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एक दौर था जब फिल्मों ढिशूम ढिशूम के बिना अधूरी मानी जाती थी। जनता की पसंद को देखते हुए निर्माता और निर्देशक फिल्मों में एक्शन को सम्मानजनक दिया करते थे। एक्शन के लिए जितना हीरो का होना जरूरी है उतना ही जरूरी विलेन का होना भी होता था। शायद इसी वजह से 90 के दशक की फिल्मों की यादों में हीरो और विलेन को बराबर की जगह मिली है।
सुभाष घई की फिल्म 'हीरो' में निभाए बिल्ला नाम के विलेन के किरदार ने माणिक ईरानी को एक नया ही नाम दे दिया था। हालांकि इससे पहले माणिक ने और भी विलेन के किरदार निभाए थे, लेकिन उन्हें नई पहचान मिली फिल्म 'हीरो' से।
माणिक ईरानी का अपना ही एक अलग अंदाज था। उनका लुक ऐसा था कि कोई भी देखकर डर जाए और उस पर माणिक की जानदार डायलॉग डिलिवरी....मानों सब्जी में स्वादिष्ट मसालों का तड़का।
स्क्रीन पर माणिक के आते ही दहशत फैल जाती थी। लोग उन्हें ऐसे चाव से देखते थे मानों किसी सुपरस्टार को देख रहे हों। माणिक ने 1974 में गुंडे के किरदार से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने 'कालीचरण', 'त्रिशूल', 'मिस्टर नटवरलाल', 'शान', 'कसम पैदा करनेवाले की' जैसी कई फिल्मों में काम किया।
सुभाष घई की फिल्म 'कालीचरण' में माणिक ने गूंगे विलेन का रोल प्ले किया और इसमें वो अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे।
इस तरह माणिक ईरानी ने 80 और 90 के दशक में विलेन के रोल में राज किया और अपना खौफ काबिज रखा, लेकिन ये खौफ अचानक ही धूमिल हो गया जब माणिक इरानी ने शराब के नशे में खुद को डुबो लिया और एक दिन इस दुनिया से चल बसे।
माणिक इरानी की मौत कैसे हुई किसी को भी पता नहीं। हालांकि उनकी मौत को लेकर कहा जाता है कि उनकी मौत ज्यादा शराब पीने की वजह से हुई। वहीं ये भी कहा जाता है कि माणिक इरानी ने आत्महत्या की, लेकिन इन खबरों में कितनी सच्चाई है ये तो पता नहीं, लेकिन इतना तो जरूर सच है कि माणिक इरानी को अब फिल्म इंडस्ट्री पूरी तरह से भूल चुकी है।
अभी ही नहीं बल्कि सालों से वो माणिक को भूल चुकी है। ग्लैमर की दुनिया का यही सबसे कड़वा सच है। यहां तब तक लोग आपको सलाम ठोकते हैं जब तक आप सफलता के आसमां में चमकते हैं, लेकिन ढलते ही लोग आपको भूल जाते हैं।