Home Bollywood Ashutosh Rana Shares Some Mindblowing Story From His Childhood And Images Must Read

आशुतोष राणा ने अपने पापा के जन्मदिन पर कुछ लिखा और तस्वीरें शेयर की हैं, जरूर...जरूर पढ़ें!

Shivendu Shekhar/firkee.in Updated Tue, 22 Nov 2016 04:14 PM IST
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आशु
आशु - फोटो : ashutosh/facebook
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विस्तार


आशुतोष राणा। जिसके बारे में मेरा ये मानना है कि अगर करवट बदल लें तो पर्दे का कैरेक्टर बदल जाए। आंखें ऐसी भुजंग जैसे स्वयं शिव तांडव स्त्रोत सुन कर ज़मीं पर उतरे हों। जिसने पर्दे पर लज्जा शंकर पांडे को अमर कर दिया। वो जब गोकुल पंडित के किरदार में आया तो उसने एक्टिंग की नई परिभाषा लिख दी। और जब गौरी शंकर पांडे बन कर हासिल में उतरा तो इतिहास बदलने का जज्ब दिखा गया। उन्हीं आशुतोष राणा ने अपने पिता जी के जन्मदिन पर फेसबुक पर कुछ लिखा और तस्वीरें शेयर कीं। हमें बेहद जरूरी मालूम हुआ इसलिए उठा लाए आपके लिए। ज्यों का त्यों। क्या है नहीं है इसमें इस बारे में कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। आशुतोष खुद ही इतनी साफ़, सरल और खूबसूरत हिंदी लिखते हैं कि कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती सब साफ़-साफ़ होता है। तो अब यहां से अब आप और आशुतोष।


आज मेरे पूज्य पिताजी का जन्मदिन है सो उनको स्मरण करते हुए एक घटना साझा कर रहा हूँ।

बात सत्तर के दशक की है जब हमारे पूज्य पिताजी ने हमारे बड़े भाई मदनमोहन जो राबर्ट्सन कॉलेज जबलपुर से MSC कर रहे थे कि सलाह पर हम 3 भाइयों को बेहतर शिक्षा के लिए गाडरवारा के कस्बाई विद्यालय से उठाकर जबलपुर शहर के क्राइस्टचर्च स्कूल में दाख़िला करा दिया। मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल में क्राइस्टचर्च उस समय अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों में अपने शीर्ष पर था। 

पूज्य बाबूजी व माँ हम तीनों भाइयों ( नंदकुमार, जयंत, व मैं आशुतोष ) का क्राइस्टचर्च में दाख़िला करा हमें हॉस्टल में छोड़ के अगले रविवार को पुनः मिलने का आश्वासन दे के वापस चले गए।
मुझे नहीं पता था कि जो इतवार आने वाला है वह मेरे जीवन में सदा के लिए चिन्हित होने वाला है, इतवार का मतलब छुट्टी होता है लेकिन सत्तर के दशक का वह इतवार मेरे जीवन की छुट्टी नहीं "घुट्टी" बन गया।
 
इतवार की सुबह से ही मैं आह्लादित था, ये मेरे जीवन के पहले सात दिन थे जब मैं बिना माँ बाबूजी के अपने घर से बाहर रहा था। मन मिश्रित भावों से भरा हुआ था, हृदय के किसी कोने में माँ, बाबूजी को इम्प्रेस करने का भाव बलवती हो रहा था , यही वो दिन था जब मुझे प्रेम और प्रभाव के बीच का अंतर समझ आया। बच्चे अपने माता पिता से सिर्फ़ प्रेम ही पाना नहीं चाहते वे उन्हें प्रभावित भी करना चाहते हैं। दोपहर 3.30 बजे हम हॉस्टल के विज़िटिंग रूम में आ गए••


ग्रीन ब्लेजर, वाइट पैंट, वाइट शर्ट, ग्रीन एंड वाइट स्ट्राइब वाली टाई और बाटा के ब्लैक नॉटी बॉय शूज़.. ये हमारी स्कूल यूनीफ़ॉर्म थी। हमने विज़िटिंग रूम की खिड़की से स्कूल के कैम्पस में मेन गेट से हमारी मिलेट्री ग्रीन कलर की ओपन फ़ोर्ड जीप को अंदर आते हुए देखा, जिसे मेरे बड़े भाई मोहन जिन्हें पूरा घर भाईजी कहता था ड्राइव कर रहे थे, और माँ बाबूजी बैठे हुए थे। मैं बेहद उत्साहित था मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास था कि आज इन दोनों को इम्प्रेस कर ही लूँगा। मैंने पुष्टि करने के लिए जयंत भैया जो मुझसे 6 वर्ष बड़े हैं उनसे पूछा मैं कैसा लग रहा हूँ ? वे मुझसे अशर्त प्रेम करते थे मुझे लेके प्रोटेक्टिव भी थे बोले शानदार लग रहे हो। नंद भैया ने उनकी बात का अनुमोदन कर मेरे हौसले को और बढ़ा दिया।
जीप रुकी.. 

