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गरबा-डांडिया को भौत देखो हुइयै, अब तनक बुंदेली दिवारी देख लेओ... जा के देख कै दिल न मचल उठो और गोड़े न थिरक उठे...तौ हमाओ नाम बदल दियो... दोहा, छंद, चौपाई की तान... ढोल की डिग्गन का डिग डिगा डिग डिगा...थरिया की खन खन... गिल्ला (लकड़ी का टुकड़ा) की खट खट और मस्त बुंदेली जवानन को अल्लड़ गबरू डांस...
जा के देख कै बाहें न फरक उठीं तौ कहियो... जिन लोगन कै नईया पता तौ सुन लेओ... जाके बुंदेली लोक नृत्य काहत हैंगे... और जा परंपरा पुरखन के टैम से चली आ रही। दीपावली के टैम पर पूरे बुंदेलखंड के गांवन में मोड़न कै दिवारी खेलन से कोउ रोक नईं पा रहो...
वे ससुरहरैं दिन भर जा मुहल्ला सै बा मुहल्ला... जा छिड़िया से बा छिड़िया बमकत हैं...और मताई... लुगाई दुआरे और छतन से झांक झांक देखत हैं। जा के कंपटीशन सोऊ होत... हैं और अवार्डऊ बटत हैंगे... वैसे तौ जाकी पूरी ड्रेस होत हैगी... लेकिन एखी खुमारी इतनी भैरंट होत हैगी कि कछु लोग ऐसई खेलन लगत... फिर जा नईं देखत कि धरती पर लोट लोटकै खेर रहे कि नाच नाच कैं... जैसे कि इनईं कै देख लेओ... इनके लाने जोई ओलंपिक होत हैंगो...
बुंदेलखंड की प्राचीन लोक नृत्य शैली दिवारी देखकै अब तुमउ औरन को मन करन लगो हुइयै नाचन कै... तौ फिर नाचो... के खाली देखतई रैहो... और जा और कै रहे... अच्छो.. लगो हुइयै तो का काहत वाके ससुर ... हां... लाइक, कमेंट और शेयरऊ कर देओ... जय राम जी की।