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शांताबाई। एक ऐसा नाम जिसका काम भी बोलता है और नाम भी। 12 साल की उम्र में शादी हो गयी। दो बच्चे के गर्भ में ही खत्म हो गए। पति की हार्ट अटैक से मौत हो गयी। एक नार्मल इंसान भी ऐसी घटना से हिल जाएगा पर शांताबाई ने खुद को अच्छे से ढाल लिया।
मेहनत, मजदूरी और खेत का काम करने के अलावा पति के मौत के बाद नाई का काम संभाला। 50 रु पर मजदूरी किया। गांव की होकर एक विधवा अगर नाई का काम करे तो आप समझ सकते हैं कि यह कितना चुनौतीपुर्ण रहा होगा।
गांव वालों की बकबक और अफवाहें शांता ने एकदम ध्यान नही ंदिया। बस अपना काम करती रही।
शांताबाई को बहादुरी का अवार्ड मिल चुका है। पति के न होते हुए 4 बेटियों को पालना कम नहीं है। बेटियों की शादीयां की। इस उम्र में भी शांता ने अपना काम करना नहीं छोड़ा। शंता ने कहा खुद कहा कि..
"मैं नहीं सोचती कि लोग मेरे काम को लेकर क्या बोलते हैं, या क्या सोचते हैं। मैं बस अपना काम करूंगी और करती रहूंगी"
शांता के काम लिए बहादुरी का अवार्ड भी कम पड़ जाए।