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आज कल थोड़ा सा आलसी बनकर सूरज ,
बादलों में लिपट कर बैठा रहता है ,
हवाओं के तो पर निकलकर आये हैं ,
उड़ती फिरती रहती है यहाँ से वहां ....
कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा होगा आपको भी आजकल। ठंड ने दस्तक जो दे दी है। सूरज की आहट शाम को मिलती है, जब अस्त होने को होता है। बादलों के बीच छुपन-छुपाई खेलते हुए आंखें बंद करके अस्त हो जाता है। खैर..
जिंदगी को अगर अच्छे से महसूस करना है तो एक बार गंगा किनारे का रुख ज़रूर देखना चाहिए। बात जब गंगा की हो रही तो काशी क्षेत्र की भी हो जाए। सर्दी की घूप जितनी सुकून देती है, उतनी ही गंगा किनारे की शाम। बनारस ऐसा शहर है जिसकी हर एक जगह एक नयी कहानी गढ़ती है, एक नया राग छेड़ती है। गंगा घाट से लेकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तक।
मेरा यह मानना है कि आपने अगर बनारस में रहकर गंगा घाट की शाम को मिस किया तो समझो ज़िदगी का एक बड़ा हिस्सा मिस किया। समुंदर की लहरें, और उंची पहाड़िया के झरने बेशक मज़ेदार होते हैं लेकिन बनारस की शाम में जो बात है वो कहीं नहीं।
बनारस… जिंदगी और जिंदादिली का शहर। जिंदगी को हर पल जीने का दर्शन गढ़ने वाला बनारस मरने की तहजीब भी सिखाता है ताकि जिंदगी का जश्न जारी रहे... यहां हर पल जीवन का स्पन्दन महसूस होता है, क्योंकि यहां मृत्यु का भय नहीं सताता।
आईये मै अपने उन दोस्तो से मिलवाती हूं जिन्होंने बनारस की छवि को अपने वीडियो के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है। ऐसे दोस्त जो लफंगे परिंदे हैं, जिन्हें कल की कोई फिकर नहीं है। जिनकी सुबह भी गंगा से होकर गुजरने वाले धूप से होती है और शाम भी गंगा किनारे वाली घूप से होती है। जिन्हें बचपन में भी पढ़ाई-लिखाई के लिए मार पड़ी होगी, जो क्लास बंक करके घूमना और मस्ती करना ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं।
जिनकी हूलिया देखकर लोग 'आवारा और मवाली' ज़रूर कहते होंगे.. लेकिन ये ऐसे लफंगे हैं जो दूसरों की हेल्प करना एक ज़रूरी काम की तरह समझते हैं। पढ़ाई से जी चुराने वाले ये बंदे कभी फेल नहीं हुए। यूनिवर्सिटी में इनकी बैक नहीं लगी कभी। दिन भर गली-नुक्कड़, चट्टी-चौराहे, घूमने वाले ये बंदे दिल खोल कर, खुद में मस्ती घोल कर जीते हैं।