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ऑस्कर अवॉर्ड जीत चुकी फिल्म भारत में स्क्रीन के लिए लड़ती रही

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Thu, 30 Mar 2017 05:05 PM IST
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the salesman - फोटो : google
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आपको पता है इस साल बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म का ऑस्कर अवॉर्ड किस फिल्म को मिला है? ये अवॉर्ड जीता है ईरानी फिल्म 'द सेल्समैन' ने। इसके लेखक और निर्देशक हैं असगर फर्हीदी। मुख्य भूमिका में तारानेह ऐद्सूदी और शाहाब हुसैनी हैं। ये फिल्म एक ज़बरदस्त थ्रिलर है और इसका अंदाज़ा आपको इसका ट्रेलर देखकर ही लग जाएगा।

इस फिल्म ने कांस फिल्म फेस्टिवल में भी कई अवॉर्ड जीते जिसमें बेस्ट स्क्रीनप्ले और बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड शामिल है। कुलमिलाकर ये कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया में इस फिल्म ने तहलका मचा कर रख दिया है। लेकिन भारत में बड़े परदे पर आने के लिए इसे भारी मशक्कत करनी पड़ी। और ये इस बात को साबित करता है कि भारत में एक अच्छी अवॉर्ड विनिंग फिल्म को रिलीज़ किया जाना कितना मुश्किल है।
 

इस फिल्म के मुख्य किरदार इमाद और राना पति-पत्नी हैं और वो रंगमंच कलाकार हैं। वो डेथ ऑफ़ अ सेल्समैन नामक नाटक का मंचन कर रहे हैं। इमाद और राणा जिस घर में रहते हैं वो टूटने लगता है इसलिए वो अपने साथी कलाकार के बताये एक घर में रहने चले जाते हैं।

एक दिन राना घर पर अकेली होती है और तभी उसपर कोई हमला कर देता है। उसे बहुत चोट आती है लेकिन वो पुलिस में रिपोर्ट करने से मना कर देती है और हमलावर का पता लगाने के चक्कर में इमाद और राना के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं। आगे क्या होता है ये फिल्म देखने के बाद आपको पता चल जाएगा।

ट्रेलर से ही ये बात साफ़ हो जाती है कि ये थ्रिलर और ड्रामा का एक अच्छा कॉम्बिनेशन है। आखिर ऐसे ही किसी फिल्म को ऑस्कर नहीं मिल जाता। लेकिन इस शानदार फिल्म को भारत तक लाने में सुनील दोशी को कई पापड़ बेलने पड़े।
 

सुनील दोशी खुद को एक फिल्म एक्टिविस्ट कहते हैं। 1980 में वो मुंबई में एक फिल्म सोसाइटी भी चलाते थे। वो क्वालिटी स्टोरीटेलिंग में माहिर हैं। उन्होंने भेजा फ्राई जैसी कई शानदार फिल्मों को फाइनैंस किया है। वो सालों से भारत में 'सिनेमा लिट्रेसी' को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। ये अच्छी विदेशी फिल्मों को भारत तक लाते हैं। इसमें अंग्रजी फिल्मों के अलावा कई सारी फ़िल्में शामिल हैं।

दोशी बता रहे हैं कि ऑस्कर विनिंग द सेल्समैन फिल्म को कैसे भारत के सिनेमाघर अपने परदे पर जगह देने से लगातार इनकार कर रहे थे। पहले तो उन्हें सेल्स एजेंट को समझाना पड़ा कि वो उन्हें किसी बड़े प्रोड्यूसर की तरह पैसे नहीं दे सकते। इसके बाद उन्होंने जो बात बताई जो दुनिया भर के दर्शकों की मानसिकता को दखाती है।
 

फ्रांस में जब ये फिल्म अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गयी तो उसे काफी लोगों ने पसंद किया लेकिन जब उन्होंने उसे 9 सिनेमाघरों में रिलीज़ किया तो उन्हें कुलमिलाकर 62 दर्शक ही हासिल हुए। इसका मतलब लोग फ्री में ही फ़िल्में या नाटक देखना चाहते हैं।

इसके बाद वो बताते हैं कि उन्हें इस फिल्म के लिए लगभग 130% ड्यूटी देनी पड़ी थी। इसके बाद डिस्ट्रीब्यूशन में भी हमें नानी याद आ गई। उन्होंने बताया केबल ऑपरेटर उनके चैनल को सिग्नल देने के लिए 10-20 करोड़ रुपए मांग रहे थे।
 


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