विस्तार
कुछ खबरें आती हैं। जो हमारे आपके अंदर तक घर कर जाती हैं। कई बार होता है एक गांठ सी बन के हमारे अंदर रह जाती है। हो सकता है आपके साथ ऐसा ना होता हो। लेकिन हमारे साथ ऐसा होता है। अगर आपके साथ ऐसा नहीं होता तो आप मर चुके हैं। मुझे पता है कई बार आप खबरों को देखने-पढ़ने के बाद गुस्सा भी होते हैं। ये मीडिया के लोग सिर्फ टीआरपी के लिए कुछ भी करेंगे। कोई अच्छी खबर हम आपको बता भी दें तो आप वहां भी चुप नहीं रहते। जो कि जायज़ है। आपका सवाल उठाना बिलकुल जायज़ है। लेकिन कई बार आप तक दूसरी खबरें पहुंचनी भी जरूरी होती हैं। इन सब चक्करों में कुछ चीज़ें छूट जाती हैं।
लेकिन आज मैं आपसे ये कहने नहीं आया हूं कि हम क्या करते हैं, कैसे करते हैं। आपसे एक बेहद ही जरूरी बात करने आए हैं। पिछले दो दिन से मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया हर जगह एक खबर हैडलाइन बनी हुई थी। प्राइम टाइम में दौड़ रही थी। खबर थी, अपने कंधे पर अपनी पत्नी की लाश ढोते हुए, दीना मांझी की। खबर ओडिशा से आई थी। हमें अपनी जिम्मेवारियों के तहत ये खबर आप तक पहुंचानी चाहिए थी। लेकिन हमने इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी। हमने इसे फ़िरकी पर नहीं लिया।
कुछ तो वजह रही होगी। वही वजह बताने के लिए आज ये लिखने की जरूरत पड़ी है। अगर आपको ये लग रहा है कि हम आपसे माफ़ी मांगे इस बात के लिए कि हमने आपको इस खबर से महरूम रखा। कतई नहीं। हमने ये खबर आप तक नहीं पहुंचाई क्योंकि आप वो देखना नहीं चाहते। आप वो पढ़ना नहीं चाहते। आपको क्या फर्क पड़ता है कि ओडिशा के उस मांझी की बीवी मरी या बाप। वो उन्हें अस्पताल से घर तक एम्बुलेंस में ले जाए या फिर सड़क पर घिसता हुआ। आपको अपने मजे में कोई कमी नहीं दिखनी चाहिए।
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ये लिखने की जरूरत इसलिए भी पड़ी है कि आप जो बात-बात पर मीडिया को गाली देते रहते हैं। वो आप मीडिया को नहीं पहले खुद को दीजिए। हां, ये बात भी सच है कि आपकी ये आदत बिगाड़ी भी इसी मीडिया ने ही है। लेकिन ये क्या एक बहाना नहीं है? क्या आप अगर चाहें तो आपके लिए सीधे-सपाट और जरूरी खबर दिखाने वाले ऑप्शन नहीं हैं क्या? लेकिन कौन उन सफ़ेद-सपाट चैनलों पर ठहरता है। वो बहुत बोरिंग होता है। जब तक आपको किसी की मौत का तमाशा वीडियो में लाल रंग के घेरे में डाल कर नहीं दिखाया जाएगा। आप क्यों देखेंगे। और पढ़ना तो खैर छोड़ ही दें। बहुत मेहनत का काम है।
ये बातें, ये बातें मैं हवा में नहीं कह रहा हूं, आपसे। ये बातें पिछले कुछ समय के ट्रेंड को देखने के बाद कर रहा हूं। हमने आपको हर स्तर पर परखा। हमने आपको जरूरी खबरें भी दीं। लेकिन वाह! आपको पता है आपने उस दौरान हमें ही फ़ैल कर दिया।
कैसे...?
उदाहरण के साथ समझ रहा हूं। इतना डिटेल कोई नहीं देता अपने प्रोडक्ट के बारे में। लेकिन चाहता हूं कि आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी ना मारें। इसीलिए ये सब बता रहा हूं।
हमने एक खबर लगाई। इंटरनेट पर वायरल होती किसी वीडियो की। वीडियो में एक लड़की बेहद ही छोटे-छोटे कपड़े पहने, शराब के नशे में सड़क पर उत्पात मचा रही है। उस खबर के लगते ही पढ़ने वालों की संख्यां साईट पर एक बार में हज़ारों में होती है। हां, यहां लोग बड़े होशियार हैं, वो उसे देखते हैं बार-बार देखते हैं। लेकिन ना कमेंट करते हैं, ना लाईक करते हैं। ना ही कोई और रिएक्शन देते हैं। ताकि कोई ये जान ना ले कि मैंने भी इस खबर को देखा।
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अब दूसरी खबर, हमने लगाई। ओडिशा में एक जगह फायरिंग हुई। फायरिंग पुलिस के तरफ से हुई। रात का समय था। फायरिंग में कुछ निर्दोष आदिवासियों को गोली लगी। एक 2 साल का बच्चा, अपनी मां की गोद में ही मर जाता है। शायद उसकी चीख भी नहीं निकल पाती, मरने से पहले। बेहद ही भयानक, बेहद ही दर्दनाक। हमने खबर लागाई सीधे-सपाट। क्या हुआ? किसी ने नहीं पढ़ा। एक ने पढ़ा, दो ने पढ़ा, 100 लोगों ने पढ़ा। बस! क्या आपलोग सो रहे थे क्या, इस खास खबर के वक़्त? नहीं! आपके फायदे की कोई बात जो नहीं की गई थी।
फिर हम क्यूं मेहनत करें। आपको जबरदस्ती जरूरी खबर बोल-बोल कर आपके कान में क्यूं ठूसें! क्या पूरी दुनिया का ठेका लिया है हमने। हमें भी तो ऊपर जवाब देना होता है। हमें भी अपनी नौकरी बचानी है। हमारा भी घर है, हमारा भी परिवार है। और हमें भी जीने के लिए पैसे चाहिए।
आप नहीं सुधरेंगे। मत सुधरिए! हम भी पूरी तटस्थता के साथ यूंहीं आपको रोज रंग-बिरंगी चट-पटी बातें बताते रहेंगे। हां, जो ज्ञान दिया जाता है। वो यूंहीं चलता रहेगा। ये बात भी सच है कि आप फ़िरकी पर दिल के सुकून के लिए आते हैं। आप खबर के लिए कम ही आते हैं। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि वो ओडिशा वाली खबर पर हमें कुछ लिखना चाहिए था। हमें आपको मध्यप्रदेश की वो खबर बतानी चाहिए थी। जिसमें दबंगों ने रास्ता रोक लिया। लाश को ले जाने की इजाज़त नहीं दी। तो लोगों ने छाती तक पानी में चल कर लाश को श्मसान तक पहुंचाया। जो जरूरी है वो तो कम से कम करें। लेकिन जब तक आप नहीं चाहेंगे। तब तक कुछ नहीं बदलेगा।
खैर, हमारा क्या है। हम आज यहां आपके लिए लिख रहे हैं। जब जी चाहेगा बीच-बीच में अपने मन की भी लिख लेंगे। लेकिन आपका क्या होगा? जनाब! और ये बात आप बेहतर समझिएगा जिस दिन आप किसी घटना के पात्र होंगे। भगवान ना करें ऐसा हो।
आपके जवाब और सुझाव के इंतज़ार में, पूरी नाउम्मीदी के साथ
शिवेन्दु शेखर, टीम firkee.in