बचपन से ही हमें भूतों की कहानियां सुनने में बहुत मजा आता है। बच्चों को चाहे डर क्यों न लगे लेकिन वो हॉरर फिल्में जरूर देखते हैं और फिर रात को टॉयलेट जाने से भी डरते हैं। अंधविश्वास भी कहीं न कहीं यहीं से शुरू होता है। लोग भी कम नहीं होते, वो खुद तो भूत-प्रेतों में विश्वास रखते ही हैं साथ ही छोटे बच्चों को भी इस डर में शामिल कर लेते हैं। या फिर जब भी बच्चों को किसी बात के लिए मना करना होता है तो बड़े अक्सर कहते हैं कि बेटा ऐसा मत करो वरना भूत आ जाएगा और तुम्हें उठा कर ले जाएगा।
यहीं से शुरू होता है अंधविश्वास जो कुछ लोगों के साथ जिंदगी भर चलता रहता है। अंधविश्वास हमारे दिमाग को पूरी तरह से निष्क्रिय कर देता है। हमारा अपने दिमाग पर कोई काबू नहीं रहता बल्कि उसे कोई और ही संचालित करता है। इस बात का फायदा वो फर्जी बाबा उठाते हैं जिनका एक काम सिर्फ लोगों को ठगना होता है। वो लोगों के मनोविज्ञान के साथ खेलते हैं। लेकिन फिर भी लोग इनके पीछे भागते हैं। यहां लॉजिक का कोई काम नहीं होता।
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