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तानाशाह (परमसत्तावादी या निरंकुश) एक ऐसा शासक होता है, जो किसी राष्ट्र का एकमात्र शासक होने के साथ साथ समस्त राष्ट्रीय शक्तियों को अपने में धारण कर लेता है, जिनमें सैन्य शक्तिया प्रमुख होती हैं। वो एक मदमस्त हाथी के जैसे हो जाता है जो किसी की भी नहीं सुनता बस अपने मन की करता है, फिर चाहे वो सही हो या गलत, और जो कोई भी उसके रास्ते में आता है वो उसे भी तबाह कर देता है कुचल देता है। दुनिया में बहुत तानाशाह हुए हैं। इन तानाशाहों की लिस्ट में आज हम बात कर रहें हैं युगांडा के क्रुर शासक रहे दादा ईदी अमीन की।
अमीन का जन्म 1925 में कोबोको में हुआ था। ईदी अमीन 1971 से 1979 तक युगांडा का सैन्य नेता एवं राष्ट्रपति रहा था। अमीन 1946 में एक सहायक रसोईये के रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना की किंग्स अफ्रीकन राइफल्स में शामिल हुआ और जनवरी 1971 के सैन्य तख्तापलट द्वारा मिल्टन ओबोटे को पद से हटाने से पहले युगांडा की सेना में मेजर जनरल और कमांडर का ओहदा हासिल कर लिया। बाद में देश के प्रमुख पद पर आसीन रहते हुए उसने खुद को फील्ड मार्शल के रूप में प्रमोट कर लिया। अमीन को लीबिया के मुअम्मर अल-गद्दाफी के अतिरिक्त सोवियत संघ तथा पूर्वी जर्मनी का भी समर्थन हासिल था।
युंगाडा के पूर्व तानाशाह ईदी अमीन ने राष्ट्रपति के तौर पर करीब आठ साल तक राज किया और लोगों पर जमकर जुल्म किया और जनता में अपना आतंक फैला दिया। लेकिन करीब 35 साल पहले 11 अप्रैल को ही ईदी अमीन को भी घुटने टेकने पड़े और 5 लाख से ज्यादा लोगों की हत्या के दोषी दादा ईदी अमीन को युगांडा छोड़कर भागना पड़ा।
ऐसे हुआ सत्ता पर काबीज
1966 से युगांडा सेना और एयरफोर्स के मुखिया रहे ईदी अमीन ने 1971 में मिल्टन ओबोटे को सत्ता से बेदखल कर यहां की सत्ता अपने कब्जे में कर ली थी। तख्तापलट के कुछ दिनों बाद ही अमीन ने खुद को युगांडा का राष्ट्रपति, सभी सशस्त्र बलों का प्रमुख कमांडर, आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ और चीफ ऑफ एयर स्टाफ घोषित कर दिया।
इसने इतना ही नहीं किया बल्कि, इस तानाशाह और उग्र राष्ट्रवादी ने युगांडा से लांगो और अछोली जातीय समूहों को सफाये के लिए एक जनजातीय नरसंहार कार्यक्रम शुरू कर दिया। इसके पीछे का मकसद बिल्कुल साफ था, जो भी ओबाटे समर्थक थे उनका तथा उनकी सेना का सफाया करना।
देश छोड़ने का फरमान किया जारी
ईदी अमीन ने 1972 में ये आदेश जारी किया कि जिन एशियाई लोगों को पास युगांडा की नागरिकता नहीं है, वो देश छोड़ कर चले जाय नहीं तो उनके साथ अच्छा नहीं होगा। इसके बाद करीब 60 हजार भारतीयों और पाकिस्तानियों को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। देश के कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा एशियाई लोगों का था। इनके देश छोड़ते ही युगांडा की अर्थव्यवस्था गडबड़ा गई।
अमीन का हुआ तख्तापलट
हर बुराई का अंत तो होता ही हैं इसी तरह 1979 में जब तंजानिया और अमीन विरोधी युगांडा सेना ने धावा बोला, तब अमीन की आठ साल की तानाशाही का खात्मा हुआ। हालांकि, इससे पहले अक्टूबर 1978 में अमीन ने तंजानिया पर असफल हमले की कोशिश की थी। अमीन ने देश छोड़ने के बाद कुछ समय लीबिया में शरण ली। फिर वो सऊदी अरब में बस गया, जहां 16 अगस्त 2003 में उसकी मौत हो गई।
अफ्रिका में इसे 'मैड मैन ऑफ अफ्रीका' भी कहते थे
इस तानाशाह को 'मैड मैन ऑफ अफ्रीका' भी कहा जाता था। अमीन आमतौर पर लोगों की हत्या के लिए हथियारों का इस्तेमाल नहीं करता था। उसके सजा देने के तरिकें भी अत्यन्त क्रुर थे। उसने कुछ लोगों को जिंदा जमीन में दफना दिया तो कुछ बचे लोगों को अपने भूखे मगरमच्छों के सामने फिकवा दिया।
आदमखोर हैवान था ये तानाशाह
उसने अपने पैलेस की लगभग सभी खूबसूरत लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया। कहा जाता है कि अमीन इंसानों का मांस खाने का शौकीन था और इसके सबूत भी मिले थे। उसके फ्रिज से बहुत सारे इंसानों के सिर बरामद हुए थे। ये तो तानाशाह ही नहीं आदमखोर हैवान भी था।