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भारतीय फिल्म जगत के पितामाह दादा साहब फाल्के के साथ शुरू हुई सिनेमा की विरासत का जादू कुछ ऐसा है कि हर किसी का मन एक बार इसके लिए हुड़कता जरूर है। सिनेमाई परदे की रंगीनियां हर भारतीय को जीवन में एक बार हीरो-हीरोइन बनने की कल्पना के भंवर में जरूर धकेल देती हैं। बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगिंग से अभूतपूर्व योगदान देने वाले गायक मुकेश भी सिनेमा के परदे पर बतौर हीरो बनने के आकर्षण से अछूते नहीं रहे। उनके बारे में फिल्मी पंडित कहते हैं कि वह आए तो थे हीरो बनने लेकिन एक सफल गायक बन गए। मतलब बाल-बाल बच गए!
22 जुलाई को मुकेश का जन्मदिन होता है, इसलिए उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से याद आ रहे हैं।
मुकेश के भीतर सिंगर आत्मा तो जन्म से ही थी। लेकिन इसे पहली बार तक पहचान लिया गया जब संगीत के शिक्षक उनकी बहन सुंदर प्यारी को शिक्षा देने के लिए उनके घर आने लगे। उन्होंने मुकेश में अपना शिष्य ढूंढ़ लिया। लेकिन मुकेश को गायन और वादन से ज्यादा अभिनय का शौक था।
खैर, पूरी कहानी किसी और दिन... सीधे प्वॉइंट पर आते हैं।
हीरो बनने के ख्वाब बुन रहे मुकेश को ऊपर वाले ने मौका दिया भी। 1941 में फिल्म निर्दोष में उन्हें बतौर हीरो और गायक काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में नलिनी जयवंत उनकी हीरोइन थीं। लेकिन फिल्म दर्शकों पर कुछ खास जादू नहीं बिखेर सकी। हालांकि पहली ही फिल्म में असफलता मिलने से मुकेश का साहस कम नहीं हुआ और उन्होंने आगे भी हीरो बनना जारी रखा।
1953 में राज कपूर की फिल्म आह में मुकेश को गेस्ट रोल मिला। 1953 में ही आई फिल्म माशूका के लिए एक बार फिर उन्हें हीरो बनने का मौका मिला, इस फिल्म में उनकी हीरोइन अपने जमाने की मशहूर गायिका सुरैया थीं। उसके बाद 1956 में फिल्म अनुराग में बतौर अभिनेता काम किया। इस फिल्म के लिए मुकेश ने कम्पोजर और सह-निर्माता की भी भूमिका निभाई।
1951 में आई फिल्म मल्हार में मुकेश ने बतौर निर्माता हाथ आजमाया। कुल मिलाकर सिनेमाई परदे पर बतौर अभिनेता मुकेश औसत दर्जे के ही हीरो रहे। लेकिन गायकी में पूरा फोकस करने के बाद तो मानों पूरा जहां उनका मुरीद हो गया।
मुकेश अपने जमाने के मोहम्मद रफी, किशोर और मन्ना डे से किसी मामले में कम नहीं थे। भारतीय फिल्म जगत के शुरुआती दिनों के गायक और अभिनेता कुंदल लाल सहगल तो एक कार्यक्रम में मुकेश के गाये गाने को लेकर भौंचक्के रह गए थे। गाना था- जब दिल ही टूट गया... हम जी कर क्या करेंगे। सहगल साब सोच में पड़ गए कि यह गाना उन्होंने कब गया! दरअसल, शुरुआती दौर में मुकेश सहगल की तरह ही गाते थे। लेकिन बाद में मशूहूर संगीतकार नौशाद अली की सलाहों पर गौर करके उन्होंने अपनी एक खास गायन शैली विकसित कर ली और लोगों के दिलों से होते हुए उनकी रगों के लहू में आवाज का सुर घोलने लगे।
मुकेश के अलावा भी कई गायक और संगीतकारों ने अभिनय में हाथ आजमाए लेकिन वे भी हीरो बनने से बाल-बाल बच गए!
ऐसी फेहरिस्त में नाम तलत अजीज, तलत महमूद, किशोर कुमार, सोनू निगम और हिमेश रेशमिया का भी आता है। किशोर कुमार को अपवाद कह सकते हैं, लेकिन एक गंभीर अभिनेता के तौर पर वह भी अपनी जगह बी-टाउन में कभी बना नहीं पाए। लोगों ने उन्हें या तो गाते हुए या मस्खरी करते हुए ही पसंद किया।
गायक तलत अजीज को बतौर अभिनेता उतनी कामयाबी नहीं मिली जितनी गायन से मिली। बाद में उन्होंने छोटे परदे पर कई धारावाहिकों में भी काम किया। तलत महमूद भी इंडस्ट्री में हीरो बनने का ख्वाब लेकर आए थे, लेकिन पूरा न हो सका।
सोनू निगम और हिमेश रेशमिया को बतौर अभिनेता इस जनरेशन शायद हर दर्शक जानता ही है। हालांकि संगीत के क्षेत्र में इन्होंने बड़ी कामयाबी पाई।
तो मुकेश साहब के जरिए दरअसल हम यही बताना चाहते हैं कि कई प्रतिभाशाली लोग आए तो थे हीरो बनने, लेकिन कामयाबी किसी और हुनर के लिए मिली।
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