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बुंदेलखंड के 'गुलाबी गैंग' की चर्चाएं और ख़बरें तो आपने बहुत बार पढ़ी होंगी। गुलाबी गैंग के बाद अब बारी है 'ग्रीन ब्रिगेड' की।
Deutsche Welle की एक ख़बर के मुताबिक ग्रीन ब्रिगेड अब नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम करेगी।
ख़बर की मानें तो पुलिस को वाराणसी के साथ लगते मिर्जापुर में नक्सलियों की टोह लेना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में पुलिस को ग्रीन ब्रिगेड में उम्मीद की किरण नजर आ रही है। बता दें कि मिर्जापुर वाराणसी से लगा हुआ जिला हैं। ये नक्सल प्रभावित है और भारत सरकार के नोटिफाइड लाल गलियारे का हिस्सा है।
मिर्जापुर के करीब दस नक्सल प्रभावित गांवों में ये ब्रिगेड काम करेगी। ग्रीन ब्रिगेड के लिए हर गांव से कम से कम दस महिलाओं का चयन किया गया है। इस तरह लगभग डेढ़ सौ महिलाओं को ग्रीन ब्रिगेड का सदस्य बनाया गया है।
ग्रीन ब्रिगेड, वाराणसी के छात्रों के संगठन होप वेलफेयर ट्रस्ट का अंग है। दरअसल, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने सितंबर 2015 में ग्रीन ब्रिगेड बनाया था। बाद में इसके साथ जेएनयू जैसे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र भी जुड़ गए।
अपनी पॉकेट मनी से ये छात्र ग्रामीण इलाके में महिलाओ को साथ ले कर घरेलू हिंसा, नशाखोरी और अन्य सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए काम करते हैं। इन महिलाओं को ये छात्र ट्रेन करते हैं। वे एक खास हरे रंग की साड़ी पहनती हैं। आज पूरे वाराणसी और आसपास के क्षेत्र में ये महिलाएं ग्रीन ब्रिगेड के नाम से मशहूर हैं।
मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी कहते हैं कि ग्रीन ब्रिगेड की महिलाओं का काम बहुत अच्छा रहा है। उनके मुताबिक, "अपने क्षेत्रों में इन्होंने जुआ, घरेलू हिंसा और नशाबंदी के खिलाफ बहुत सार्थक काम किया है। हमने सोचा कि यहां भी ग्रीन ब्रिगेड रहेगी। ये जब गांव वालों को जागरूक करेंगी, तो लोगों का भटकाव कम होगा। हम इन्हें पुलिस मित्र का कार्ड भी देंगे। ये हमें समय समय पर सटीक सूचना भी देते रहेंगी।"
अंदर की बात ये है कि संस्था के सचिव दिव्यांशु उपाध्याय के मुताबिक जब वो लोग गांव में गए तो हालात बहुत बुरे थे। गरीबी बहुत ज्यादा थी और लोगों को ढंग से स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा भी नहीं मिल पा रही थीं। कहते हैं कि शुरू में तो गांव के लोगों और महिलाओं ने बात नहीं की लेकिन फिर धीरे-धीरे उन्हें विश्वास हुआ।
इसके बाद उन्हें समझाया गया कि अगर वे संगठित हों, अपना हक मांगें और सबको मुख्यधारा में लाएं तो उनकी बात सुनी जाएगी। इस मामले में मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने भी सहयोग दिया।
दिव्यांशु कहते हैं कि नक्सली भी गांव वालों के बीच के ही लोग होते हैं और अगर महिलाएं उन्हें समझाएंगी कि विकास हो रहा है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, अस्पताल बन रहा है और रोजगार मिल रहा है, तो फिर कोई क्यों इस राह पर जाएगा। दिव्यांशु बताते हैं कि वहां नक्सल शब्द इस्तेमाल भी नहीं कर सकते, वरना कोई बात नहीं करता।
क्या कहती है ग्रीन ब्रिगेड ?
ग्रीन ब्रिगेड की सदस्य मुन्नी देवी, निर्मला पटेल, उषा और जग्वंती भी खुश हैं। सबका मानना है कि जब गांव खुशहाल होगा तो कोई समस्या नहीं होगी इसीलिए आपसी सहयोग करेंगे। सरकार ने भी ग्रीन ब्रिगेड की इस पहल को सराहा है।