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इंदिरा जयसिंह: एक तेज़ तर्रार एडवोकेट जो महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Fri, 31 Mar 2017 02:59 PM IST
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indira jaysingh - फोटो : google
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जब हम किसी अच्छे संस्थान से कोई डिग्री हासिल करते हैं तो उसके बाद हमारे जीवन का एक मात्र मकसद होता है कि हम अच्छी से अच्छी नौकरी हासिल करें और अपने मां-बाप का नाम रौशन करें। इन सब के बीच वो लोग ख़ास होते हैं जो समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए अपने काम को एक नई दिशा देते हैं।

कुछ ऐसे पेशे होते हैं जिनमें हम लोगों से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं और उनका जीवन हमारे ऊपर निर्भर हो जाता है। जैसे डॉक्टर, पुलिस, वकील इन सब लोगों को उन लोगों का ख़ास ख़याल रखना होता है जो उनके पास मदद मांगने आते हैं। अगर हम वकीलों की बात करें तो हम उन्हें कहीं न कहीं उस व्यक्ति की तरह देखते हैं जो मुश्किल के वक़्त में हमें एक बड़ी परेशानी से बचाता है।

ऐसी ही एक वकील हैं इंदिरा जयसिंह। इन्होंने अपने अब तक के कार्यकाल में ख़ास तौर पर महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी है और उन्हें इंसाफ दिलाने में एक अहम भूमिका निभाई है।
 

इंदिरा जयसिंह का जन्म 3 जून 1940 को हुआ था। ये सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी वकील हैं। इनके पति आनंद ग्रोवर भी एक वकील हैं और मानवाधिकारों के लिए काम करते हैं। इंदिरा का जन्म मुंबई में हुआ और इन्होंने वहीं से अपनी पढ़ाई भी की है। 1986 में इन्हें भारत की पहली महिला सीनियर एडवोकेट बनने का मौका मिला। 

महिला अधिकारों के लिए इन्होने बहुत काम किया है। इनके काम से सोनिया गांधी भी बहुत प्रभावित हुईं। 2009 में इन्हें पहली महिला एडिशनल सोलिसिटर जनरल बनाया गया। अपने करियर की शुरुआत से ही इन्होंने हमेशा मानवाधिकारों और महिला अधिकारों के लिए काम किया। यही वजह है कि जब भी भारत के इतिहास में उन लोगों का नाम लिया जाएगा जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रयास किया, तो इनका नाम ज़रूर लिया जाएगा।
 

इन्होंने कई केसों में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें रुपन देओल बजाज और मैरी रॉय के मशहूर केस भी शामिल हैं। रूपन देओल बजाज के केस में के पी एस गिल पर शोषण का आरोप लगा था। ये पहला ऐसा बड़ा केस था जिसका फैसला आया। साथ ही मैरी रॉय के केस के बाद केरल में सीरियन क्रिस्चियन महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हुए। 

इसके अलावा इंदिरा जयसिंह ने गीता हरिहरन का भी केस लड़ा था जिसके बाद ये बड़ा फैसला आया था कि हिंदू लॉ के तहत मां बच्चे की 'नेचुरल गार्जियन' है। इसके बाद बच्चा अपनी मां का नाम भी अपनी पहचान के रूप में अपना सकता है। ज़ाहिर है महिलाओं के लिए ये एक बड़ा फैसला था जिसके बाद पुरुषों पर उनकी निर्भरता ख़त्म होती है।

जो महिलाएं किसी कारणवश अपने पति से अलग होना चाहती हैं या जो महिला सिंगल मदर है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा फैसला था।
 

इंदिरा जयसिंह ने भोपाल त्रासदी के पीड़ितों की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा था। साथ ही इन्होंने कई पर्यावरण संबंधी केस भी लड़े हैं। 1979-1990 के दौरान पंजाब में बड़े पैमाने पर जो हत्याएं हुईं उनकी तरफ भी इन्होंने कोर्ट का ध्यान दिलवाया। इंदिरा और उनके पति आनंद साथ मिलकर एक एनजीओ चलाते थे। 

इसका नाम था लॉयर्स कलेक्टिव, लेकिन इसपर कई आरोप लगाकर एक समय बाद इसे बंद कर दिया गया। ये एनजीओ महिला अधिकारों के लिए लड़ता था। ये महिलाओं के आर्थिक अधिकार, घरेलू हिंसा और अलग-अलग मुद्दों के लिए कार्य करता था। 
 

इन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में भारत का नेतृत्व किया है और इन्हें 2005 में पद्म श्री से भी नवाज़ा गया है। ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। भारत को इंदिरा जयसिंह जैसे और लोगों की ज़रूरत है। ऐसे लोग भारत के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। 

जो लोग भारत में बुरी परिस्थितियों में रह रहे हैं और जो महिलाएं अपनी अधिकारों से वंचित हैं और निरंतर ही उनका शोषण हो रहा है, उनके लिए इंदिरा जयसिंह जैसे लोग उम्मीद की किरण बनकर सामने आते हैं। भारत को असल में ऐसे ही वकीलों की आवश्यकता है न कि उनकी जो कोर्ट का फैसला आने से पहले ही अपना फैसला सुना देते हैं और खूब उत्पात मचाते हैं।
 

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