आने वाले कुछ सालों में बहुत बड़ी समस्याएं खड़ी होने वाली हैं। इन समस्याओं से मानवजाति को मिलकर लड़ना होगा और समय रहते कोई न कोई उपाय निकालकर इस मानवजाति को बचाना होगा।
अगर मीडिया से ये मुद्दे गायब हो जाएंगे तो कल को आपकी तकलीफ़ भी गायब हो सकती है। समस्या तब और बड़ी हो जाती है जब आस-पास के लोग बुत बन जाते हैं। आज आवश्यकता है कि हमारे बुत बन चुके शरीर में एक बार फिर संवेदनाएं जगाई जाएं जिससे कुछ बेहतर निष्कर्ष सामने आ सकें।