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मेट्रो के लेडीज़ कोच में सफ़र करने वाली लड़कियों 'कृपया ऐसा न करें'

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Thu, 19 Jan 2017 11:29 AM IST
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s - फोटो : google
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विस्तार


यकीन मानिए वक़्त बहुत कम है, छुट्टी का समय होने वाला है, नज़र घड़ी पर टिकी हुई है कि कब घर जाएं, लेकिन फिर याद आ जाता है कि आज लेट आये थे तो चुप-चाप बैठे रहने में ही भलाई है। तो कम कहेंगे ज़्यादा समझिएगा। आज हम अपने दिल की भड़ास निकालना चाहते हैं। दिल का दर्द आप लोगों के साथ बांटना चाहते हैं। ख़ासकर हम ये उन महिलाओं के लिए लिख रहे हैं जो लेडीज़ कोच में सफ़र करती हैं। इसे आप एक खुला ख़त समझिए...

 

तो लेडीज़ मेट्रो में सफ़र करते वक़्त कुछ बातों का ध्यान रखिए 


कृपया मेट्रो आने का इंतज़ार करते समय लाइन बनाएं 


सबसे पहली चीज़ जो मैंने लेडीज़ कोच में सफ़र करते हुए पिछले कुछ सालों में देखी है वो ये कि हम लोगों को कोई माई का लाल लाइन में नहीं लगा सकता। हर रोज़ मेट्रो स्टेशन पर एक औरत चिल्ला-चिल्ला कर कुछ बातें रिपीट करती है जो वो सालों से कहती आ रही है, लेकिन हम उसे नहीं सुनते। वो कहती है कि भईया लाइन लगा लो, और ट्रेन से उतरने वाले लोगों को पहले उतरने दो, लेकिन नहीं हम क्यों मानें? हमको पता है कि कुछ लोग उतरने वाले हैं लेकिन हम जानबूझकर वहां दरवाज़े के सामने झुंड बनाकर खड़े हो जाते हैं। भाई क्यों लगाएं लाइन, जब कोई नहीं लगा रहा तो हम क्यों लगाएं? बस सब यही सोचते हैं।

यकीन मानिए हम अक्सर ये देखते हैं कि आदमी लोग तो लाइन बनाए हुए आराम से मेट्रो आने का इंतज़ार करते हैं लेकिन महिलाएं जैसे उन्हें लगता है कि ये रूल्स उनके लिए नहीं बनाए गए हैं।


बेवजह किसी भी व्यक्ति से सीट न मांगे 

 

देखिए माना कि हम लोगों को कई जगह प्राथमिकता मिलती है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि लड़कों के पैरों में दर्द नहीं होता। कभी भी किसी भी लड़के से ऐसे ही मुंह फाड़ के सीट मांग लेना अच्छी बात नहीं होती। हम जा रहे होते हैं शॉपिंग करने, कोई मज़दूर अगर लेडीज़ सीट पर थका-हारा बैठा भी है तो यार उसी समय महिला अधिकार दिखाने की क्या ज़रुरत है? या फिर कुछ आंटियां अच्छी-खासी किसी भी लड़के से कह देती हैं बेटा उठो, जो कि नॉर्मल सीट पर बैठा होता है, क्यों? क्या ज़रुरत है? 2-3 स्टेशन के लिए खाड़ी नहीं रह सकतीं? वैसे तो आंटियों को लड़के खुद ही सीट ऑफर कर देते हैं (जी हां ऐसा होता है, अच्छे लोग भी हैं इस दुनिया में) लेकिन इसके बावजूद किसी को ज़बरदस्ती सीट से उठाकर उसकी बद्दुआ क्यों लेना?

भूलिए मत कि स्वास्थ्य किसी का भी खराब हो सकता है।


लड़कियों अपने पैरों के ऊपर खड़े होना शुरू करो 

 

अच्छा आपके साथ ये कभी हुआ है, कि एक तो मेट्रो खचाखच भरी रहती है उसपर महिलायें ये सोच लेती हैं कि यार यहां इतनी भीड़ है तो हर ग़लती माफ़ ही समझो। यहां हमें किसी सहारे की ज़रुरत ही नहीं है। ये बाकि की जो लड़कियां हमारे साथ सफ़र करती हैं ये आखिर किसलिए हैं? हमारा बोझ उठाने के लिए! जब आपको पता है कि मेट्रो के ड्राईवर कभी भी ब्रेक मार देते हैं तो आप अपने पैर ज़मीन पर जमा के क्यों खड़ी नहीं होतीं? ब्रेक लगा नहीं कि आपका 'इधर चली मैं उधर चली, जाने कहां मैं किधर चली' शुरू हो जाता है। आपको इस बात से फ़र्क पड़ता बंद हो जाता है कि हम किसपर गिरे पड़ रहे हैं। बस हमें तो लेट जाना है, बाकि औरतें तो हैं ही तो चोट लगना तो दूर की बात है, तो चलो सखियों गिर पड़ें।

