मुस्कुराए तो मुस्कुराने के, कर्ज उतारने होंगे'
-गुलज़ार
आज दिन है मंगलवार और वक़्त है 'मेलोडी मंगलवार' का। और आज की कहानी है उस गाने के बनने के पीछे की जिसे पहले फिल्म में रखा ही नहीं गया था। जब फिल्म में आया तो फिल्म के हटाए हुए सीन को जोड़ कर फिल्म में डाला गया और जबरदस्त हिट रही।
कहानी है 1983 में आई फिल्म मासूम की। उस साल की सबसे बड़ी हिट। फिल्मफेयर में सबसे ज्यादा अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म। बेस्ट म्यूजिक, बेस्ट लिरिक्स, बेस्ट फिल्म क्रिटिक, बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर, बेस्ट एक्टर।
इन सब के बाद लगभग हर एक कैटेगरी में नॉमिनेशन। हों भी क्यों ना गुलज़ार साहब से लेकर सबाना आज़मी और नसीरुद्दीन शाह से लेकर आर. डी. बर्मन को शेखर कपूर अपने साथ कर लें तो इसका क्या जवाब हो।
फिल्म बन कर तैयार थी। सब कुछ रेडी था। फिल्म के म्यूज़िक को हर सिरे से लास्ट टच दिया जा रहा था। म्यूज़िक कंपनी जिसने फिल्म के म्यूज़िक का ठेका लिया था। कंपनी थी एचएमवी(HMV)। पुराने गाने सुनने वाले या कैसेट से गाने सुनने वाले इसे बखूबी जानते हैं।
फिल्म अपने लास्ट स्टेज में थी। जिसे किसी भी टाइम रिलीज़ किया जा सकता था। लेकिन इस सब के बीच हो गया एक झोल। झोल क्या? झोल ये कि एचएमवी वाले, जिन्होंने फिल्म के म्यूज़िक डिस्ट्रीब्यूशन का ठेका उठाया था। उन्होंने फिल्म के म्यूज़िक को सुना। गाने वगैरा चेक किए।
इन्साल्लाह, पंचम दा/आर. डी. बर्मन का संगीत और स्वयं गुलज़ार साहब की लिरिक्स किसे कोई शिकायत होती। लेकिन बावजूद इसके वो लोग जो मार्केट कण्ट्रोल करते हैं। जिन्हें बाज़ार की समझ है। उन्हें एक शिकायत हो गई। शिकायत ये कि सब कुछ ठीक है फिल्म में कोई स्टार सिंगर नहीं है। और इस वजह से ये डर है कि फिल्म के गाने चल नहीं पाएंगे।
फिल्म बहुत ही कम बजट में तैयार की गई थी। शेखर कपूर की फिल्म थी। शुरूआती दौर था। बजट कम था। और अब म्यूज़िक डिस्ट्रीब्यूटर ने नया पेंच लगा दिया था। इसके बाद लता मंगेशकर को फिल्म के एक गाने को गाने के लिए कहा गया।
लेकिन फिल्म में गाने का जो हिस्सा है उसे फिल्म के डिलीटेड सीन को जोड़ कर डाला गया। डिलीटेड सीन मतलब वो सीन जिसे फिल्म में से काट कर हटा दिया गया था। क्योंकि टीम के पास इतना पैसा ही नहीं था कि फिर से गाने के लिए वीडियो शूट किया जाए।