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आजकल फ़िल्में किस लिए बनाई जाती हैं? आपको क्या लगता है? हमारे एंटरटेनमेंट के लिए या प्रोड्यूसर्स के अपने बिज़नेस के लिए? हमारे ख़याल में बिज़नेस पहले और एंटरटेनमेंट बाद में। क्योंकि कोई भी प्रोड्यूसर सामाजिक कार्य करने के लिए तो बैठा नहीं है। इस बात से आप ज़रूर सहमत होंगे। अपनी फ़िल्मों को सफल बनाने के लिए लोग साम,दाम,दंड, भेद कुछ भी अपना सकते हैं।
इसका ताज़ा उदाहरण दिया है असम के एक फ़िल्म डायरेक्टर हिमान्ग्शु प्रसाद दस ने जो अपनी असमी फ़िल्म को रईस और काबिल के लिए थिएटर से हटाने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। साथ ही उन्होंने उल्फ़ा के चीफ़ परेश बरुआ को एक खुला ख़त लिखा। उन्होंने थिएटर मालिक पर ये आरोप लगाया कि उनकी फ़िल्म अच्छा प्रदर्शन कर रही थी और इसके बावजूद उनकी फ़िल्म को जबरन थिएटर से उतार दिया गया।
हिमान्ग्शु ने इसे असमी संस्कृति के लिए एक खतरा बताया। उन्होंने कहा कि अगर हम अभी से अपनी पहचान को नहीं बचाएंगे तो कल को जब असम आज़ाद हो जाएगा तो हमारे पास अपनी सांस्कृतिक पहचान कहां बचेगी? ऐसा लगता है कि नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से पढ़े हुए हिमान्ग्शु ने ये फ़िल्म असमी संस्कृति की रक्षा के लिए बनाई थी।
बात यहीं ख़त्म नहीं होती है। परेश बरुआ जो चीन और म्यांमार की सीमा के बीच कहीं छिपा हुआ है उसने एक लोकल टीवी चैनल के माध्यम से एक वीडियो भी जारी किया जिसमें उसने एक असमी फ़िल्म को हिंदी फ़िल्मों के लिए थिएटर से उतारे जाने का विरोध किया और कहा कि अगर ज़रुरत पड़ी तो वो सभी मिलकर इसके ख़िलाफ़ एक आंदोलन भी छेड़ेंगे।
थिएटर मालिकों का कहना है कि इसके बाद करीब 100 लोगों ने उनके हॉल के सामने धरना दिया। इस मामले में अभी कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई है लेकिन पुलिस परेश बरुआ की स्थिति जानने की कोशिश में जुट गई है। इसके साथ ही डायरेक्टर हिमान्ग्शु का कहना है कि वो पहले नहीं हैं जिन्होंने ऐसा किया है, और लोग भी है जो परेश बरुआ को चिट्ठी लिखते रहे हैं।
वहीं थिएटर मालिक ने ये भी बताया कि उनके यहां रईस और काबिल की बुकिंग तीन महीने पहले ही हो चुकी थी और उन्होंने ये बात हिमान्ग्शु को बता दी थी। उन्होंने हिमान्ग्शु से ये भी कहा था कि वो उनकी फ़िल्म को केवल पांच दिन ही दे पाएंगे और तब वो इस बात के लिए राज़ी भी हो गए थे। साथ ही उनसे ये वादा भी किया गया था कि इन दोनों फ़िल्मों के हटने के बाद दोबारा उनकी फ़िल्म को जगह दी जायेगी।
70 के दशक के एक असमी एक्टर जॉर्ज बेकर ने हिमान्ग्शु का समर्थन किया है। बेकर एक राज्य सभा मेंबर भी हैं और उन्हें बीजेपी द्वारा ही मनोनीत किया गया था। उन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि दास की फ़िल्म अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। रईस और काबिल जैसी फ़िल्में ज़ाहिर तौर पर एक हफ़्ते के लिए रुक सकती हैं। मुझे उम्मीद है कि दास परेश बरुआ से सीधे तौर पर संपर्क में नहीं होंगे।
अगर बरुआ ने असमी संस्कृति को बचाने की बात की है तो वो इसके हक़ में हैं।
अब देखना होगा कि आने वाले समय में लोग विरोध जताने के और कौन-कौन से नए तरीके अपनाते हैं।