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ब्रेकअप के बाद लड़की का वो आखिरी ख़त

Updated Mon, 25 Jul 2016 05:24 PM IST
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विस्तार

हम और हमारा समाज रिश्तों पर टिका हुआ है। वक्त के साथ कई रिश्ते गहरे होते चले जाते हैं, कई बोझिल हो जाते हैं। एक तरफ से कोई भी रिश्ता चला पाना संभव नहीं है। डोर दोनों तरफ से न पकड़ी गई हो तो नीचे की ओर ही जाती है। ऐसे ही एक रिश्ते के टूटने पर जिसे ब्रेकअप कहते हैं (हालांकि यह ब्रेकअप से बहुत बड़ा और बहुत आगे का कुछ है) एक लड़की ने ख़त लिखा है अपने उस हमसफर को जिसके साथ उम्र भर रहने के वो सपने देखती थी। अब वो नहीं देखती वो सपने, अब वो जाग गई है। अफ़सोस अब कोई नहीं है जो उसे दोबारा नींद दे सके, वही सपने दिखा सके। जो बचा रह गया हमारे बीच ............ अंत जैसा अग़र वाकई कुछ होता है तो यह सचमुच आखिरी है। और अगर निरंतरता सत्य है तो बचा रह गया हम किसी न किसी रूप में जी लेंगे। मैंने इतने लम्बे अरसे में तुम्हें कभी नाम से नहीं पुकारा। इस ख़त में भी नाम नहीं दे पा रही कि मामूली से हट कर कुछ किया तो बेवजह तुम्हें याद आऊंगी। मैं तुम्हें याद आना चाहती हूं या नहीं सवाल यह नहीं। सवाल यह है कि तुम मुझे किस रूप में याद करते हो। जिस तरह करते हो उस से बेहतर तुम्हारी स्मृति के किसी गड्ढे  में गिर जाना है। पर तुम इतने उदार कब थे कि स्मृति के उस भाग में मुझे जगह दो जहां से तुम मुझे अपमानित न कर सको। जीवन का व्यंग्य देखो कि सब अपने मन का कर भी मैं भटक कर उस रास्ते पर लौट आती हूं जो मैं छोड़ गयी थी। तुम्हारा अक्स ढूंढ़ते हुए मैं किस वीराने में आ पहुंचती हूं यह तुम कहां जान पाओगे। और तुम जानना भी क्यों चाहोगे... तुम्हारे लिए तो मैं नफरत का बायस हूँ। Breakup1 मैं अब भी हर रात ख़्वाब देखती हूं। तुम कहा करते थे कि ख़्वाब में मन की दबी इच्छाएं दिखती हैं। मुझे लगता था ख़्वाब बस ख़्वाब होते हैं। रोज़ के तनाव से एक एस्केप, एक जादुई दुनिया। मैं हर रोज़ तकिये के नीचे किताब का एक पन्ना मोड़ कर सोती थी और मनाती थी कि काश ऐसा ही कुछ ख़्वाब में मेरे साथ घट जाए। पर अब मैंने खुद की ही तरह अपने ख्वाबों को भी निर्जनता में भटकने को छोड़ दिया है। अब मुझे उनसे कोई लगाव नहीं। फिर भी कुछ ख़्वाब होते हैं जो बीते दिन याद दिलाते हैं। जैसे आज का ख़्वाब। आज ख़्वाब में बर्फीले पहाड़ की चोटी पर थी। ठीक वहां, जहां मैं हमेशा जाने को कहा करती थी। मैं दूसरी ओर उतर जाना चाहती थी मग़र मुझे लौटना पड़ा। हमें हमेशा लौटना पड़ता है। जैसे मैं सिर्फ़ तुम्हारी थी पर मुझे खुद के पास अंततः लौटना पड़ा। ये दीगर बात है कि मैं बीच में रास्ता भूल गयी। मैं तुम्हारी न हो पायी। मैं खुद के पास भी नही पहुंच पायी। तुम्हें मैं हमेशा 'लॉस्ट सोल' लगती थी। तुम हमेशा कहते थे कि नियति मेरे साथ एक रोज़ ऐसा खेल खेलेगी जिसके पासे मेरे पास नहीं होंगे। मैंने नियति को यह खेल रचने दिया क्योंकि इसके अंत में तुम मुझे मिलने वाले थे। यहां तक कि इस खेल में हिस्सा भी