गालियां देना या किसी को वर्बली एब्यूज करना भावनात्मक शोषण के अंतर्गत आता है। शारीरिक पीड़ा से अधिक कष्टकारी होती है मानसिक पीड़ा। शब्द चुभते हैं और उनका असर क्षणिक न होकर लंबे अरसे तक रहता है। मग़र लगातार मौखिक रूप से किसी को दी गयी यह यंत्रणा न सिर्फ़ उसको डिप्रेस कर सकती है बल्कि हमेशा के लिए उसके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। स्वाभिमान को ख़त्म करती है और खुद पर से यक़ीन उठा देती है।
किसी रिश्ते में मोहब्बत के नाम पर गालियां देना और उनका सहन कर लिया जाना आम बात है। लड़कियों, मोहब्बत करना, डूब कर करना। खुद को भुला देने की हद तक। सब कुछ कुर्बान करना पर खुद का आत्म-सम्मान नहीं। दुनिया का कोई गुनाह ऐसा नहीं जिसके लिए तुम्हें किसी के हाथों अपमानित होना पड़े। किसी से गालियां सुननी पड़ें या किसी के फ़िज़िकल या वर्बल एब्यूज़ का शिकार होना पड़े। यूं लड़कियों को गाली देने का अधिकार तो हर ऐरा-गैरा अपनी जेब में रखे घूमता है। राह चलती लड़की छोटे कपडे पहने चल रही हो तो चरित्रहीन का तमगा हासिल कर लेती है। बॉयफ्रेंड के साथ घूम रही हो तो वेश्या का बिल्ला गले में लटक जाता है। मज़े की बात यह है कि उन्हें यूं देखने में पुरुषों को ही सबसे अधिक आनंद आता है। तो उन्हें आंखों का सिरप देने के साथ फ्री में लड़कियों को जो मिलती है वो होती हैं गालियां। फिर भी यातना देने वाला कोई बेहद क़रीबी हो तो उसका दुःख कई गुना बढ़ जाता है।
लड़कियों अग़र तुम्हें लिव इन में रहने के कारण कोई रखैल कहे तो उसे बताना रखैल का अर्थ होता है भरण-पोषण देने के बदले में रखने वाला। उसको बताना कि तुम सक्षम हो अपना भार खुद उठाने में। जो तुम कर रही हो वो प्रेम है। अगर कोई तुम्हारे अतीत पर कीचड़ उछाले तो उसे बताना कि अतीत जैसा भी था तुमने खुद चुना था और तुम्हें फ़क्र है उन सारी मोहब्बतों पर जो तुमने कीं क्योंकि तुम ईमानदार थी। और अग़र तुमने कभी बेईमानी की भी तो पश्चाताप भी तुम करोगी। किसी को कुछ भी कहने का इख़्तियार नहीं देना।
याद रखना तुम, तुम हो और जो कर रही हो वो तुम्हारी नज़रों में ठीक होना चाहिए। गाली देने वाला कितने भी प्रेम का दावा करे, उसे पहली ही बार में बता देना कि ये यहां नहीं चलेगा। समस्या है तो उसे पहचानो और उस के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाओ। प्रेम की पराकाष्ठा तक प्रेम करो पर स्वाभिमान को ताक पर रखकर नहीं। प्रेम में झुकने का मतलब गिरना नहीं होता है।
साभार - दिव्या विजय