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दुनिया में एक बात तो हर कोई मानता है कि सफल आदमी के पीछे एक महिला का हाथ होता है।
फिर वो चाहे कोई भी शख्स क्यों न हो। इस सूची में बापू यानि महात्मा गांधी का भी नाम शामिल है। महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी को लोग ‘बा’ के नाम से जानते हैं।
बा निरक्षर थी, न कभी स्कूल गई, न कभी पढाई की। मगर जिंदगी के अनुभव और विवेक ने उन्हें काफी कुछ सिखा दिया था। वहीं दूसरी तरफ बापू पढ़े लिखे थे, बैरिस्टर थे। हक, कानून और अधिकार का ज्ञान रखते थे। मगर बापू भी स्वीकराते थे कि बा कितनी गुणी थी। उनके गुण उस दौर की किसी अन्य स्त्री में ढूंढ पाना कठिन थे। गांधी जी ने स्वयं स्वीकार किया, “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर अनेक गुनी अधिक श्रद्धा रखते हैं।”
कस्तूरबा गांधी (बा) का जीवन
11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर में कस्तूरबा गांधी का जन्म हुआ। बा न सिर्फ उम्र में बल्कि, कुछ लोगों ने अनुसार गुणों और व्यक्तित्व में भी बापू से बड़ी थी। बापू और बा दोनो के व्यक्तित्व महान थे, मगर बा में त्याग भावना अधिक थी। इस बात को बापू ने भी स्वीकार किया है।
गांधी जी और कस्तूरबा गांधी का विवाह
बा के पिता गोकुलदास मानकजी और बापू के पिता करमचंद गांधी करीबी मित्र थे। दोनों ने मित्रता को रिश्तेदारी में बदल दिया। बापू की सगाई मात्र सात साल की उम्र में हुई और 13 की आयु में शादी। बा उस समय 14 वर्ष की थी। एक संयोग यह भी है कि बापू सारे जीवन बाल विवाह के खिलाफ रहे, मगर वो खुद इसका शिकार हुए थे।
बापू को बा की निरक्षरता पसंद नहीं थी। वो अकसर उन्हें ताना देते थे। परंपरा के जंजाल में होने के कारण उनका सजना, संवरना और बाहर जाना भी नागवार गुजरता था। बा का गृहस्थ जीवन कांटो के ताज जैसा था।
स्वयं में एक बड़ी शख्सियत
यह तो सभी जानते हैं कि बा ने तमाम दिक्कतो, खामियों और कमियों के बावजूद बापू का साथ हमेशा निभाया। बा जैसा बलिदानी व्यक्तित्व, हर युग के भाग्य में नहीं होते। साथ ही गांधी बा को अहिंसक प्रयासों की प्रेरणा मानते थे।
कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के ‘स्वतंत्रता कुमुक’ की पहली महिला प्रतिभागी थीं। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान रंगभेद की नीति के विरुद्ध बा कई बार जेल गईं। एक समय साउथ अफ्रीका में गांधी जी के स्थान पर बा खुद गिरफ्तार हो गईं। बापू जब भी जेल में जाते, बा ही उनके कामों को आगे बढ़ाती थीं। भारत में भी, आजादी की लड़ाई में उन्होंने बापू के कदम-से-कदम मिलाया। एक आदर्श पत्नी की तरह कस्तूरबा हमेशा अपने पति के साथ खड़ी नजर आईं, भले ही मोहनदास के कुछ विचारों से वह सहमति नहीं रखती थीं।
बा का एक अपना दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा ज्ञान था। बा का जन्म भी बापू से पहले हुआ और देहत्याग भी। 22 फरवरी 1944 को बा ने अंतिम सांस ली। बा के योगदान को भूला पाना असंभव है, मगर फिर भी उन्होंने आजाद हिंदुस्तान में एक भी सांस नहीं ली।