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आज हम आपसे उन चंद महिलाओं की बात करना चाहते हैं जो मेट्रो में मिले अधिकारों का नाजायज़ फ़ाएदा उठाती हैं। ये सभी पर लागू नहीं होता लेकिन कुछ महिलाएं अपना फ्रस्टेशन यहीं आकर निकालती हैं।
कल की ही बात है, मेट्रो में सफ़र करते समय एक महिला से सामना हुआ। उस महिला को हम काफ़ी दिनों तक भूल नहीं पाएंगे। असल में हुआ यूं कि 8 महीने में पहली बार हमने ब्लू लाइन मेट्रो के महिला कोच में पुरुषों को खड़ा हुआ देखा।
कारण ये था कि मेट्रो बहुत ज़्यादा भरी हुई थी और उसमें खड़ा होने की जगह नहीं थी जिस वजह से इन लोगों को वीमेन कोच में ही खड़ा होना पड़ रहा था। तभी ट्रेन में एक महिला चढ़ीं। उन्होंने आते ही लोगों पर चिल्लाना शुरू कर दिया। उन्होंने उन पुरुषों को वहां से जाने के लिए कहा जो कि सही था लेकिन ऐसा करने में वो इतना आगे बढ़ गईं कि भूल गईं कि एक सह यात्री के साथ कैसे पेश आना चाहिए।
हम मानते हैं कि वो पुरुष वहां खड़े होकर बिल्कुल भी ठीक काम नहीं कर रहे थे लेकिन ये महिला भी लगातार बड़-बड़ करती रहीं। जितना लोग भीड़ से परेशान नहीं थे उससे ज़्यादा इस महिला से परेशान हो गए।
हद तो तब हो गई जब इस महिला ने बड़ाबड़ाते हुए ये तक कह दिया कि एक बार तो मैंने एक आदमी को थप्पड़ तक मार दिया था। ये बात सुनकर तो उनसे यही कहने का मन हुआ कि मैडम ज़रा यहां भी अपनी कला का नमूना दिखा दीजिए। हम भी देखें कि मेट्रो में ये दादागिरी कब से शुरू हो गई है। लेकिन फिर हमने चुप रहना ही बेहतर समझा।
एक दूसरा वाकया बताते हैं। एक बार फिर से हम लेडीज कोच में सफ़र कर रहे थे। पास में ही 4-5 लड़कियों का ग्रुप बैठा हुआ था। ये सारी ज़मीन पर बैठी हुई थीं, कुछ खा रही थीं और गाना-बजाना कर रही थीं। कुलमिलाकर ये मेट्रो के तीन नियम तोड़ रही थीं। तभी एक अंकल अपने परिवार के साथ गलती से लेडीज़ कोच में चढ़ गए।
देखने में लगता था जैसे वो कहीं बाहर से आए हैं और पहली बार मेट्रो में चढ़े हैं। जिस वजह से उन्हें नियमों की ख़ास जानकारी नहीं है। तो हुआ यूं कि अंकल को देखते ही तीन नियम तोड़ती हुई लड़कियों ने तुरंत ही तलवार उठा ली और उनके पीछे पड़ गईं।
उनसे कहने लगीं कि ये लेडीज़ कोच है और इससे तुरंत उतर जाइए। वो बोले हमें पता नहीं था और अगले ही स्टेशन पर हमें उतरना है। इसके बाद वो अंकल तो उतर गए लेकिन ये लड़कियां काफ़ी देर तक 'दीज़ पीपल' नामक मुद्दे पर बहस करती रहीं और वो तीन नियम तोड़ती रहीं।
इन सबके बाद एक महिला होते हुए हम मेट्रो में सफ़र करने वाली महिलाओं से यही कहना चाहते हैं कि जितना ध्यान आप मेट्रो में अपने अधिकारों का रखती हैं उतना ही ध्यान आपको अपने कर्तव्यों का भी रखना चाहिए।
किसी पर भी उंगली उठाना बहुत आसान होता है लेकिन जब वही बातें खुद पर लागू होने की बात आती है तो आप महिला होने का फ़ाएदा नहीं उठा सकतीं। वैसे भी मेट्रो के नए नियम के तहत अब ज़मीन पर बैठने के पैसे लगने वाले हैं।
आपको बता दें कि जब से ये नियम लागू हुआ है ज़्यादातर महिलाओं से ही हर्ज़ाना वसूला गया है। तो मेट्रो में मिले हुए अधिकार का फ़ाएदा उठाइये लेकिन इसकी आड़ में लोगों को बेईज्ज़त करना बंद कीजिए।