विस्तार
रंग दे बसंती फ़िल्म 2006 में आई थी लेकिन इस फ़िल्म को लोग आज तक नहीं भुला पाए हैं। भुला भी कैसे पाएंगे आखिर इसमें मिस्टर परफेक्शनिस्ट जो थे। इस फ़िल्म की खासियत ये थी कि इसने दर्शकों को हर तरह के भावों की डोज़ दी। इस फ़िल्म ने लोगों को हंसाया भी, उनमें देश भक्ति की भावना जागृत की, दोस्ती की नई परिभाषा लिखी, बुराई से लड़ना सिखाया, सच्चा प्यार करना सिखाया और रुलाया भी।
इस फ़िल्म के एंड ने यकीनन सभी को रुलाया होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि पहले इस फ़िल्म को कोई दूसरा एंड दिया जाना था और डायरेक्टर ने इसे ऐन मौके पर बदल दिया। आज हम आपको बता रहे हैं कि असल में इस फ़िल्म के अंत में होना क्या था।
इस फ़िल्म के अंत में अॉल इंडिया रेडियो से अपनी बात कहते हुए सभी किरदारों को कमांडो आकर मार डालते हैं। राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने बॉम्बे टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उनका मन अचानक बदल गया और उन्होंने इसका अंत बदल दिया।
असल में पुरानी एंडिंग के हिसाब से ऐसा दिखाया जाना था कि छात्रों का एक हुजूम विरोध प्रदर्शन करते हुए सभी लड़कों की लाश को उठाए हुए सड़क पर मार्च कर रहा है। इस फ़िल्म की रिलीज़ से 6 दिन पहले राकेश ने एनडीटीवी में काम कर रही राधिका रॉय को फ़ोन किया और उनसे मदद मांगी। उन्होंने राधिका से कहा कि क्या मुझे आपका क्रू मिल सकता है? राधिका तुरंत ही अपनी वैन में कोलकाता के कॉलेज पहुंची।
इसके बाद उन्होंने कॉलेज के स्टूडेंट्स से कहा कि कुछ लड़के अॉल इंडिया रेडियो के दफ़्तर में घुस गए हैं और कमांडोज़ को शूट एट साईट का ऑर्डर दिया गया है। इसके बाद क्रू ने सभी छात्रों की प्रतिक्रिया रिकॉर्ड करनी शुरू कर दी। इसके 20 मिनट के बाद ही उन्होंने उन्हें बता दिया कि असल में ऐसा एक फ़िल्म की शूटिंग के लिए किया गया था।
राकेश ने अगले 4-5 दिनों तक ऐसा ही कई शहरों में किया और उसकी फुटेज को फ़िल्म में इस्तेमाल भी किया। लेकिन फिर राकेश का मन बदल गया। राकेश कहते हैं कि उन्होंने चंद्र शेखर आज़ाद, बिस्मिल, भगत सिंह आदि को कभी भी मरा हुआ महसूस नहीं किया। उनके लिए वो अमर हैं क्योंकि उन्होंने देश के लिए अपनी जान दे दी। इसीलिए उनके किरदार भी अमर रहेंगे।
इस तरह उन्होंने फ़िल्म का एंड कुछ पहले ही कर दिया और स्टूडेंट्स के रिएक्शन ने उसे और अधिक जीवंत कर दिया।