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एक ‘गोरखा’ ने अकेले ही 30 तालिबानियों का कर दिया खात्मा!

Updated Tue, 24 May 2016 10:35 AM IST
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विश्व की सबसे बहादुर पल्टन में से एक गोरखा रायफल्स का लोहा उसके दुश्मन भी मानते हैं। “कायरता से मरना अच्छा” के नारे के साथ उन्होंने खौफ़ पैदा करने वाली ख्याति पाई है। कहते हैं कि जब गोरखा अपनी खुखरी निकाल लेता है तो वह खून बहाए बिना मयान में नहीं जाती। बस ऐसा ही कुछ एक गोरखा ने भी कर दिखाया है। अफ़गानिस्तान में तैनात एक गोरखा दीपप्रसाद पुन ने अकेले ही 30 तालिबानियों का खात्मा कर दिया। Operational Awards List...EMBARGOED TO 0001 FRIDAY MARCH 25 Handout photo issued by the Ministry of Defence of Acting Sergeant Dipprasad Pun of the Royal Gurkha Rifles, who has been awarded the Conspicuous Gallantry Cross in the latest Operational Awards List. PRESS ASSOCIATION Photo. Issue date: Friday March 25, 2011. See PA story DEFENCE Honours. Photo credit should read: Sergeant Ian Forsyth/MoD/PA Wire NOTE TO EDITORS: This handout photo may only be used in for editorial reporting purposes for the contemporaneous illustration of events, things or the people in the image or facts mentioned in the caption. Reuse of the picture may require further permission from the copyright holder.गोरखा नेपाल मात्र के सोल्जर नहीं हैं, दुनिया गोरखा की ताकत का लोहा मानती है। ऐसा ही एक वाक्या अफ़गानिस्तान में भी हुआ। अफगानिस्तान में सितंबर 2010 में गोरखा दीपप्रसाद पुन अपनी चौकी पर तैनात था। चौकी से कुछ ही दूरी पर मौजूद सड़क पर कुछ लोग विस्फोटक लगा रहे थे। गोरखा को ये समझने में देर नहीं लगी कि वह चारों ओर से घिर चुका है। तालिबानियों ने पूरी योजना के साथ चौकी पर हमला किया था। उस रात दोनों ओर से गोलियों और रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से हमला जारी रहा। लेकिन गोरखा दीपप्रसाद ने पूरे जोश और हिम्मत के साथ अपनी मशीनगन उठाई, ट्राईपॉड लगाया और धुंआधार गोलियों की बौछार शुरू कर दी। talibaniगोरखा दीपप्रसाद लगातार जवाबी कार्यवाही करता रहा। दीपप्रसाद ने 17 ग्रेनेड से उन पर हमला किया, ग्रेनेड खत्म होने पर एसए 80 सर्विस राइफल्स गोलियों की बौछार शुरू कर दी। यहां तक तालिबानियों पर लैंडमाइन भी फेंके। उन्होंने इस दौरान कुल 400 राउंड फायर किए। छह फॉस्फोरस ग्रेनेड, छह नॉर्मल ग्रेनेड और एक क्लेमोर माइन भी फेंके। 2असाधारण बहादुरी, क्षमता और नायकत्व का प्रदर्शन बखूबी करते हुए दीपप्रसाद ने तब तक अपनी लड़ाई जारी रखी जब तक कि अतिरिक्त सेना उसकी मदद के लिए चौकी तक नहीं पहुंची। जब तक अतिरिक्त सेना वहां पहुंची उन्होंने अकेले ही 30 तालिबानी लड़ाकुओं को मार गिराया था। 8afdd783ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने उनकी इस बहादुरी के लिए 'बकिंघम पैलेस' में एक समारोह के दौरान उन्हें 'कॉन्सपिक्युअस गैलेंट्री क्रॉस' पुरस्कार से सम्मानित किया। समारोह में गोरखा दीपप्रसाद ने कहा कि "उस वक्त मैं निराश नहीं था क्योंकि लड़ने के अलावा मेरे पास तब दूसरा कोई चारा नहीं था। तालिबानियों ने चारों ओर से चेकप्वाइंट पर मुझे घेर लिया था और मैं अकेला था। जिस तरह से मुझे उन्होंने चारों ओर से घेर लिया था, मैं समझ चुका था कि मेरा मारा जाना तय है। तब सोचा जितने ज्यादा लोगों को मार सकूंगा, मारकर ही मरूंगा।" &NCS_modified=20131009110413&MaxW=640&imageVersion=default&AR-303269994अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि "एक तालिबानी लड़ाकू गार्ड हाउस से सटे टावर की ओर चढ़ने की कोशिश कर रहा था, तब मुझे किसी भी तरह से उसे ज़मीन पर गिरा देना था। मैंने उस लड़ाकू को वहां से हटाने में कामयाबी हासिल तो कर ली लेकिन तभी मेरे हथियार ने धोखा दे दिया। गोली नहीं चली। मैंने मशीनगन का ट्राईपॉड उठाकर तालिबानी के चेहरे पर दे मारा, जिससे दुश्मन लड़ाकू बिल्डिंग की ज़मीन पर गिर गया।" 9a7a11bcयही नहीं गोरखा दीपप्रसाद पुन का पूरा परिवार पीढ़ियों से गोरखा रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे चूका है। गोरखा दीपप्रसाद के पिता ने भी गोरखा राइफल्स को अपनी सेवाएं दीं। उनके दादा को तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा थियेटर में अपनी बहादुरी के लिए 'विक्टोरिया क्रॉस' से सम्मानित भी किया गया था।
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