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एक महिला को सशक्त कब माना जा सकता है? आजकल लोगों की जो सोच है उसके हिसाब से अगर एक महिला अपने पैरों पर खड़ी हुई है यानी अगर वो खुद कमाती है तो वो सशक्त है। आप लोगों ने कभी अपने आस-पास की किसी कामकाजी महिला को ध्यान से देखा है? कभी ध्यान दिया है कि एक कामकाजी और शादीशुदा महिला किस हाल में रहती है?
आज सिर्फ़ अपने पैरों पर खड़े हो जाने से ही किसी महिला की सारी समस्याएं ख़त्म नहीं हो जातीं, बल्कि वहां से नई चुनौतियां शुरू होती हैं जिनका सामना करते-करते कई बार महिलाएं अवसाद का शिकार तक हो जाती हैं। लेकिन इस ओर आमतौर पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।
भारतीय समाज में एक महिला को सभी को खुश रखना होता है। उसकी ये ज़िम्मेदारी होती ही कि वो अपने घर और ससुराल में सभी की सेवा करे। अब एक गृहणी के लिए तो ये फिर भी आसान है लेकिन एक कामकाजी महिला को अपना घर भी देखना है और अपना काम भी। ऐसे में सोचिये अपने काम और घर के बीच बैलेंस बैठाना कितना मुश्किल होता है।
आज के समय में लड़केवालों को दहेज़ भी चाहिए और लड़की का कामकाजी होना भी ज़रूरी होता है। लड़की काम पर तो जाए लेकिन घरवालों के लिए नाश्ता और खाना भी बना जाए। घर के बाकि कामों के लिए तो मेड ठीक है लेकिन भाई हम खाना किसी बाहरी आदमी के हाथ का बना नहीं खाते हैं। अब ऐसे में लड़की के पास फ्रस्टेट होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है।
भले ही आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हों लेकिन पुरुषों की सोच अभी पीछे ही है। जैसा कि साफ़ है कि आज भी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं मिलता है। काम के मामले में भी महिलाओं को कम ही आंका जाता है। किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए किसी महिला को लेने से पहले 100 बार सोचा जाता है।
लोग ऐसा समझते हैं कि एक शादिशुआ महिला किसी प्रोजेक्ट को अच्छे से हैंडल नहीं कर पाएगी। टीवी सीरियलों में भी ऑफिस की महिलाओं को स्वेटर बुनते या घर का कोई और काम करते हुए दिखाया जाता है। जब मीडिया ही महिलाओं की ये छवि पेश करेगा तो भला समाज की सोच कैसे बदल पाएगी? क्या आपने कभी इस छवि के पीछे के कारण को समझने की कोशिश की है?
अगर किसी महिला को ऑफिस से जाकर घर के खाने में क्या बनाना है भी सोचना होगा तो भला वो काम ठीक से कैसे कर पाएगी?
ऑफिस जाने वाली लड़कियों के लिए कहा जाता है कि ये शादी से भागती हैं। अब कोई किसी भी चीज़ से डरकर क्यों भागेगा? जब उसको सामने किसी तरह का कोई खतरा नज़र आएगा। अब अगर कोई अपने ऑफिस के काम के प्रेशर में है और उससे ये कहा जाए कि तुम्हें शादी करके एक घर संभालना है और साथ ही नौकरी भी करनी है तो वो क्या कहेगा?
शादी के बाद लड़कों पर तो कोई ख़ास असर नहीं पड़ता। लेकिन लड़कियों पर जिम्मेदारियों का एक बोझ लाद दिया जाता है। उन्हें अपने करियर के साथ-साथ अपने ससुराल वालों की इच्छाओं को भी पूरा करना पड़ता है। अगर अरेंज्ड मैरिज को छोड़ भी दें तो लव मैरिज के हाल भी बहुत बुरे हैं। शादी के बाद तुम बदल गए हो जैसी लाइनें पत्नियां इसलिए इस्तेमाल करती हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाज़ा ही नहीं होता कि जिस व्यक्ति को उन्होंने अपने जीवन साथी के रूप में चुना है वो भी उससे वैसी ही उम्मीद करने लगेगा जैसी ये समाज रखता है।
आज लिव इन का चलन इसीलिए बढ़ रहा है क्योंकि शहर की कामकाजी लड़कियां अपने करियर को लेकर बहुत सजग हो गई हैं। भला कोई क्यों अपनी सालों की मेहनत को पल भर में मिट्टी में मिलाना चाहेगा? यही वजह है कि आज कल के लड़के-लड़कियां शादी नहीं करना चाहते। उन्हें बंधन पसंद नहीं है।
समाज में ऐसे लोगों की भी भरमार है जो अपने घर की महिलाओं का पूरा साथ दे रहे हैं। इन महिलाओं को अपने काम में कोई ख़ास दिक्कत पेश नहीं आती है लेकिन आज भी ज़्यादातर घरों को एक कामकाजी और संस्कारी बहू चाहिए। लेकिन ये संभव नहीं है। ऐसे घरों में टकराव होता है और वो बिखर भी जाते हैं।
तो अगली बार किसी लड़की से ये पूछने से पहले कि आपको खाने में क्या बनाना आता है, पहले ये सवाल खुद से पूछिएगा। ताकि पलट कर अगर यही सवाल आपसे पूछ लिया जाए तो आपका ईगो हर्ट न हो जाए।