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23 सितम्बर को एक फिल्म आ रही है सिनेमाघरों में। नाम है - पार्च्ड (Parched)। नाम अंग्रेज़िदा है और इसमें कोई बहुत बड़ा स्टार भी नहीं है, तो हो सकता है कि बहुत बड़ी आबादी इस फिल्म में रुचि न ले। फिल्म में कोई मसाला भी नहीं है तो कुर्सियों का खाली रहना अपने आप ही वाज़िब लगने लगता है। पर कायदे से फिल्म देखने लायक है।
यह फिल्म एक कहानी है राजस्थान में रह रही तीन महिलाओं - रानी, रज्जो और बिजली की। रानी विधवा है, रज्जो बांझ है और बिजली नाचती-गाती है और जिस्म के कारोकार में सबका दिल बहलाती है। तीनों ही सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अभिशाप की तरह हैं। तनिष्ठा, राधिका और सुरवीन ने अभिनय के धरातल पर कोई कसर नहीं छोड़ी है। महिलाएं आज भी गांवों-कस्बों में किस तरह शोषित और प्रताड़ित की जाती हैं ये आपको ट्रेलर में ही समझ आ जाएगा। ट्रेलर से इतना समझ आ रहा है कि फिल्म की सिनेमाटोग्राफी पर खासी मेहनत की गई है। दृश्यों का चयन, परिधान, मेकअप, वातावरण के साथ-साथ भाषाई स्तर पर भी खूब काम किया गया है। वेशभूषा से लेकर रीति-रिवाज़ों के नाम पर ओढ़ाई गईं बंदिशें आपको स्वतः राजस्थान के किसी बंजारे परिवेश में ले जाती हैं। गीत-संगीत में कहीं से भी उतावलापन नहीं है, गीतों का समावेश कथानक को और मज़बूत बना देता है।
आपको बता दें कि यह फिल्म 8 देशों में रिलीज़ हो चुकी है और इसे 24 फिल्मोत्सवों में 18 अवॉर्ड्स मिल चुके हैं। भारत में जनता की इसपर कैसी प्रतिक्रिया होगी यह देखने वाली बात होगी। फिल्म अभी सामने नहीं आई है पर ट्रेलर हमें किसी भी दृष्टिकोण से निराश नहीं करता।
एक बात कहना चाहती हूं - विषय-वस्तु आधारित ठोस फिल्में देखने की आदत डाल लें! आप इन्हें ऐसे ही अनदेखा करते रहेंगे तो निर्माता-निर्देशक का मनोबल टूटेगा। बहुत जोखिम भरा काम होता है अपनी पूंजी लगाकर ऐसी फिल्में बनाना। आप नहीं देखेंगे तो एक समय बाद ऐसी फिल्में बननी बंद हो जाएंगी। फिर देखते रहिएगा आइटम सॉन्ग से लबालब मसालेदार फिल्में।
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