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मैं स्कूल से आई ही थी। वॉशरूम जाते ही देखा कि ब्लड निकल रहा है। मैंने मम्मी को बुलाया और बताया कि पीरियड शुरू हो गया। मम्मी मुझे किनारे ले गईं और खूब समझाने लगीं कि जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो ये होता है। दर्द तो नहीं हो रहा न? वगैरह-वगैरह पूछते हुए उन्होंने स्टेफ्री अल्ट्रा की एक नैपकिन पकड़ा दी।
उस वक्त मुझे स्पेशल अटेंशन मिलने लगी थी। वैसे भी बिस्तर पर पड़े-पड़े ही सबकुछ मिलता था पर उस वक्त सबकुछ अजीब होता जा रहा था। मम्मी ने बताया था कि इसके बारे में जेंट्स से डिसकस नहीं करते, डैडी को भी नहीं बताते। कहीं दाग लग जाता है तो बहुत बेइज़्ज़ती होती है। पूजा भी नहीं करते।
मुझे लगा कि जब लड़कों को बताते ही नहीं तो उन्हें पता भी नहीं होता होगा। बहुत अचंभित हुई जब एक बार हमारी पूरी क्लास प्रिंसिपल मैम से मिलने गई थी और मेरी एक सहेली की स्कर्ट पर बड़ा-सा दाग लग गया था। तब मैं 10वीं में थी। मैं उसे वॉशरूम ले गई। उसके बाद छुट्टी ही होने वाली थी इसलिए वो वॉशरूम के पास ही इंतज़ार करने लगी। मेरे कुछ क्लासमेट्स जो निहायत ही अच्छे और मिलनसार माने जाते थे, पूछने लगे कि उसे क्या हुआ है। मैंने कहा कि फीवर था और उल्टी आने लगी थी। वो सबकुछ समझते थे, उन्होंने उसका आपस में मज़ाक उड़ाया।
जब पैड खरीदना होता तो ऐसी दुकान चुनती थी जहां कोई महिला हो। मेडिकल स्टोर पर पैड लेने जाती तो इंतज़ार करती कि सब चले जाएं तो मांगूं। उधर हम जैसी लड़कियों के मेडिकल स्टोर पर जाते ही लड़के कयास लगाने लगते हैं कि पैड ही लेने आई होगी, भले ही हम उस दिन क्रोसिन मांग रही हों।
पहले पीरियड्स के दौरान दर्द नहीं होता था। बाद में इतना दर्द होने लगा कि मैं बेहोश हो जाती थी और लोगों को लगता कि अचानक से क्या हो गया है इसे। जब मैं स्कूल में थी तो सबकुछ छिपाने की खूब कोशिश की। एक बार मम्मी को बताया भी कि लड़कों को सब पता है, तो भी उन्होंने कहा कि जाने दो, खुद से मत बोलना।
मैं कॉलेज में थी तो भी हम लड़कियां पीरियड्स के वक्त उठते ही अपनी जींस चेक करवातीं, "देख कुछ लगा तो नहीं है"। पर अब कुछ लगने की घबराहट-सी नहीं होती थी। पहले कुछ लग जाने का जो डर था वो खत्म हो गया। फाइनल इयर का आखिरी पेपर था और मैं दर्द से मर रही थी। मेरे पीरियड्स का तीसरा दिन था फिर भी मैं बैठ नहीं पा रही थी। रूममेट ने कहा कि बस हिम्मत कर के चली जा, लास्ट पेपर है। उतना दर्द फिर कभी नहीं हुआ। डैडी ने सुबह "ऑल द बेस्ट" बोलने के लिए कॉल किया था। मैंने कहा कि बस दुआ करें कि ठीकठाक पेपर हो जाए, तबीयत बहुत खराब है। वो पूजा-पाठ बहुत करते हैं। उन्होंने कहा कि हनुमान चालीसा पढ़ती हुई चली जाओ बेटा।
मुझे दर्द की वजह से गुस्सा आ रहा था। मैंने कहा कि इसमें हनुमान जी भी कुछ नहीं कर सकते। पीरियड्स का दर्द है और बैठने की भी हिम्मत नहीं है। डैडी ने मुझे बहुत समझाया और हिम्मत दी। उस दिन पहली बार मैंने खुलकर डैडी से इस बारे में बात की थी। उससे पहले कुछ बोलती भी थी तो इतना क्लियर नहीं।
मेरी पहली जॉब लगी थी। दर्द होने लगता तो बैठा नहीं जाता। मैं गर्म पानी पीती और नीचे बैठ जाती। नीचे बैठकर थोड़ा आराम मिलता था। उस वक्त सबलोग पूछते थे कि तबीयत कैसी है? ठीक हो न? मैंने सबको आराम से बताना शुरू किया कि इस दौरान मुझे बहुत दर्द होता है। कई लोग सहानुभूति दर्शाते और कई भौंहें सिकोड़ लेते थे। उन्हें अचंभा होता था कि मैं ये बात ऐसे कैसे बोल रही हूं। मैंने कई बार कहा कि मुझे ये सब बोलने में कोई प्रॉब्लम नहीं है।