ऊपर हैंडल होते हैं, पोल होता है उसको पकड़ो, सहारा लो। दूसरी औरतों पर मत गिरो। 


पोल पर लेटने की कोशिश मत करिए 

 

मेट्रो के कोच में ये जो पोल होता है न वो इसलिए होता है कि कुछ लोग समय आने पर उसे पकड़ लें। लेकिन कुछ बहनों को उसपर लेटकर सफ़र करना पसंद होता है जिस वजह से बाकि की बहनें उसका सहारा नहीं ले पातीं, उसे पकड़ नहीं पातीं क्योंकि आप उसपर लेटी रहती हैं। प्लीज़ ऐसा न करें। दूसरों को भी उसे पकड़ने का मौका दें।


हील पहने हैं तो दूसरों के पैरों का ख़ास ख़याल रखें 

 

अच्छा अब कुछ महिलाएं हील पहनने की खासी शौक़ीन होती हैं लेकिन वो ये भूल जाती हैं कि भईया तुम्हारी ही एक बहन चप्पल पहन कर तुम्हारे बगल में खड़ी है। पागल ड्राईवर झटके से ब्रेक लगाता है और तुम्हारी 4 इंची पेंसिल हील जिसे पहनकर शायद तुम बेहद असहज हो, तुम्हारी बगल वाली बहन के चप्पल पहने पैरों में घुस जाती है। यकीन मानो जबसे हमारा पैर छिला है हमने सड़क बनाने वाले जूते पहनना शुरू कर दिया है।
 

लैपटॉप बैग पीठ पर रखकर यात्रा न करें का मतलब नहीं समझतीं आप?


देखिए आपके बैग में लैपटॉप हो या न हो, प्लीज़ भीड़ में उसे अपने कंधे पर मत टांगिए। फिर चाहे वो आपका प्यारा हैंडबैग ही क्यों न हो। आपके उस बेशकीमती हैंडबैग से कई बार हमारा हाथ छिल चुका है। ऊपर से भीड़ में कंधे पर टंगा हुए आपका बैग जिसमें आपने दुनिया भर का सामान भर रखा होता है वो आपसे कहीं ज़्यादा जगह घेरता है।


घर से जल्दी निकलने की आदत डालिए 


देखिए सुबह के समय मेट्रो में ख़ासी भीड़ होती है और सभी को अपने-अपने ऑफिस पहुँचने की जल्दी होती है। तो कोशिश करिए कि घर से थोड़ा समय से निकलें। क्योंकि मेट्रो में जगह होती है बेहद कम, आप में से कुछ को क्या लगता है कि महिला कोच ही तो है, तो कहीं न कहीं तो एडजस्ट हो ही जाएंगे। आप धक्का मार-मार के किसी तरह से अन्दर आने की कोशिश करती हैं और फिर खुद ही चिल्लाने लगती हैं। और फिर जब आप 'अंगड़ाईयां लेती हैं ज़ोर-ज़ोर से तो ऊ आह की आवाज़ है आती हर ओर से'। सबसे ज़्यादा शोर महिला कोच में ही मचता है। चारों तरफ़ से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही होती है। अगर हम सब रूल्स को फॉलो करें तो क्या हमें लड़ने-झगड़ने की ज़रुरत पड़ेगी?


देखिए बहन समझ कर आपसे अपनी परेशानी शेयर कर रहे हैं, आप में से बहुत इन बातों को समझती भी हैं तभी तो हम सब आज मेट्रो में सफ़र कर पा रहे हैं। लेकिन कभी-कभी दिमाग खराब हो जाता है और लगता है कि बस यहीं दंगल शुरू कर दें। तो उम्मीद है आप इन बातों को समझने की कोशिश करेंगी।


अंत में एक बात डी एम आर सी वालों से। देखिए हमको तो लगता है कि आपने मेट्रो को दिल्ली वासियों पर छोड़ दिया है। आपको हम पर बहुत विश्वास है कि हम किसी न किसी तरीके से तो सफ़र कर ही लेंगे। ऐसा नहीं है। इंटर चेंज स्टेशनों और कुछ दुसरे स्टेशनों को छोड़कर कहीं भी सिक्योरिटी स्टाफ़ नहीं दिखता है जो लोगों को लाइन में खड़ा करवा सके। जबतक आप सख्ती से लोगों को अनुशासन में रहने की आदत नहीं डलवायेंगे, स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी और रोज़ लोगों को परेशानी उठानी पड़ेगी।
 

इससे पहले कि दिल्ली मेट्रो का हाल मुंबई लोकल सा हो जाए, प्लीज़ इसे बचा लीजिए!


 


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