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सिक्किम आज भारत का अभिन्न अंग है पर ये पर्वतीय राज्य आजादी के समय से भारत का हिस्सा नही था। बुध परंपरा को मनाने और गर्म पानी के झरनों वाला सिक्किम देश 15 आगस्त 1947 के बाद से भारत की तरह ही एक आजाद देश था। और इस पर राज कर रहा था नामग्याल राजवंश।
दरअसल सिक्किम आजाद इसलिए था क्योंकि सिक्किम के नामग्याल राजतन्त्र ने भारत में विलय होने का फैसला ठुकरा चुके थे पर इंदिरा गांधी के शासनकाल में 15 मई 1975 के दिन सिक्किम को अधिकारिक रूप से भारत में शामिल कर उसे भारत का 22वां राज्य बना दिया गया और इसके बाद से सिक्किम में नाम्ग्याल राजवंश के शासन का सूरज सदा के लिए डूब गया।
सिक्किम में भारत में विलय होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है जिसमे राजनीती,कूटनीति और बलनिति जैसी महत्वपूर्ण तीनों नीतियाँ शामिल है। भारत में जब सिक्किम का विलय हुआ तो उस वक़्त चोग्याल का राज था। 6 अप्रैल 1975 की सुबह 5,000 भारतीय सैनिकों ने चोग्याल के महल पर धावा बोला था और भारतीय सैनिकों ने 30 मिनट के अंदर ही राजमहल को अपने काबू में कर 12 बज कर 45 मिनट पर सिक्किम से आजाद होने दर्जा हमेशा में लिए समाप्त कर दिया। 5,000 भारतीय सैनिकों के हमले का मुकाबला राजमहल के महज 243 सिपहियों ने किया था।
राजमहल पर अधिकार जामने के बाद उसका भारत में विलय करना आसान नही था क्योकि चीन जो भारत से एक युद्ध जीत चूका था वह खुल कर भारत का विरोध कर रहा था पर इंदिरा की कूटनीति के आगे चीन की एक नही चली। इंदिरा ने चीन को तिब्बत पर हमले की बाद याद कर उसके विरोध को दरकिनार कर दिया।
चीन के अलावा नेपाल के नागरिक भी इस विलय के विरोध में थे। चोग्याल को पद से हटाने और विलय की प्रक्रिया इतनी तेज थी कि सभी लोग अच्छी तरह से कुछ समझ नही पाए और चोग्याल ने 8 मई के समझौते पर अपने हस्ताक्षर कर दिए।
दो दिनों के भीतर सम्पूर्ण सिक्किम राज्य भारत के नियंत्रण में था। सिक्किम को भारतीय गणराज्य मे सम्मिलित करने का प्रश्न जनता के सामने रखा गया जिसमे सिक्किम की 97.5 प्रतिशत जनता नें इसका समर्थन किया। कुछ ही सप्ताह के उपरांत 16 मई 1975 में सिक्किम औपचारिक रूप से भारतीय गणराज्य का 22वां प्रदेश बना और सिक्किम में चोग्याल के शासन का अंत हुआ।
भारत की सिक्किम पर जीत सुनने में जितनी आसान लगती है वास्तव में ये इतनी आसान नही थी। भारत की इस जीत में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ ने अहम रोल अदा किया था। उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रॉ की उच्च आधिकारियों के साथ सिक्किम को लेकर एक मीटिंग की थी जिसमे रॉ के प्रमुख रामनाथ काव, पीएन हक्सर और पीएन धर ने हिस्सा लिया था।
इन तीनो से इंदिरा ने सिक्किम मामले पर सलाह मांगी तो राव ने दू टूक जवाब दिया था उनका काम सरकार के फ़ैसले को मनवाना है सलाह देना नही है और इसके बाद ही सिक्किम विलय की खुफिया प्रक्रिया शुरू हो गयी थी।