उलटे पल्ले की गोल्डन ऑरेंज साड़ी में माँ और झक्क सफ़ेद धोती कुर्ता गांधी टोपी और काली जवाहर बंड़ी में बाबूजी उससे उतरे, हम दौड़ कर उनसे नहीं मिल सकते थे ये स्कूल के नियमों के ख़िलाफ़ था, सो मीटिंग हॉल में जैसे सैनिक विश्राम की मुद्रा में अलर्ट खड़ा रहता है एक लाइन में तीनों भाई खड़े माँ बाबूजी का अपने पास पहुँचने का इंतज़ार करने लगे। 

जैसे ही वे क़रीब आए, हम तीनों भाइयों ने सम्मिलित स्वर में अपनी जगह पर खड़े खड़े Good evening Mummy. Good evening Babuji. कहा। 

मैंने देखा good evening सुनके बाबूजी हल्का सा चौंके फिर तुरंत ही उनके चेहरे पे हल्की स्मित आई जिसमें बेहद लाड़ था मैं समझ गया कि ये प्रभावित हो चुके हैं। मैं जो माँ से लिपटा ही रहता था माँ के क़रीब नहीं जा रहा था ताकि उन्हें पता चले कि मैं इंडिपेंडेंट हो गया हूँ .. माँ ने अपनी स्नेहसिक्त मुस्कान से मुझे छुआ। मैं माँ से लिपटना चाहता था किंतु जगह पर खड़े खड़े मुस्कुराकर अपने आत्मनिर्भर होने का उन्हें सबूत दिया। माँ ने बाबूजी को देखा और मुस्कुरा दीं, मैं समझ गया कि ये प्रभावित हो गईं हैं। माँ, बाबूजी, भाईजी और हम तीन भाई हॉल के एक कोने में बैठ बातें करने लगे हमसे पूरे हफ़्ते का विवरण माँगा गया और 6.30 बजे के लगभग बाबूजी ने हमसे कहा कि अपना सामान पैक करो तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है। वहीं आगे की पढ़ाई होगी•• 
 


हमने अचकचा के माँ की तरफ़ देखा माँ बाबूजी के समर्थन में दिखाई दीं। हमारे घर में प्रश्न पूछने की आज़ादी थी। घर के नियम के मुताबिक़ छोटों को पहले अपनी बात रखने का अधिकार था, सो नियमानुसार पहला सवाल मैंने दागा और बाबूजी से गाडरवारा वापस ले जाने का कारण पूछा ? उन्होंने कहा रानाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूँ। तुम लोगों को यहाँ नया सीखने भेजा था पुराना भूलने नहीं। कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है, हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित, अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है लेकिन देखा कि इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता पिता से ही चरण स्पर्श की जगह Good evening कहना सिखा दिया। 

मैं नहीं कहता कि इस अभिवादन में सम्मान नहीं है, किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है यह मैं विश्वास से कह सकता हूँ। विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती। मैंने देखा तुम अपनी माँ से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे। विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने का हुनर देती है नाकि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है। 


आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय जो उसे सिर्फ़ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे सिर्फ़ साक्षर हो के डिग्रीयों के बोझ से दब जाएं। मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने उसके बोझ को हल्का करने की महारथ देना चाहता हूँ। मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं। संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है। इसलिए बिस्तर बाँधो और घर चलो। 

हम तीनों भाई तुरंत माँ बाबूजी के चरणों में गिर गए उन्होंने हमें उठा कर गले से लगा लिया.. व शुभआशीर्वाद दिया कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो.. पूज्य बाबूजी जब भी कभी थकता हूँ या हार की कगार पर खड़ा होता हूँ तो आपका यह आशीर्वाद "किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो" संजीवनी बन नव ऊर्जा का संचार कर हृदय को उत्साह उल्लास से भर देता है । आपको शत् शत् प्रणाम! 

आशुतोष राणा साहब शुक्रिया! 

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