मेरे सबसे अजीज़ दोस्तों ने मिलकर आगरा घूमने का प्लान बनाया था। मैं बैग पैक कर के जा ही रही थी कि डाउन हो गई। मुझे ऐसी हालत में जाने में कोई प्रॉब्लम नहीं थी पर मुझे पता था कि मेरी हालत खराब होने लगेगी तो सब मायूस हो जाएंगे और ट्रिप की ऐसी-तैसी हो जाएगी। मैंने पुष्कर को फोन किया और सीधे शब्दों में बताया कि मेरे पीरियड्स शुरू हो गए हैं और मैं नहीं आ पाऊंगी। उसने बहुत रिक्वेस्ट की, कहा कि सब मैनेज हो जाएगा.. तुम चली आओ। पर ट्रिप से ज्यादा मुझपर ध्यान न रहे इसलिए मैं नहीं गई।
अब मैं मेडिकल स्टोर पर जाकर सबके चले जाने का इंतज़ार नहीं करती। आराम से अंकल से बोलती हूं कि स्टे फ्री चाहिए। ऑल नाइट, अल्ट्रा। कई बार इसपर भी डिसकस करती हूं कि ये पिछली बार तो 75 का था। अब 80 कर दिया! वो पैकेट निकाल कर अखबार में लपेटने लगते हैं और फिर पॉली बैग में डालते हैं। मैं मना कर देती हूं, कहती हूं कि इतना सबकुछ वेस्ट करने की ज़रूरत नहीं। पैकेट हाथ में लिए चली आती हूं। पहले लोग उस दुकान के आस-पास खड़े होकर ऐसे एक्सप्रेशंस देते थे जिससे मैं खुलकर नैपकिन मांग ही न पाऊं और अगर मैंने मांग भी लिया तो वो लोग ऐसे हो जाते थे मानो वो चाहते हों कि लड़की को शर्म से पानी-पानी तो होना ही चाहिए। मुझे गुस्सा आता था। अब जब आराम से बोलती हूं तो उन्हें सभ्य नहीं लगती पर उनके वो सड़क-छाप एक्सप्रेशंस नहीं आते जो पहले आते थे।
इस बार घर गई थी दीवाली पर। रास्ते में ही पीरियड शुरू। अगले दिन दिवाली थी। मैंने सबके सामने कहा कि पूरी आरती मैं करूंगी। और ऐसा बगावती होकर नहीं कहा था, बहुत ही आराम से शांत स्वर में। किसी को कोई आपत्ति नहीं थी।
शुरू से सबने यही बताया कि छिपाना है। हम हर महीने छिपने-छिपाने में ही उलझ जाते हैं और वो लोग पैंट पर सूक्ष्म दृष्टि डालकर भी दाग ढूंढ लेना चाहते हैं। उन्हें ज़रा-सा एहसास भी हो जाए तो फड़फड़ाने लगते हैं और वो सबकुछ करते हैं जिससे आपको एहसास दिला सकें कि उन्हें पता चल चुका है। वो सबूत ढूंढने की फिराक में रहते हैं और दाग मिले भी तो आपको नहीं बताते, 2-4 लोगों तक प्रचार-प्रसार करते हैं। वो इसी में आपकी प्रतिभा तलाशते हैं कि उनके लाख ढूंढने के बावजूद आप कैसे उस दाग को छिपा सकती हैं। उस वक्त बहुत सारी बातें सुनने को मिलती हैं.. कि चला नहीं जा रहा लेकिन नारीवाद झाड़ेंगी.. कि दर्द से मर रही हैं लेकिन घर में बैठकर चैन से नहीं रहेंगी.. कि लड़कियों की भी ज़िंदगी कितनी बद्हाल है.. कि दर्द से ज्यादा तो इनके नखरे होते हैं... कि बहुत बहादुर बनती हैं, अब सारा भूत उतर गया। और ऐसा कहते हुए वे जानते हैं कि ये उनके सृजन का कच्चा माल है, पर मानना नहीं चाहते। उन्हें ये स्वीकारने में बहुत दिक्कत होती है कि उन जैसे 56 इंच की छाती वालों को जन्म देने वाली कोई 36 इंच की छाती वाली ही होती है।
पीरियड्स के नाम पर इतनी आंखमिचौनी इसीलिए चलती है क्योंकि आप भागती फिरती हैं। आप छिपती हैं सभ्य बनी रहने के लिए। आप चाहती हैं कि किसी को पता न चले इसलिए वो पता लगाना चाहते हैं। जिस दिन आप बार-बार अपनी पैंट चेक करना छोड़ देंगी उस दिन से दाग ढूंढने का सिलसिला बंद हो जाएगा। जिस दिन आप अपने मेंस्ट्रुअल-पेन को सिर-दर्द और बुखार का नाम देना बंद करेंगी वो आपसे ये बार-बार नहीं पूछेंगे कि आपको क्या हुआ है। जब आप व्हिस्पर या स्टे फ्री के पैकेट को अखबार और फिर पॉलिथीन में रैप करवाना छोड़ देंगी तो वो आपके हाथ में लिए बैग में ताक-झांककर अनुमान लगाना बंद कर देंगे कि उसमें क्या है।
तो अगली बार अगर कोई उस दाग पर माइक्रोस्कोप लगाए तो आप घबराएं नहीं, हिचकिचाएं नहीं। आराम से बताएं कि पीरियड्स हैं, तो दाग लग गया होगा। आप देखिएगा कैसे उसके हाव-भाव बदल जाते हैं। आपको आवेश में आकर ये कहने की भी ज़रूरत नहीं है कि उसके नज़रिए में धब्बा है इसलिए वो दाग है। एक वाक्य में कहें कि दाग तो साफ़ हो जाएगा। आपकी सरलता ही उनकी आतुरता खा जाएगी। अपने पीरियड्स से आप ही नफरत करेंगी तो प्यार कौन करेगा। ये है तभी तो हम सब हैं न, इसे स्वीकारें.. खुशी के साथ!