आज हिन्दी सिनेमा इंडस्ट्री में यूं तो जावेद अख्तर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लेकिन आज जावेद साहब के जन्मदिन पर उनके जीवन की बारीकियों पर डालते हैं एक नज़र
जावेद अख्तर का असली नाम जादू है। उनके पिता की कविता थी, 'लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा' से उनका यह नाम पड़ा था। जावेद नाम जादू से मिलता-जुलता, इसलिए उनका नाम जावेद अख्तर कर दिया।
जावेद अख्तर 4 अक्टूबर 1964 को मुंबई आए थे। उस वक्त उनके पास न खाने तक के पैसे नहीं थे। उन्होंने कई रातें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे सोकर बिताईं। बाद में कमाल अमरोही के स्टूडियो में उन्हें ठिकाना मिला।
मुंबई मे कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपए के वेतन पर फिल्मों मे डायलॉग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए डॉयलाग लिखे लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं, जिनके साथ उनकी पहली मुलाकात 'सीता और गीता' के सेट पर हुई थी। हनी और जावेद का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है।
जावेद अख्तर नास्तिक हैं और उन्होंने अपने बच्चों- जोया और फरहान को भी परवरिश ऐसे की है।
जावेद अख्तर शुरुआती दिनों में कैफी आजमी के सहायक थे। बाद में उन्हीं की बेटी शबाना आजमी के साथ उन्होंने दूसरी शादी की।