लिया। पर अन्ततः वही हुआ जो तुम कहते थे या शायद मन ही मन चाहते भी थे। Breakup2 मुझे हमेशा लगता था कि तुम मेरी खुशियों से खुश नहीं होते। या शायद अगर मेरी खुशी का कारण तुम न हो तो तुम्हें खुश नहीं होती। पर मेरे लिए सदा तुम्हारी प्रसन्नता सर्वोपरि रही। तुम जब-जब सही साबित हुए तुम्हारी ख़ुशी की सीमा नहीं होती थी। और जब जब तुमने मुझे ग़लत साबित किया तुम्हारा अहम किस क़दर तुष्ट होता था यह मुझसे छिपा नहीं रहा था। तुम्हें खुश करने को मैं कितनी ही बार खुद को अनुचित ठहराती रही। इस बार भी तुम्हें मेरे जीवन की इस गति पर प्रसन्नता ही होगी। तुम सीना तान कर दुनिया को दिखा सकोगे कि तुम्हें छोड़ कर मैंने ग़लती की। पर सच कहना... क्या मैंने तुम्हें छोड़ा या तुमने मुझे विवश किया था। तुम नहीं जानते, पर तुम्हारी रूह जानती होगी। जैसे मेरी आत्मा जानती है कि उसकी मुक्ति कहां है। काश! तुमने मुझ पर यक़ीन किया होता। मुझे उड़ने को आसमान दिया होता। मेरी खिड़कियों पर पहरे न लगाये होते। मेरी हदबंदियां न की होतीं। बस कहा होता कि तुम हो तो मैं हूं। मैं कहीं जाती ही नहीं। मैं जाना नहीं चाहती थी। मैं चाहती थी तुम मुझे थामे रखो। मन ने चाहा था तुम दौड़े चले आओ। मुझ पर अपना अधिकार घोषित करो। मुझे तहस-नहस करने की धमकियां दो। और कुछ न सही मेरे गले लग रोओ। मुझसे सवाल करो। कहो... मैं तुम्हें अब भी चाहता हूं। तुम वादा भूल गयी मग़र मैंने कुछ नहीं बिसराया। काश तुम मुझे लौट लाते। खुद से दूर करने की बजाय मुझे एक बार आवाज़ देते। मैं दौड़ी चली आती। मैं ठहर जाती। न जाने क्यों यक़ीन था कि तुम मुझे गिरने नहीं दोगे। मैंने खुद को हर तरह से तुम्हें सौंप दिया था। पर जैसे ही मेरा एक कदम फिसला तुमने मुझे दोगुने वेग से धक्का दे दिया। मैं नीचे, और नीचे गर्त में गिरती गयी। काश तुम देख पाते, मेरा कोई हिस्सा अब भी उतना ही उजला होगा और उसे खोज पाते। तुम यह नहीं कर पाये इसका तुम्हें कोई दोष नहीं देती। तुम यह कर पाने लायक भी नहीं थे। मैं ही तुमसे ज़्यादा अपेक्षा कर बैठी थी। दूसरों का उजलापन देखने के लिए खुद के अंधेरों से बाहर आना पड़ता है जो तुम कभी नहीं कर पाए। पर यह सब मैं अब देख समझ पाती हूं। मैं तुम्हें अब भी ढूंढ़ती हूं, यह बताने के लिए कि अच्छा हुआ तुमने मुझे नहीं रोका। मेरा जीवन अपूर्ण भले ही रह गया पर अब जीवन का अर्थ मुझसे अनजाना नहीं रहा। यह सत्य है कि तुम्हारा स्थान कोई नहीं ले सका मग़र यह भी सत्य ही है कि अब वह स्थान समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। मेरा हर दुःख तुम्हारे लिए प्रसन्नता का विषय रहा है। तुम्हारे आकलन पूरी तरह सही सिद्ध नहीं हुए इस बार यही मेरा दुःख है। सब ख़त्म होने के बाद भी जो बचा रह जाता है उसका सिरा हाथ से छूटने से पहले तुम्हें लिख देना चाहती थी। विदा.. ~ मैं ........................................................................................................................................... साभार दिव्या विजय Divya
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